Importance
of witnesses in criminal justice system
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली
में अभियोगात्मक प्रणाली (Accusatory system) को
अपनाया गया है, जिसके अन्तर्गत न्यायालय द्वारा मामले का निस्तारण
अपने समक्ष प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर किया जाता है। साक्ष्य या तो दस्तावेज
के रूप में हो सकते हैं या साक्षियों का परिसाक्ष्य हो सकता है। न्यायिक प्रणाली में साक्षीगण की भूमिका काफी महत्वपूर्ण
होती है। विवादित तथ्यों से संबंधित प्रश्नों अथवा सत्यता की सही खोज करने में न्यायालय
को सहायता पहुँचाने में साक्षीगणों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है। वे निर्णय
प्रक्रिया के रीढ़ होते हैं। जब दो पक्षकार अपने किसी विवादित विषय के संबंध में
न्यायालय के समक्ष आते हैं, तब उस विवाद के संबंधम में एक
निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने में साक्षीगण न्यायालय की सहायता करते हैं।
अभियोजन देवसर, जिला सिंगरौली म.प्र. की ओर से अजीत कुमार सिंह (एडीपीओ) की प्रस्तुति |
यह सिद्धान्त
आपराधिक मामलों में काफी प्रबलता के साथ लागू होता है, क्योंकि
अधिकांश आपराधिक मामले साक्षियों के विशेषकर चक्षुदर्शी साक्षियों के आधार पर
निर्णित किये जाते हैं। आपराधिक मामलों में, जहॉं कि अभियोजन को अभियुक्त की दोषिता संदेह से परे साबित
करना पड़ता है, साक्षीगणों के महत्व से इनकार
नहीं किया जा सकता। साक्षी मामले का पक्षकार हो सकता है, हितबद्ध
साक्षी हो सकता है या अपराध से पीडि़त व्यक्ति से नज़दीकी संबंध में हो सकता है
या अभियुक्त के दोषसिद्धि होने में हितबद्ध हो सकता है। फिर भी ऐसे साक्षियों के
साक्ष्य सुसंगत होते हैं, यद्यपि
कि इनकी कठोरता से परीक्षण किया जाता है।
उपयुक्त बातों के होते हुए भी भारतीय विधिक
प्रणाली में साक्षियों की स्थिति काफी दयनीय है। अपराध के अन्वेषण एवं मामले के
विचारण के विभिन्न स्तरों पर साक्षियों को विभिन्न प्रकार की धमकियों का सामना
करना पड़ता है। शारीरिक एवं वित्तीय दशाओं पर ध्यान दिये बिना न्यायालय में
उपस्थिति हेतु समन ज़ारी किया जाता है। कभी-कभी तो अपराध घटित होने के इतने दिनों
बाद साक्षियों को न्यायालय में बुलाया जाता है, जिससे साक्षी अपराध घटित होने के
समय के आवश्यक विवरणों को भी याद करने में अक्षम होता है।
श्रवण सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब
(2000) 5 एस.सी.सी. 68 के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने साक्षियों की
स्थिति के बारे में विचार व्यक्त किया है कि –
‘‘साक्षियों
को काफी परेशान होना पड़ता है। वे दूरस्थ स्थानों से आते हैं और पाते हैं कि
मामला अगली तारीख तक स्थगित हो गया है। बहुत बार साक्षियों को अपने खर्चे से न्यायालय
में आना पड़ता है। यह न्यायालय की नियमित कार्यप्रणाली में शामिल
हो गया है कि मामले को तब तक स्थगित किया जाता है जब तक कि साक्षी थककर न्यायालय
में आना बन्द न कर दे। पूरे दिन इन्तज़ार करने के बाद पता चलता है कि मामला अगली
तारीख़ तक के लिए स्थगित कर दिया गया है। इस प्रकिया में अधिवक्तागण की भूमिका
काफी महत्वपूर्ण होती है। अनेक बार साक्षी को धमकी दी जाती है, यहॉं तक की रिश्वत भी दिया जाता है। साक्षियों की कोई
सुरक्षा नहीं है। मामले को स्थगित कर न्यायालय स्वत: न्यायिक हत्या का
पक्षकार बन जाता है। साक्षियों को न्यायालय द्वारा भी सम्मान नहीं दिया जाता है।
न्यायालय परिसर में साक्षियों के बैठने के लिए न तो कोई पर्याप्त व्यवस्था
होती है और न ही पीने के पानी और शौचालय की सुविधा उपलब्ध रहती है। जब वह न्यायालय
में उपस्थित होते हैं तो उन्हें लंबे एवं तनावपूर्ण मुख्य परीक्षण एवं
प्रति-परीक्षण से गुज़रना पड़ता है। इन्हीं कारणों से लोक साक्षी बनने से दूरी
बनाते हैं और जिसके कारण न्यायिक प्रशासन अवरूद्ध होता है।’’
साक्षियों के पक्षद्रोही होने का मुख्य कारण राज्य
द्वारा समुचित सुरक्षा उपलब्ध न कराना है। यह एक कठोर सत्य है, विशेषकर उन मामलों में जिनमें अभियुक्त गम्भीर
मामलों के लिए विचारित है या जहॉं अभियुक्तगण प्रभावी व्यक्ति हैं या अधिशासित
करने की स्थिति में हैं। ऐसे अपराधीगण साक्षियों को आतंकित एवं अभित्रस्त करते
हैं, जिसके कारण साक्षीगण या तो न्यायालय
में आने से दूरी बना लेते हैं या न्यायालय में सत्य कथन करने से बचते हैं।
कृष्णा मोची बनाम स्टेट ऑफ बिहार (2002) 6 एस.सी.सी. 81 के
मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी किया कि सामान्य मामलों में
भी साक्षीगण साक्ष्य देने के इच्छुक नहीं होते हैं या बहुसंख्य कारणों से उनका
साक्ष्य न्यायालय द्वारा विश्वसनीय नहीं पाया जाता था। इसका एक महत्वपूर्ण
कारण साक्षियों को अभियुक्त व्यक्तियों की तरफ से मिलने वाली जान की धमकी होती
है, क्योंकि अधिकांश अपराधी या तो
अभ्यस्त अपराधी होते हैं या समाज अधिशासित स्थिति में होते हैं और सत्ता के
बहुत नज़दीक होते हैं।
साक्षियों के पक्षद्रोही होने के कुछ महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित
हैं –
1. धमकी
या अभित्रास
2. विभिन्न
माध्यमों से उत्प्रेरणा, जैसे
– धन
3. पॉकेट
विटनेस का प्रयोग
4.
अन्वेषण एवं विचारण के दौरान
साक्षियों का उत्पीड़न
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