मध्यप्रदेश के लिपिक संवर्ग पिछले लगभग 40 साल से वेतन विसंगति झेल रहे हैं। लिपिक/क्लर्क का वेतन आज के ग्राम सेवक, पटवारी, शिक्षक आदि से काफी अधिक था, परन्तु एक साजिश के तहत लिपिकों का वेतनमान उन्नयन आगामी वेतन आयोगों में नहीं किया गया। कई सारे पद तो ऐसे रहे जिनका वेतनमान / ग्रेड पे सरकार ने आये दिन बार - बार बढ़ा दिया। लिपिक संवर्ग जिन्हें सहायक ग्रेड - 3 का पदनाम भी दिया गया उनके साथ अन्याय बरकरार रहा। पिछले 40 वर्षों में बनी अनेक कमेटियों ने जहां लिपिकों का वेतनमान बढ़ाये जाने की सिफारिश की, तो दूसरी तरफ लिपिकों के साथ होते अन्याय के खिलाफ माननीय न्यायालय ने भी सहानुभूति दिखाकर लिपिकों का वेतनमान बढ़ाने का आदेश दिया, परन्तु सरकार ने लिपिकों की मांगों को नज़रअन्दाज कर दिया।
अनेक कमेटियों और धोखे का शिकार होता मध्यप्रदेश का लिपिक संवर्ग जो आज के 2800, 3200 ग्रेड पे पाने वाले संवर्गों से अधिक वेतन तब पा रहा था, उसे 1900 ग्रेड पे में ही बांधकर रखा गया और लिपिक संवर्ग 2400 ग्रेड पे पाने के लिए पिछले करीब 20 वर्षों से लड़ाई लड़ रहा है। दूसरी तरफ इन्हीं समय में आये 2 वेतन आयोग में लिपिक से कम वेतन पाने वालों को बार - बार वेतनमान उन्नयन का लाभ देकर आगे बढ़ा दिया गया। लिपिक संवर्ग में इससे कुण्ठा जन्म ले ली और लिपिक को स्वयं के प्रति भी हीन भावना एवं अवसादग्रस्तता का शिकार होना पड़ा।
दैनिक भास्कर (12/07/2024) की रिपोर्ट में लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने का जिक्र किया गया है कि 2020 में शिवराज सरकार द्वारा पूर्व वित्त सचिव जीपी सिंघल की अध्यक्षता में बनाया गया आयोग जो लिपिक वेतन विसंगति के अध्ययन के लिए बनाया गया था, जीपी सिंघल कमेटी ने लिपिकों का वेतनमान तत्काल प्रभाव से 2400 ग्रेड पे करने की सिफारिश की। सरकार के भी माननीय वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा जी ने मीडिया के माध्यम से लिपिकों को आश्वस्थ किया है कि आगामी 6 महीने से 1 वर्ष के अन्दर ही लिपिकों का ग्रेड पे 1900 से बढ़ाकर 2400 कर दिया जाएगा।
हम आपको बताना चाहेंगे कि ऐसे बयान एवं ऐसे कमेटियों के रिपोर्ट हमेशा से लिपिकों के पक्ष में होने के बावजूद भी पिछले 40 वर्षों से लिपिकों का आर्थिक, मानसिक, सामाजिक शोषण होता आया है और लिपिकों के साथ अन्याय करके अन्य संवर्गों से सापेक्ष गरीबी में लिपिकों को खड़ा कर दिया गया है। आज मध्यप्रदेश का लिपिक तृतीय श्रेणी में सबसे गरीबी में जीवन यापन कर रहा है, इससे उसकी योग्यता एवं कार्यकुशलता का अपमान आये दिन समाज में होता आ रहा है। लिपिक की कर्मठता, कार्यकुशला, लगन, मेहनत, ईमानदारी, सद्भावना, सदाचार को देखकर ही लिपिकों को मध्यप्रदेश के समस्त कार्यालयों एवं विभागों की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है, आज इसी रीढ़ की हड्डी को गरीबी, कमजोरी, बीमारी, और दासता भरे लम्हों में जीना पड़ रहा है। कुछ वर्षों पूर्व तृतीय श्रेणी में लिपिक संवर्ग का वेतन सबसे अधिक हुआ करता था।
डाटा इण्ट्री आपरेटर की योग्यता एवं कार्य प्रकृति सहायक ग्रेड - 3 के समान या कम होने के बावजूद भी उन्हें 2400 ग्रेड पे दिया गया, जबकि लिपिक/सहायक ग्रेड-3 को 1900 में ही अटका दिया गया जो चतुर्थ श्रेणी से ग्रेड पे में सिर्फ 100 रू. अधिक है। जीपी सिंघल की रिपोर्ट में अन्य संवर्गों का भी वेतन बढ़ाने की बात कही गई है, जिससे लिपिक सवंर्ग में इस बात का डर बना हुआ है कि हमेशा की तरह अन्य संवर्ग को लाभ दे दिया जाएगा, जबकि लिपिकों के साथ फिर से छल किया जाएगा।
मध्यप्रदेश का लिपिक आशावादी है एवं उम्मीद करता है कि 6 माह के अन्दर ही लिपिकों का ग्रेड पे 2400 कर दिया जाए। यदि लिपिकों को उनका बढ़ा हुआ ग्रेड पे मिल जाता है तो लिपिकों के वेतनमान में करीबन 7 हज़ार से 30 हज़ार तक का लाभ होगा। देखने वाली बात रहेगी कि क्या मध्यप्रदेश के लिपिकों को उनका हक़ दिया जाता है, या उनके सम्मान के साथ फिर से खिलवाड़ होता है ...
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