eDiplomaMCU: CPCT & CCC DCA/PGDCA/O Level Hindi Notes

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Saturday, February 9, 2019

CPCT & CCC DCA/PGDCA/O Level Hindi Notes

        CPCT & CCC DCA/PGDCA/O Level Notes





History and Development of Computer
(
कंप्यूटर का इतिहास और विकास)
Abacus
Computer का इतिहास लगभग 3000 वर्ष पुराना है| जब चीन में एक calculation Machine Abacus का अविष्कार हुआ था यह एक Mechanical Device है जो आज भी चीन, जापान सहित एशिया के अनेक देशो में अंको की गणना के लिए  काम आती थी| Abacus तारों का एक फ्रेम होता हैं  इन तारो में बीड (पकी हुई मिट्टी के गोले) पिरोये रहते हैं प्रारंभ में Abacus को व्यापारी Calculation करने के काम में Use किया करते थे यह Machine अंको को जोड़ने, घटाने, गुणा करने तथा भाग देने के काम आती हैं|



Charles Babbage


कप्यूटर के इतिहास में 19 वी शताब्दी को प्रारम्भिक समय का स्वर्णिम युग माना जाता है । अंग्रेज गणितज्ञ Charles Babbage ने एक यांत्रिक गणना मशीन (Mechanical Calculation Machine) विकसित करने की आवश्यकता तब महसूस की जब गणना के लिए बनी हुई सारणियों  में Error आती थी चूँकि यह Tables हस्त निर्मित (Hand-set) थी इसलिए इसमें Error आ जाती थी |
चार्ल्स बैबेज ने सन् 1822 में एक मशीन का निर्माण किया जिसका व्यय ब्रिटिश सरकार ने वहन किया । उस मशीन का नाम डिफरेंस इंजिन (Difference Engine) रखा गया, इस मशीन में गियर और साफ्ट लगे थे । यह भाप से चलती थी । सन् 1833 में Charles Babbage ने Different Engine का विकसित रूप Analytical Engine तैयार किया जो बहुत ही शक्तिशाली मशीन थी बैवेज का कम्प्यूटर के विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा हैं । बैवेज का एनालिटिकल इंजिन आधुनिक कम्प्यूटर का आधार बना और यही कारण है कि चार्ल्स बैवेज को कमप्यूटर विज्ञान का जनक कहा जाता हैं |





प्रिंटर क्या हैं? (What is Printer)


प्रिंटर (Printer) एक ऐसा आउटपुट डिवाइस (Output Device) है जो सॉफ्ट कॉपी (Soft Copy) को हार्ड कॉपी (Hard Copy) में परिवर्तित (Convert) करता हैं|”



Types of Printer (प्रिंटर के प्रकार)
प्रिंटिंग विधि (Printing Method):- प्रिंटिंग (Printing) में प्रिंट करने की विधि बहुत महत्वपूर्ण कारक है प्रिंटिंग विधि (Printing Method) दो प्रकार की इम्पैक्ट प्रिंटिंग (Impact Printing)  तथा नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटिंग (Non-Impact Printing) होती है|
इम्पैक्ट प्रिंटिंग (Impact Printing)
Impact Printer वे प्रिंटर होते हैं जो अपना Impact (प्रभाव) छोड़ते हैं जैसे टाइपराइटर प्रिंटिंग (Printing) की यह विधि टाइपराइटर (Typewriter) की विधि के समान होती है जिसमें धातु का एक हैमर (hammer) या प्रिंट हैड (Print Head) होता है जो कागज व रिबन (Ribbon) से टकराता है इम्पैक्ट प्रिंटिंग (Impact Printing) में अक्षर या कैरेक्टर्स ठोस मुद्रा अक्षरों (Solid Font) या डॉट मेट्रिक्स (Dot Matrix) विधि से कागज पर उभरते हैं Impact Printer की अनेक विधियाँ हैं| जैसे-
  • Dot Matrix Printer
  • Daisy Wheel Printer
  • line Printer
  • Chain Printer
  • Drum Printer etc.

नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर क्या होता है, कौनसा है ?

वह प्रिंटर जिसमें छपाई के लिए स्याही वाला रिबन पन्नों के ऊपर चोट नहीं करतानॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर कहलाता है| इन प्रिंटर में छपाई के लिए स्प्रे व अन्य इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का प्रयोग किया जाता है|
नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर के उदाहरण:
1.      इंक-जेट प्रिंटर
2.      लेज़र प्रिंटर


Input Devices of Computer (कंप्यूटर के इनपुट डिवाइस)
Input Device वे Device होते है जिनके द्वारा हम अपने डाटा या निर्देशों को Computer में Input करा सकते हैं| इनपुट डिवाइस कंप्यूटर तथा मानव के मध्य संपर्क की सुविधा प्रदान करते हैं| Computer में कई Input Device होते है ये Devices Computer के मस्तिष्क को निर्देशित करती है की वह क्या करे? Input Device कई रूप में उपलब्ध है तथा सभी के विशिष्ट उद्देश्य है टाइपिंग के लिये हमारे पास Keyboard होते है, जो हमारे निर्देशों को Type करते हैं|
Input Device वे Device है जो हमारे निर्देशों या आदेशों को Computer  के मष्तिष्कसी.पी.यू. (C.P.U.) तक पहुचाते हैं|”

Input Device कई प्रकार के होते है जो निम्न प्रकार है
  • Keyboard
  • Mouse
  • Joystick
  • Trackball
  • Light pen
  • Touch screen
  • Digital Camera
  • Scanner
  • Digitizer Tablet
  • Bar Code Reader
  • OMR
  • OCR
  • IMCR
  • ATM
की-बोर्ड (Keyboard)
की-बोर्ड कंप्यूटर का एक पेरिफेरल है जो आंशिक रूप से टाइपराइटर के की-बोर्ड की भांति होता हैं| की-बोर्ड को टेक्स्ट तथा कैरेक्टर इनपुट करने के लिये डिजाइन किया गया हैं| भौतिक रूप से, कंप्यूटर का की-बोर्ड आयताकार होता हैं| इसमें लगभग 108 Keys होती हैं| की-बोर्ड में कई प्रकार की कुंजियाँ (Keys) होती है जैसे- अक्षर (Alphabet), नंबर (Number), चिन्ह (Symbol), फंक्शन की (Function Key), एर्रो की (Arrow Key) व कुछ विशेष प्रकार की Keys भी होती हैं|


हम की-बोर्ड की संरचना के आधार पर इसकी कुंजियो को छ: भागो में बाँट सकते है-
  1. एल्फानुमेरिक कुंजियाँ (Alphanumeric Keys)
  2. न्यूमेरिक की-पैड (Numeric Keypad)
  3. फंक्शन की (Function Keys)
  4. विशिष्ट उददेशीय कुंजियाँ (Special Purpose Keys)
  5. मॉडिफायर कुंजियाँ (Modifier Keys)
  6. कर्सर कुंजियाँ (Cursor Keys)
·         एल्फानुमेरिक कुंजियाँ (Alphanumeric Keys)
Alphanumeric Keys की-बोर्ड के केन्द्र में स्थित होती हैं| Alphanumeric Keys में Alphabets (A-Z), Number (0-9), Symbol (@, #, $, %, ^, *, &, +, !, = ), होते हैं| इस खंड में अंको, चिन्हों, तथा वर्णमाला के अतिरिक्त चार कुंजियाँ Tab, Caps, Backspace तथा Enter कुछ विशिष्ट कार्यों के लिये होती हैं|


·         न्यूमेरिक की-पैड (Numeric Keypad)

न्यूमेरिक की-पैड (Numeric Keypad) में लगभग 17 कुंजियाँ होती हैं| जिनमे 0-9 तक के अंक, गणितीय ऑपरेटर (Mathematics operators) जैसे- +, -. *, / तथा Enter key होती हैं |
·         फंक्शन की (Function Keys)
की-बोर्ड के सबसे ऊपर संभवतः ये 12 फंक्शन कुंजियाँ होती हैं| जो F1, F2……..F12 तक होती हैं| ये कुंजियाँ निर्देशों को शॉट-कट के रूप में प्रयोग करने में सहायक होती हैं| इन Keys के कार्य सॉफ्टवेयर के अनुरूप बदलते रहते हैं|
·         विशिष्ट उददेशीय कुंजियाँ (Special Purpose Keys)
ये कुंजियाँ कुछ विशेष कार्यों को करने के लिये प्रयोग की जाती है| जैसे- Sleep, Power, Volume, Start, Shortcut, Esc, Tab, Insert, Home, End, Delete, इत्यादि| ये कुंजियाँ नये ऑपरेटिंग सिस्टम के कुछ विशेष कार्यों के अनुरूप होती हैं|
·         मॉडिफायर कुंजियाँ (Modifier Keys)
इसमें तीन कुंजियाँ होती हैं, जिनके नाम SHIFT, ALT, CTRL हैं| इनको अकेला दबाने पर कोई खास प्रयोग नहीं होता हैं, परन्तु जब अन्य किसी कुंजी के साथ इनका प्रयोग होता हैं तो ये उन कुंजियो के इनपुट को बदल देती हैं| इसलिए ये मॉडिफायर कुंजी कहलाती हैं|
·         कर्सर कुंजियाँ (Cursor Keys)
ये चार प्रकार की Keys होती हैं UP, DOWN, LEFT तथा RIGHT | इनका प्रयोग कर्सर को स्क्रीन पर मूव कराने के लिए किया जाता है|

की-बोर्ड के प्रकार

साधारण कीबोर्ड (Normal Keyboard)   , तार रहित की-बोर्ड (Wireless Keyboard)   , अरगानोमिक की-बोर्ड (Ergonomic Keyboard)
·         साधारण कीबोर्ड
साधारण कीबोर्ड वे कीबोर्ड होते हैं, जो सामान्य रूप से प्रयोग (Use) किये जाते हैं, जिसे User अपने PC में प्रयोग करता हैं | इसका आकार आयताकार होता है, इसमें लगभग 108 Keys होती हैं एवं इसे Computer से Connect करने के लिए एक Cable होती हैं जिसे CPU से जोडा  जाता हैं|
·         तार रहित की-बोर्ड
तार रहित की-बोर्ड (Wireless Keyboard) प्रयोक्ता (User) को की- बोर्ड में तार के प्रयोग से छुटकारा दिलाता है | कुछ कंपनियों ने तार रहित की-बोर्ड का बाजार में प्रवेश कराया है| यह की-बोर्ड सीमित दूरी तक कार्य करता है| यह तार रहित की-बोर्ड थोडा महँगा होता है तथा इसमें थोड़ी तकनीकी जटिलता होती है| इसमें तकनीकी जटिलता होने के कारण इसका प्रचलन बहुत अधिक नहीं हो पाया है|
·         अरगानोमिक की-बोर्ड
बहुत सारी कंपनियों ने एक खास प्रकार के की-बोर्ड का निर्माण किया है, जो प्रयोक्ता (User) को टाइपिंग करने में दूसरे की-बोर्ड की अपेक्षा आराम देता है| ऐसे की-बोर्ड अरगानोमिक की-बोर्ड (Ergonomic Keyboard)  कहलाते है ऐसे की-बोर्ड विशेष तौर पर प्रयोक्ता (User) की कार्य क्षमता बढाने के साथ साथ लगातार टाइपिंग करने के कारण उत्पन्न होने वाले कलाई (Wrist) के दर्द को कम करने में सहायता देता है |
वर्तमान समय में माउस सर्वाधिक प्रचलित Pointer Device है, जिसका प्रयोग चित्र या ग्राफिक्स (Graphics) बनाने के साथ साथ किसी बटन (Button) या मेन्यू (Menu) पर क्लिक करने के लिये किया जाता है | इसकी सहायता से हम की-बोर्ड का प्रयोग किये बिना अपने पी.सी. को नियंत्रित कर सकता है |
माउस में दो या तीन बटन होते है जिनकी सहायता से कंप्यूटर को निर्देश दिये जाते है| माउस को हिलाने पर स्क्रीन पर Pointer Move करता है| माउस के नीचे की ओर रबर की गेंद (Boll)  होती है| समतल सतह पर माउस को हिलाने पर यह गेंद घुमती है|
माउस के कार्य
  • क्लिकिंग (Clicking)
  • डबल क्लिकिंग (Double Clicking)
  • दायाँ क्लिकिंग (Right Clicking)
  • ड्रैगिंग (Dragging)
  • स्क्रोलिंग (Scrolling)

माउस के प्रकार
माउस प्रायः तीन प्रकार के होते है |
  1. मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse)
  2. प्रकाशीय माउस (Optical Mouse)
  3. तार रहित माउस (Cordless Mouse)
·         मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse)
मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse) वे माउस होते है| जिनके निचले भाग में एक रबर की गेंद लगी होती है जब माउस को सतह पर घुमाते है तो वह उस खोल के अंदर घुमती है माउस के अंदर गेंद के घूमने से उसके अंदर के सेन्सर्स (Censors) कंप्यूटर को संकेत (Signal) देते है|
·         प्रकाशीय माउस (Optical Mouse)
प्रकाशीय माउस (Optical Mouse) एक नये प्रकार का नॉन मैकेनिकल (non-mechanical) माउस है | इसमें प्रकाश की एक पुंज (किरण) इसके नीचे की सतह से उत्सर्जित होती है जिसके परिवर्तन के आधार पर यह ऑब्जेक्ट (Object) की दूरी, तथा गति तय करता है |
·          तार रहित माउस (Cordless Mouse)
तार रहित माउस (Cordless Mouse) वे माउस है जो आपको तार के झंझट से मुक्ति देता है| यह रेडियो फ्रीक्वेंसी (Radio frequency) तकनीक की सहायता से आपके कंप्यूटर को सूचना कम्युनिकेट (Communicate) करता हैं| इसमें दो मुख्य कम्पोनेंट्स ट्रांसमीटर तथा रिसीवर होते है ट्रांसमीटर माउस में होता है जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक (Electromagnetic) सिग्नल (Signal) के रूप में माउस की गति तथा इसके क्लिक किये जाने की सूचना भेजता है रिसीवर जो आपके कंप्यूटर से जुड़ा होता है उस सिग्नल को प्राप्त करता है |

जॉयस्टिक (Joystick)

यह डिवाइस (Device) वीडियो गेम्स खेलने के काम आने वाला इनपुट डिवाइस (Input Device)  है इसका प्रयोग बच्चो द्वारा प्रायः कंप्यूटर पर खेल खेलने के लिये किया जाता है| क्योकि यह बच्चो को कंप्यूटर सिखाने का आसान तरीका है| वैसे तो कंप्यूटर के सारे खेल की-बोर्ड द्वारा खेले जा सकते है परन्तु कुछ खेल तेज गति से खेले जाते है उन खेलो में बच्चे अपने आप को सुबिधाजनक महसूस नहीं करते है इसलिए जॉयस्टिक का प्रयोग किया जाता है |

ट्रैकबाल (Trackball)

ट्रैक बोंल एक Pointing input Device है| जो माउस (Mouse) की तरह ही कार्य करती है | इसमें एक उभरी हुई गेंद होती है तथा कुछ बटन होते है| सामान्यतः पकड़ते समय गेंद पर आपका अंगूठा होता है तथा आपकी उंगलियों उसके बटन पर होती है| स्क्रीन पर पॉइंटर (Pointer) को घुमाने के लिये अंगूठा से उस गेंद को घुमाते है ट्रैकबोंल (Trackball) को माउस की तरह घुमाने की आवश्यकता नहीं होती इसलिये यह अपेक्षाकृत कम जगह घेरता है | इसका प्रयोग Laptop, Mobile तथा Remold में किया जाता हैं |

लाइट पेन (Light Pen)

लाइट पेन (Light Pen) का प्रयोग कंप्यूटर स्क्रीन पर कोई चित्र या ग्राफिक्स बनाने में किया जाता है लाइट पेन में एक प्रकाश संवेदनशील कलम की तरह एक युक्ति होती है| अतः लाइट पेन का प्रयोग ऑब्जेक्ट के चयन के लिये होता है| लाइट पेन की सहायता से बनाया गया कोई भी ग्राफिक्स कंप्यूटर पर संग्रहित किया जा सकता है तथा आवश्यकतानुसार इसमें सुधार किया जा सकता है |

टच स्क्रीन (Touch Screen)

टच स्क्रीन (Touch Screen) एक Input Device है| इसमें एक प्रकार की Display होती है| जिसकी सहायता से User किसी Pointing Device की वजह अपनी अंगुलियों को स्थित कर स्क्रीन पर मेन्यू या किसी ऑब्जेक्ट का चयन करता है| किसी User को कंप्यूटर की बहुत अधिक जानकारी न हो तो भी इसे सरलता से प्रयोग किया जा सकता है टच स्क्रीन (Touch Screen) का प्रयोग आजकल रेलवेस्टेशन, एअरपोर्ट, अस्पताल, शोपिंग मॉल, ए.टी.ऍम. इत्यादि में होने लगा है |

बार-कोड रीडर (Bar code reader

बार-कोड रीडर (Bar code reader) का प्रयोग Product के ऊपर छपे हुए बार कोड को पढ़ने के लिये किया जाता है किसी Product के ऊपर जो Bar Code बार-कोड रीडर (Bar code reader) के द्वारा उत्पाद की कीमत तथा उससे सम्बंधित दूसरी सूचनाओ को प्राप्त किया जा सकता हैं|

 स्कैनर (Scanner)

स्केनर (Scanner) एक Input Device है ये कंप्यूटर में किसी Page पर बनी आकृति या लिखित सूचना को सीधे Computer में Input करता है इसका मुख्य लाभ यह है कि User को सूचना टाइप नहीं करनी पड़ती हैं|

ओ.एम.आर. (OMR)

ओ.एम.आर. (OMR) या ऑप्टिकल मार्क रीडर (Optical Mark Reader) एक ऐसा डिवाइस है जो किसी कागज पर पेन्सिल या पेन के चिन्ह की उपस्थिति और अनुपस्थिति को जांचता है इसमें चिन्हित कागज पर प्रकाश डाला जाता है और परावर्तित प्रकाश को जांचा जाता है| जहाँ चिन्ह उपस्थित होगा कागज के उस भाग से परावर्तित प्रकाश की तीव्रता कम होगी | ओ.एम.आर. (OMR) किसी परीक्षा की उत्तरपुस्तिका को जाँचने के लिये प्रयोग की जाती है| इन परीक्षाओं के प्रश्नपत्र में वैकल्पिक प्रश्न होते हैं |

ओ.सी.आर. (OCR)

ऑप्टिकल कैरेक्टर रेकोग्निशन (Optical Character Recognition) अथवा ओ.सी.आर.(OCR) एक ऐसी तकनीक है | जिसका प्रयोग किसी विशेष प्रकार के चिन्ह, अक्षर, या नंबर को पढ़ने के लिये किया जाता है इन कैरेक्टर को प्रकाश स्त्रोत के द्वारा पढ़ा जा सकता हैं| ओ.सी.आर (OCR) उपकरण टाइपराइटर से छपे हुए कैरेक्टर्स, कैश रजिस्टर के कैरक्टर और क्रेडिट कार्ड के कैरेक्टर को पढ़ लेता हैं| ओ.सी.आर (OCR) के फॉण्ट कंप्यूटर में संग्रहित रहते है | जिन्हें ओ.सी.आर. (OCR) स्टैंडर्ड कहते हैं|

 

ए.टी.एम.(ATM)

स्वचालित मुद्रा यंत्र या ए.टी.एम. (Automatic Teller Machine) ऐसा यंत्र है जो हमे प्रायः बैंक में, शॉपिंग मौल में, रेलवे स्टेशन पर, हवाई अड्डों पर, बस स्टैंड पर, तथा अन्य महत्वपूर्ण बाजारों तथा सार्वजनिक स्थानों पर मिल जाता हैं| ए.टी.एम. की सहायता से आप पैसे जमा भी कर सकते है, निकाल भी सकते है, और बैलेंस भी चेक कर सकते है| ए.टी.एम. की सुबिधा 24 घंटे उपलब्ध रहती है|

 

एम.आई.सी.आर.(MICR)

मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकोग्निशन (Magnetic Ink Character Recognition) व्यापक रूप से बैंकिंग में प्रयोग होता है, जहाँ लोगो को चेकों की बड़ी संख्या के साथ काम करना होता हैं| इसे संक्षेप में एम.आई.सी.आर.(MICR) कहाँ जाता हैं| एम.आई.सी.आर (MICR) का प्रयोग चुम्बकीय स्याही (Magnetic Ink) से छपे कैरेक्टर को पढ़ने के लिये किया जाता हैं| यह मशीन तेज व स्वचलित होतीहैं साथ ही इसमें गलतियां होने के अवसर बिल्कुल न के बराबर होते हैं|

सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट क्या है - What Is Central Processing Unit in Hindi

कंप्‍यूटर की संरचना (Computer Architecture) में सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit)  केन्‍द्र में रहता है इनपुट यूनिट (Input unit) द्वारा डाटा और निर्देशों को कंप्‍यूटर में एंटर किया जाता है और इसके बाद सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit) डाटा को प्रोसेस करता है और आपको आउटपुट देता है, डाटा को प्रोसेेस करनेे में यह अपने दो भागोंं की मदद लेता है अर्थमेटीक लॉजिक यूनिट (Arithmetic Logic Unit ) और कंट्रोल यूनिट (Control Unit) -

प्रोसेसिंग से पहले प्राइमरी मेमोरी (Primary memory में जो डाटा होता है और जो निर्देश होते हैं वह अर्थमेटिक लॉजिक यूनिट में ट्रांसफर हो जाते हैं और वहां पर उनकी प्रोसेसिंग का कार्य होता है Arithmetic logic unit (ALU) से जो परिणाम मिलते हैं उनको प्राइमरी मेमोरी में ट्रांसफर कर दिया जाता है और प्रोसेसिंग समाप्त होने के बाद में प्राइमरी मेमोरी (Primary memory) में जो डाटा बचता है या अंतिम परिणाम बचते हैं वह एक आउटपुट डिवाइस (Output device) के माध्यम से आप तक पहुंचा दिए जाते हैं

इनपुट डिवाइस से डाटा कब लेना है स्टोर यूनिट में डाटा कब डालना है वैल्यू से डाटा को कब लेना है और जब वह डाटा प्रोसेस हो जाए उसको आउटपुट डिवाइस तक कब भेजना है यह सारे काम करता है कंट्रोल यूनिट

Arithmetic Logic Unit

अर्थमेटीक लॉजिक यूनिट (Arithmetic Logic Unit ) अंकगणितीय गणना (Arithmetic Calculation) और तार्किक गणना (Logical calculation) का काम करता है, जैसे जोड़, घटाव, गुणा, भाग और <, >, =, हाँ या ना

Control Unit

कंट्रोल यूनिट (Control Unit) कंप्‍यूटर में हो रहे सारे कार्यो नियंत्रित करता है और इनपुट, आउटपुट डिवाइसेज, और अर्थमेटीक लॉजिक यूनिट (Arithmetic Logic Unit ) के सारे गतिविधियों के बीच तालमेल बैठाता है।


 

Difference between CD and DVD in Hindi

सीडी और डीवीडी में कोई मुख्य अंतर नहीं होता बस उनकी क्षमता के आधार पर दोनों में अंतर पाया जाता है। तो जानते है अब सीडी और डीवीडी के बीच का अंतर क्या है:
·         सीडी केवल एक लेयर का इस्तेमाल करती है। वहीं डीवीडी 2 लेयर का इस्तेमाल करती है। जिस वजह से डीवीडी की क्षमता ज्यादा होती है।
·         डीवीडी में सीडी की तुलना में 6 गुना ज्यादा मैमोरी कैपेसिटी होती है।
·         मूवी और सॉफ्टवेयर के लिए डीवीडी का प्रयोग किया जाता है। सीडी का प्रयोग ज्यादातर म्यूज़िक एलबम और व्यावसायिक डाटा के लिए किया जाता है।
·         डीवीडी हायर डेन्सिटी रिकॉर्डिंग और रीडिंग के लिए लेजर की सॉर्ट वेब का प्रयोग करती है। सीडी केवल सिंगल साइड होती है, यह केवल एक लेयर का इस्तेमाल करके डाटा स्टोरेज का प्रयोग करती है।
·         डीवीडी प्लेयर में सीडी और डीवीडी दोनों प्ले की जा सकती है। जबकि सीडी प्लेयर में केवल सीडी ही प्ले होती है।

What is USB

USB एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जिसकी मदद से हम पॉवर को या डाटा को आसानी से एक device से दुसरे device में भेज पाते है अगर आप कंप्यूटर use हैं तो आपने इसका इस्तेमाल किया ही होगा। इस टेक्नोलॉजी की मदद से लगभग हर device को जिनमे डाटा या पॉवर रहती है को एक दुसरे से कनेक्ट किया जा सकता है। USB की मदद से ही हम अपने Smartphone को चार्ज कर पाते है इसी की मदद से हम अपने मोबाइल और कंप्यूटर को कनेक्ट भी कर पाते है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार - Types of Operating System 

उपयोगकर्ता के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार


उपयोगकर्ता के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Operating Systems) को दो भागों में बॉंटा गया है -
1.            सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Single User Operating System) - सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर पर एक बार में एक ही यूजर को कार्य करने की अनुमति देता है यानी यहां पर एक साथ एक से अधिक यूजर अकाउंट नहीं बनाए जा सकते हैं केवल एक ही व्यक्ति काम कर सकता है उदाहरण के लिए एमएस डॉस, विंडोज 95, 98 
2.            मल्‍टीयूजर ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Multi User Operating System) - ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम जिसमें आप एक से अधिक यूजर अकाउंट बना सकते हैं और उन पर काम कर सकते हैं मल्टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाते हैं इसमें प्रत्येक यूजर को कंप्यूटर से जुड़ा एक टर्मिनल दे दिया जाता है उदाहरण के लिए लाइनेक्स यूनिक, विंडोज के आधुनिक वर्शन

काम करने के मोड के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार


काम करने के मोड के आधार पर भी इसे दो भागों में विभाजित किया गया है - 
1.            कैरेक्टर यूजर इंटरफेस (Character User Interface) - कैरेक्टर यूजर इंटरफेस को कमांड लाइन इंटरफ़ेस के रूप में भी जाना जाता है इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में टाइपिंग के द्वारा कार्य किया जाता है इसमें विशेष प्रकार की कमांड दी जाती है कंप्यूटर को ऑपरेट करने के लिए और केवल टेक्स्ट का उपयोग किया जाता है इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम का एक अच्छा उदाहरण है एम एस डॉस
2.            ग्राफिकल यूज़र इंटरफेस (Graphical user interface) ग्राफिकल यूज़र इंटरफेस (Graphical user interface) जैसा कि इसके नाम में ही प्रदर्शित होता है यह ऑपरेटिंग सिस्टम ग्राफिक्स पर आधारित होता है यानी आप माउस और कीबोर्ड के माध्यम से कंप्यूटर को इनपुट दे सकते हैं और वहां पर जो आपको इंटरफ़ेस दिया जाता है वह ग्राफिकल होता है या यहां पर सभी प्रकार के बटन होते हैं मेन्‍यू होते हैं जो पूरी तरीके से यह बहुत आसान इंटरफ़ेस होता है

विकास क्रम के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार


कम्‍प्‍यूटर के विकास के और कंप्‍यूटर की पीढीयों के आधार पर उसमे चलाए जाने वाले ऑपरेटिंग सिस्‍टम का विकास भी होता रहा है , इस प्रकार ऑपरेटिंग सिस्‍टम निम्‍न प्रकार के हैं - 


1.            बैच प्रोसेसिंग सिस्‍टम (Batch Processing System)
2.            टाइम शेयरिंंग या मल्‍टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Time Sharing Or Multi User Operating System)
3.            मल्‍टी टॉस्किंंग ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Multi Tasking Operating System)
4.            रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Real Time Operating System)
5.            मल्‍टी प्रोसेसर ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Multi Processing Operating System)
6.            एम्‍बेडेड ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Embedded Operating System)
7.            डिस्‍ट्रीब्‍यूटेड ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Distributed Operating System)


1.            बैच प्रोसेसिंग सिस्‍टम (Batch Processing System) बेच प्रोसेसिंग सिस्‍टम कम्‍प्‍यूटर मे सबसे पहले उपयोग हुए ऑपरेटिंग सिस्‍टम मे से एक है । बेच ऑपरेटिंग सिस्‍टम के यूजर इसको स्‍वयं उपयोग करने के बजाए अपने जॉब (कार्य को ) पंच कार्ड या इसी प्रकार की अन्‍य डिवाइस मे ऑपरेटर को दे देते हैं तथा ऑपरेटर सभी जॉब का समूह बनाकर उसे चला देता है । सामान्‍यत: बेच ऑपरेटिंग सिस्‍टम एक बार मे एक प्रोग्राम चलाता है इनका उपयोग अब न के बराबर होता है परन्‍तु कुछ मेनफ्रेम कम्‍प्‍यूटर मे अभी भी इसका उपयोग हो रहा है । 
2.            टाइम शेयरिंग या मल्‍टी यूजर सिस्‍टम (Time Sharing Or Multi User Operating System) टाइम शेयरिंग या मल्‍टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्‍टम का प्रयोग नेटवर्क मे किया जाता है इसके माध्‍यम से विभिन्‍न यूजर एक ही समय मे एक ही प्रोग्राम का प्रयोग कर सकते हैं । इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्‍टम मे यूजर के अकांउट बना दिए जाते हैं जिससे यूजर को साॅफ्टवेयर उपयोग करने हेतु कितनी परमीशन है , यह ज्ञात होता है । 
3.            मल्‍टी टॉस्किंग ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Multi Tasking Operating System) - मल्‍टी टॉस्किंग ऑपरेटिंग सिस्‍टम मे एक ही समय मे एक से अधिक टास्‍क (कार्य ) कराए जाते है । वास्‍तविकता मे प्रोसेसर बहुत जल्‍दी जल्‍दी अलग अलग प्रोसेस को समय प्रदान करता है जिसे सीपीयू Scheduling कहते हैं । यह कार्य इतनी अधिक तेजी से होता है कि यूजर को सभी कार्य एक साथ होते हुए प्रतीत होते है । इसका लाभ यह है कि सीपीयू के खाली समय का सर्वोत्‍तम उपयोग हो जाता है । 
4.            रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Real Time Operating System) - रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्‍टम डाटा प्रोसेसिंग सिस्‍टम के रूप मे भी जाने जाते हैं इनमे किसी इवेंट को क्रियान्वित करने के लिए एक पूर्व निर्धारित समय होता है जिसे रिस्‍पांस टाइम कहा जाता है। ये प्राथमिक रूप से प्रोसेस कंट्रोल एवं टेलीकम्‍यूू‍निकेशन मे अधिक प्रयोग किए जाते हैं इनका उपयोग वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यो, मेडीकल इमेजिंग सिस्‍टम, औद्योगिक नियंत्रण सिस्‍टम, रोबोट्स मे, हवाई यातायात नियंंत्रण (एयर ट्राफिक कंट्रोल) इत्‍यादि मे होता है। ये दो प्रकार के होते है 
1.            हार्ड रियल टाइम सिस्‍टम (Hard real time system) ये किसी संवेदनशील कार्यो को निश्चित समय मे पूरा करने की गारण्‍टी देते है, इनमे द्वितीयक मेमोरी नही होती है या बहुत कम मात्रा मे उपलब्‍ध होती है । 
2.            सॉफ्ट रियल टाइम सिस्‍टम (Soft Real Time System) ये हार्ड रियल टाइम सिस्‍टम की तुलना मे थोड़ा कम पाबंद होते हैैं पर ये संवेदनशील कार्यो को अन्‍य सभी कार्यो से अधिक वरीयता देते हैैं। मल्‍टीमीडिया वर्चुअल रियेलिटी आदि कार्यो मे इनका अधिक उपयोग होता है । 
5.            मल्‍टी प्रोसेसर ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Multi Processing Operating System) इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्‍टम उन जगहो पर उपयोग किए जाते हैं जहॉं पर एक से अधिक प्रोसेसर सिस्‍टम मे लगे हुए होते हैैं । एक से अधिक प्रोसेसर इस्‍तेमाल करने की तकनीक को पेरे‍लल प्रो‍सेसिंग कहा जाता है । 
6.            एम्‍बेडेड ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Embedded Operating System) - एम्‍बेडेड सिस्‍टम ऐसे आॅपरेटिंग सिस्‍टम हैं जो कि किसी इलेक्‍ट्राि‍निक्‍स या अन्‍य प्रकार की हार्डवेयर डिवाइस मे ही उपस्थित रहते हैं ये रोम मे ही उपस्थित रहते हैं इनका उपयोग घरेलू उपयोग वाले उपकरण जैसे माइक्रोवेव ओवन, वाशिंग मशीन, कार मेनेजमेंट सिस्‍टम, ट्राफिक कंट्रोल सिस्‍टम इत्‍यादि मे किया जाता है ।
7.            डिस्‍ट्रीब्‍यूटेड ऑपरेटिंग सिस्‍टम ( Distributed Operating System) ये कई सारे प्रोसेसरों का उपयोग कर विभिन्‍न एप्‍लीकेशनो को चलाते हैैं तथा इन एप्‍लीकेशनो या सॉफ्टवेयरों का उपयोग भी कई सारे यूजर करते हैं इन्‍हे लूजली कपल्‍ड आॅपरेटिंग सिस्‍टम भी कहा जाता है । इसका लाभ यह है कि यूजर को बहुत सारे रिसोर्स उपयोग करने हेतु मिल जाते हैं एवं अगर एक सिस्‍टम बिगड़ जाता है तो अन्‍य सिस्‍टम का उपयोग किया जा सकता है ।


Type of Booting - बूटिंग के प्रकार

कंप्यूटर में बूटिंग दो प्रकार की होती है कोल्ड बूटिंग (Cold booting) और वार्म बूटिंग (Warm Booting) - 

What is Cold booting कोल्ड बूटिंग क्‍या होती है - 

जब आप सीपीयू के कंप्‍यूटर (computer) का पावर बटन (Power button) या स्‍टार्ट बटन (Start button) को प्रेस कर कंप्‍यूटर को स्‍टार्ट करते हैं तो इसे कोल्ड बूटिंग (Cold booting) कहा जाता है। 

What is Warm Booting वार्म बूटिंग क्‍या होती है - 

कंप्‍यूटर के हैंग होने की स्थिति में की-बोर्ड के द्वारा Alt+Ctrl+Del दबाकर या फिर रिस्टार्ट बटन का उपयोग कंप्‍यूटर को दोबारा बूट कराने की प्रकिया वार्म बूटिंग कहलाती (Warm Booting) या रीबूट (reboot) भी कहते हैं 





Data Measurement Chart

Data Measurement Chart
Data Measurement
Size
Bit
Single Binary Digit (1 or 0)
Byte
8 bits
Kilobyte (KB)
1,024 Bytes
Megabyte (MB)
1,024 Kilobytes
Gigabyte (GB)
1,024 Megabytes
Terabyte (TB)
1,024 Gigabytes
Petabyte (PB)
1,024 Terabytes
Exabyte (EB)
1,024 Petabytes


IP Address-
              Internet Protocol इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस (या IP एड्रेस) नेटवर्क पर विशेष डिवाइस के लिए डेटा भेजने के लिए नेटवर्क को कनेक्‍ट प्रत्येक डिवाइस (जैसे, कंप्यूटर, सर्वर, प्रिंटर, स्मार्टफ़ोन) का एक यूनिक एड्रेस होता है और कम्युनिकेशन के लिए वे इंटरनेट प्रोटोकॉल का उपयोग करते हैं।
Internet Protocol (IP) यह एक मेथड या प्रोटोकॉल है, जिसके द्वारा डाटा इंटरनेट पर एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस पर भेजा जाता है।

IP Address Classes in Hindi:

IPv4 एड्रेस मे आईपी रेंज के लिए पाच क्‍लासेस हैं: Class A, Class B, Class C, Class D और Class E| जबकि केवल A, B, और C को ही आमतौर पर इस्तेमाल करते हैं| हरएक क्‍लास आईपी एड्रेस कि वैध रेंज के लिए अनुमति देता हैं, जिसे निम्‍न टेबल में दिखाया गया हैं
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MS Word क्या है?


MS word यानी Microsoft word Microsoft office package का एक सॉफ्टवेयर है. इसको 'Word' भी कहा जाता है. इसका इस्तेमाल Word processing करने यानी Documents को बनाने एडिट करने खोलने पड़ने फॉर्मेट करने, प्रिंट करने और शेयर करने के लिए किया जाता है.

MS word Microsoft (माइक्रोसॉफ्ट) 
कंपनी द्वारा बनाया गया सॉफ्टवेयर है. MS word सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला word processing सॉफ्टवेयर है इसका इस्तेमाल स्कूलों, कालेजो, दफ्तरों और कई जगहों पर होता है.

MS word
का सबसे पहला version यानी 1988 में आया था तब इसका नाम MS work या microsoft work हुआ करता था. इसके बाद से MS word के काफी सारे versions आ चुके है.



MS word को ओपन कैसे करें.


MS word
को ओपन करना बहुत ही आसान है इसके लिए सबसे पहले आपको अपने कंप्यूटर के start menu को ओपन करना होगा.

इसके बाद आपको अपने सामने एक सर्च बॉक्स दिखेगा जिसमे आपको "word" टाइप करना है.

अब आपको start menu में नीले कलर का आइकॉन दिखेगा बस आपको इस पर क्लिक करना है. बस आपके सामने MS word ओपन हो जाएगा.
(
यह विधि विंडोज 7,8 और 10 सब पर काम करेगी).

MS word विंडो के Elements



Title bar


यह MS word के सबसे ऊपर का भाग होता है यहाँ पर हमें हमारी फाइल का नाम दिखाई देता है साथ ही साथ इसमें पांच बटन भी होते है जिनमे सबसे पहला बटन Help का होता है इसको दबाने पर help का विंडो खुलता है इसमें MS office की तरफ से ही काफी सारा help कंटेंट दिया गया है.

दूसरा बटन Menu bar और Ribbon को छिपाने और दिखाने के लिए होता है. और उसके बाद बाला बटन विंडो को Minimize (मिनीमाइज) करने के लिए होता है जिसको दबाने पर हमारा MS word मिनीमाइज हो जाता है यानी taskbar में चला जाता है. उसके बाद वाला बटन विंडो को resize या छोटा बड़ा करने के लिए होता हो और पाँचवा बटन विंडो को क्लोज करने के लिए होता है.

Quick access toolbar
यह Title bar का ही एक हिस्सा होता है. इसमें सबसे पहले MS word का आइकॉन रहता है और उसके बाद के आइकॉन को हम आपने अनुशार कस्टमाइज कर सकते है.


Menu bar
Menu bar title bar के ठीक निचे होता है इसमें बहुत सारे option दिए गए है जिनमे कई सारे features दिए गए है लेकिन क्यूंकि हम अभी MS Word क्या है और इसके basics पड रहें है तो इनके बारे में हम बाद मे बात करेंगे.


Ribbon
यह menu bar का ही एक भाग होता है Menu bar से सेलेक्ट किये हुए menu के अंदर के सारे आइटम्स इस पर ही शो होते है बस 'File' menu के options को छोड़कर.

Text Area
यह MS word का सबसे ख़ास भाग होता है क्यूंकि हम अपना document यही एडिट करते है. हमें अपने document में जो भी लिखना होता है वो हमें यही पर लिखना पड़ता है.


Scroll bar
यह document को स्क्रॉल करने के लिए होता है.


Office button या File button
Office बटन MS office के पुराने version में पाया जाता था लेकिन आजकल इसकी जगह 'File' नाम के बटन ने ले ली है जो की इसकी तरह ही काम करती है. इसमें हमें कुछ basic features जैसे फाइल को सेव करना प्रिंट करना आदि के option मिल जाते है.

MS word में एक बेसिक document कैसे edit करें?

इसके लिए आपको सबसे पहले अपने कंप्यूटर में MS word ओपन करना पड़ेगा जिसके बारे में हमने अभी-अभी बताया है. इसको ओपन करने के बाद आपको निचे बताए स्टेप्स को फॉलो करना होगा.


 

 

 

Document में title कैसे बनायें?



हर document का अपना एक title होता है. जो document के बाकी हिस्से से ज्यादा बड़े अक्षरों में लिखा जाता है. यह लिखने के लिए आपको MS word के Ribbon में दिए गए styles में से Title नाम का style सेलेक्ट करना होगा.
उसके बाद आप Text area में अपने document का title लिखकर enter दबाना होगा.इसके बाद आप अपने normal document को टाइप करना शुरू कर सकते है.

Font कैसे बदलें?

अगर आपने document पूरा टाइप कर लिया है तो आपको font बदलने के लिए document के पूरे text को सेलेक्ट करना होगा. सेलेक्ट करने के बाद Ribbon के font बाले हिस्से पर जाना होगा.
अब आपको यहाँ पर दो ड्राप डाउन मेनू दिखेंगी जिनमे से एक में font और दुसरे में font के साइज़ का option रहेगा. इसमें से आपको font बाले ड्राप डाउन मेनू पर क्लिक करना है और अपना मन पसंद फॉण्ट सेलेक्ट करना है.

Font का साइज़ कैसे बदले?

इसके लिए भी आपको text सेलेक्ट करना होगा सेलेक्ट करते समय इस बाद का ध्यान रखें की कही आपने किसी heading या title को तो सेलेक्ट नहीं किया है.

text
सेलेक्ट करने के बाद Ribbon के font वाले हिस्से में फॉण्ट drop down मेनू पर क्लिक करे और अपने फॉण्ट का साइज़ सेलेक्ट करें.


MS word में आइटम्स की लिस्ट कैसे बनायें?

MS word में आप दो तरह की लिस्ट बना सकते है पहली बुलेट लिस्ट इस लिस्ट में आपको लिस्ट आइटम के पहले एक बुलेट दिखाई देगा और दूसरी है numbering लिस्ट इसमें हर आइटम के पहले एक क्रमशः एक number या अल्फाबेट दिखाई देगा.

लिस्ट बनाने के लिए आपको Ribbon के पैराग्राफ वाले सेक्शन में जाना होगा उसमे से दोनों types मेसे कोई एक टाइप सेलेक्ट करना होगा.

इसके बाद आप अपनी लिस्ट बना सकते है लिस्ट में अगला आइटम जोड़ने के लिए enter तथा लिस्ट को ख़तम करने के लिए दो बार enter प्रेस करना होगा.


Document को सेव कैसे करें

Document को सेव करने के लिए MS office 2013 और इससे बड़े वाले version में "File" मेनू दिया गया है इस पर क्लिक करने पर आपको बहुत सारे option मिलेंगे और उन्ही में से एक "Save as" का option भी होगा आपको इसी option पर क्लिक करके कंप्यूटर सेलेक्ट करके browse पर क्लिक करना होगा.

MS office 2010
या 2017 में फाइल menu की जगह office बटन दिया गया है जो File मेनू की ही तरह है. फाइल को सेव करने के लिए आपको बस इसपर क्लिक करके 'save as' पर क्लिक करना.

इसके बाद आपको अपने screen पर एक browse विंडो दिखेगी आपको उसमे से फोल्डर सेलेक्ट करना होगा और अपनी फाइल को एक नाम देना होगा फिर save पर क्लिक करना होगा.









MS Excel क्या है

MS Excel यानी Microsoft Excel Microsoft (माइक्रोसॉफ्ट) कंपनी द्वारा बनाया गया एक सॉफ्टवेयर है. जो MS office यानी माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के साथ आता है. MS Excel spreadsheet (स्प्रेडशीट) बनाने के लिए  उपयोग किया जाने वाला सॉफ्टवेयर है.

इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल Spreadsheet, worksheet और टेबल्स बनाने के लिए किया जाता है. इसमें रो और कॉलम पहले से ही दिए रहते है इसमें बहुत से cell होते है जिनमे हम अलग अलग डाटा भरते है. इसके रो और कॉलम हमारी जरूरत के हिसाब से expand होते जाते है.

इस सॉफ्टवेयर की मदद से हम अपना डाटा जैसे मार्कशीट, कर्मचारियों के बेतन की जानकारी या किसी भी चीज़ का हिसाब-किताब एक साफ़ सुथरे ओर्गानिज़ ढंग से बना सकते है.

पहले हमें इतने सारे डाटा को रखने के लिए कई हजारो फाइल्स बनानी पड़ती थी लेकिन MS Excel के आने के बाद काफी मदद मिली है.

MS Excel को कैसे ओपन करें?

MS Excel को आप डेस्कटॉप पर बने आइकॉन पर क्लिक करके ओपन कर सकते है. अगर आपको डेस्कटॉप पर इसका कोई आइकॉन नज़र नहीं आ रहा है तो आप start मेनू ओपन करके उसमे 'excel' सर्च कर सकते है और इसके आइकॉन पर क्लिक करके ओपन कर सकते है.

इस तरह से आप विंडोज 7, 8 और 10 में MS Excel ओपन कर सकते है.

MS Excel विंडो के कुछ Elements



MS Excel के कुछ Elements इस प्रकार है -

Title bar

Title bar MS Excel विंडो का सबसे ऊपर का भाग होता है इस पर फाइल का नाम लिखा होता है साथ में इसके दाई तरह 5 बटन होतें है जिनमे से पहला बटन help के लिए दूसरा बटन इसी विंडो के एक हिस्से जिसे Ribbon कहा जाता है को दिखाने और छिपाने के लिए होता है.
इसके बाद बाले बटन common विंडो बटन होते है यानी ये हर विंडो में होते है जो विंडो को क्लोज करने, मिनीमाइज करने और resize करने के काम आते है.

इसमें बायीं ओर एक और छोटा सा हिस्सा होता है जिसे quick access toolbar कहते है इसमें बहुत सारे बटन होते है जिन्हें हम अपने हिसाब से कस्टमाइज कर सकते है.

Menu bar  
यह title bar के ठीक निचे होता है इसमें बहुत सारे option होते है जैसे File, Insert, Design आदि जिनके बारे में हम बाद में बिस्तार से पड़ेंगें. इस पोस्ट में हम केवल MS Excel क्या है (in Hindi) पड़ेंगे.

Ribbon  
यह MS Excel का वो हिस्सा है जिसपर ओपन किये गए Menu के अंदर के सारे टूल्स दिखाई देते है. यह ठीक menu bar के निचे ही होता है. इसमें File menu को छोड़कर सारे menu के tools दिखाई देते है.

Office button या File button  Office बटन MS office के पुराने version में हुआ करता था लेकिन आजकल इसकी जगह 'File' नाम के बटन ने ले ली है जो की इसकी तरह ही काम करती है. इसमें हमें कुछ basic features जैसे फाइल को सेव करना प्रिंट करना आदि मिल जाते है.

Name box  यह ribbon के निचे बायीं तरफ दिखाई देता है जिसमे करंट cell का नाम दिखाई देता है और हम इसमें किसी भी cell काम नाम डालकर उस cell पर पहुँच सकते है.
Formula bar  यह name बॉक्स के बगल में ही दिखाई देता है. इसमें हम फार्मूला का इस्तेमाल करके डाटा पर ऑपरेशन कर सकते है जिनके बारे में हम आगे की पोस्ट में बात करेंगे.
Text Area या sheet  यह MS Excel का main हिस्सा होता है हम अपने document का डाटा इसमें ही लिखते है. हम अपने document को write और एडिट यहीं पर करते है.

Scroll bar इसकी मदद से document को हम horizontally या vertically scroll कर पाते है.


Status bar और Zoom slider Status bar में करंट status शो होता है जैसे Ready और इसमें ही दाई ओर एक और फीचर होता है जिसे zoom slider कहते है इसकी मदद से हम sheet को zoom in और zoom out कर सकते है.


Internet क्या है? Meaning of  internet

जब दो या दो से अधिक कंप्यूटर सूचनाओं का आदान प्रदान करने के लिए एक दुसरे से कनेक्ट होते है तो एक जाल बनता है उसी ही जाल को internet का नाम दिया गया है। हम अपने कंप्यूटर्स में सूचनाओं या दस्ताबेजो का आदान प्रदान internet के कारण ही कर पाते है।

कंप्यूटर्स को एक दुसरे से एक माध्यम के तहत कनेक्ट किया जाता है जिन्हें हम TCP/IP protocols यानी Transmission Control Protocol या Internet Protocol कहते है। दुसरे शब्दों में कहें तो कंप्यूटर्स को आपस में कनेक्ट होने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है इन नियमों को TCP/IP protocols कहते है इससे जुडी और भी जानकारियाँ है जैसे HTTP और HTTPS जिन्हें आप यहाँ से पड सकते है।

Internet
कंप्यूटर्स को आपस में जोड़ने का एक साधन है जिसका उद्देश्य सूचनाओं के आदान प्रदान को सरल बनाना है। इसके जरिये किसी भी तरह की सुचना जैसे documents, images, विडियो गाने या और भी कई तरह की सूचनाएं भेजी जा सकती है। हम कंप्यूटर में उपलब्ध एक विशिष्ट सॉफ्टवेयर वेबब्राउज़र के द्वारा इस जाकारी को खोल पाते हैं।
प्रोटोकॉल कितने प्रकार के होते हैं? (Types of Protocol)
कंप्यूटर नेटवर्किंग के लिए सॉफ्टवेर तथा हार्डवेयर लेवल पर कई प्रकार के प्रोटोकॉल उपयोग किये जाते हैं जिनमे से कुछ common network protocols कुछ इस प्रकार से हैं:
§  TCP (Transmission Control Protocol): इसका काम इन्टरनेट पर data transfer करने के लिए होता है। यह डाटा को छोटे-छोटे पैकेट्स में विभाजित करके नेटवर्क के जरिये destination तक send कर देता है जहाँ इसे वापस जोड़ लिया जाता है।
§  IP (Internet Protocol): इसके बारे में आपने जरूर सुना होगा यह TCP के साथ मिलकर काम करता है packets को ट्रान्सफर करने के लिए IP का उपयोग एक तरह से addressing के लिए किया जाता है जिसके जरिये final destination तक data को पहुँचाया जाता है।
§  HTTP (HyperText Transfer Protocol): यह client और server के बीच connection स्थापित करता है और world wide web पर document exchange करने के काम आता है। आप अपने browser पर किसी website को इसी प्रोटोकॉल की मदद से access कर पाते हैं।
§  FTP (File Transfer Protocol): इसका use client और FTP server के बीच फाइल ट्रान्सफर करने के लिए किया जाता है। किसी अन्य method के मुकाबले FTP द्वारा तेज़ गति से फाइल ट्रान्सफर किया जा सकता है। 

§  SMTP (Simple Mail Transfer Protocol): जैसा की नाम से पता चल रहा है इसका उपयोग इन्टरनेट पर ईमेल भेजने और प्राप्त करने के लिए होता है। 
§  Telnet: किसी एक कंप्यूटर को दूर बैठ कर किसी अन्य कंप्यूटर से संचालित किया जा सकता है इसके लिए remote login की जरुरत होती है और इस प्रकार के connection को establish करने के लिए telnet protocol का उपयोग होता है। Team viewer software इसका एक अच्छा उदाहरण है।
§  Ethernet Protocol: इस प्रोटोकॉल का बहुत ज्यादा उपयोग होता है। स्कूल, कॉलेज, ऑफिस आदि में LAN connection का उपयोग होता है और इस प्रकार के कनेक्शन के लिए Ethernet का use किया जाता है किसी computer को LAN से connect करने के लिए उसमे Ethernet Network Interface Card (NIC) होना जरूरी होता है।

इसके अलावा और भी कई सारे network protocols हैं जैसे:

  • IMAP (Internet Message Access Protocol)
  • POP (Post Office Protocol)
  • UDP (User Datagram Protocol)

§  MAC (Media Access Control protocol)

§  ARP (Address Resolution Protocol)

§  DNS (Domain Name System protocol)

§  IGMP (Internet Group Management Protocol)

§  SSH (Secure Shell)

§SSL(SecureSocketsLayer)                                                                                                                                                                


1.    29 अक्टूबर, 1971 पहला ईमेल भेजा गया था, यानि इस दिन ईमेल का जन्म हुआ था। 

2.    पहला ईमेल संदेश था "QUERTYIOP" , यह कोई विशेष कोड नहीं बल्कि यह आपके QUERTY की-बोर्ड की ऊपर वाली लाइन हैं।

3.    पहला ईमेल अमेरिका के कैम्ब्रिज में एक कमरे में रखे दो कंम्यूटरों के बीच भेजा गया था। 

4.    इस ईमेल को रे टॉमलिंसन ने भेजा था, यह अपरानेट में काम करते थे। 

5.    रे टॉमलिंसन ने अपने पहले ईमेल में ही एट चिह्न (@) या एट प्रतीक प्रयोग कर लिया था। 

6.    इतना सब होने के बाद भी इस संदेश को ईमेल का नाम नहीं मिला था, यानि ईमेल को अपना औपचारिक रूप नहीं मिला था। 

7.    वर्ष 1978 में भारतीय मूल के अमेरिकी अय्यदुरई ने कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार किया जिसे "ईमेल" का नाम मिला। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि उस समय अय्यदुरई की उम्र महज 14 साल थी।

8.    उनके ईमेल प्रोग्राम में वह सभी फीचर थे जो आप भी यूज होते हैं जैसे - इनबॉक्स, आउटबॉक्स, फोल्डर्स, मेमो, अटैचमेंट्स आदि। 

9.    अय्यदुरई को 1978 में उनकी खोज के लिए अमेरिका में कॉपीराइट दिया गया। 

10. 3 मई 1978 को पहला स्पैम मेल भेजा था। यह मेल डिजिटल इक्यूपमेंट कॉरपोरेशन के गैरी थ्यूर्क ने अपरानेट की मदद से 393 लोगों को भेजा था। 


What is Virus – वायरस क्या होता है

वायरस यह भी एक कंप्यूटर प्रोग्राम्स यानि सॉफ्टवेयर ही होते हैं, जिस तरह कंप्यूटर में अलग-अलग कामों को करने के लिए अलग-अलग तरह के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम को बनाया जाता है ठीक उसी तरह वायरस भी बनाया जाता है, वायरस भी अपना काम कई अलग-अलग तरह से करते हैं | वायरस बहुत माहिर साफ्टवेयर प्रोग्रामों होते है यह किसी भी कम्प्यूटर में प्रवेश कर सकते है VIRUS का Full form : Vital Information Resources Under Seize होता है |

 

Virus Names:

1. ILOVEYOU

2. Code Red

3. Melissa

4.Sasser

5. Zeus

6.Conficker

 

Antivirus software

Antivirus software, or anti-virus software, also known as anti-malware, is a computer program used to prevent, detect, and remove malware.

 

Example:

1.    Bitdefender Antivirus Free Edition. ...

2.    Avira Antivirus. ...

3.    Avast Free Antivirus. ...

4.    AVG Free Antivirus. ...

5.    Kaspersky Lab Internet Security 2017. ...

6.    Sophos Home Free Antivirus. ...

7.    Panda Free Antivirus. ...

8.    Comodo Antivirus.



 There are two types of assessment technique in typing test i.e. Restricted Type and Unrestricted type.

Restricted type = candidate will not be able to type wrong words and will also not be able to modify the typed text.

Unrestricted type = candidate will be able to type wrong words and will also be able to modify/delete the typed text.

 

For CPCT, Unrestricted type of typing technique is used, for providing a real time feel of typing.



5 comments:

  1. this man explained very nicely. I like it

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