लिपिक वेतन विसंगति के मुद्दे से लिपिकों को भटकाया जा रहा है: मध्यप्रदेश लिपिक कर्मचारी संघ
2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले बहुत से संवर्गों की मॉंगे पूरी कर दी गयीं जैसे कि ऑंगनवाड़ी कार्यकर्ता, कई सारे पदों के वेतन में 5-10 हज़ार का सीधा इज़ाफा कर दिया गया।
मत भूलो हमारे लिपिक भाईयों ने वेतन विसंगति दूर कराने के लिए जी-जान की परवाह न की- विधानसभा चुनाव 2018 में मध्यप्रदेश के बहुत सारे विभाग के विभन्न संवर्ग के कर्मचारियों/अधिकारियों में सरकार के खिलाफ़ अपनी मांग को मनवाने के प्रति आक्रोश था। सबसे अधिक बरबरता झेली लिपिकों ने। सरकार ने लिपिकों के न तो सम्मान की फिकर की और न ही उनके मेहनत की। आखिर लिपिक कर्मचारी एक बन्धुआ मज़दूर जो है। लिपिक को आज के दौर में चपरासी के समान समझा जाता है। मतलब ऐसा चपरासी जो अधिक काम करेगा और कार्य के प्रति जिम्मेदार भी होगा, परन्तु ज़ुुुुबान खोलने का अधिकार न होगा। लिपिक को आज जो हीन भावना से देखते हैं उनको शायद यह नहीं पता होगा कि 1981 तक यही लिपिक कर्मचारियों का वेतन अन्य संवर्गों से दो से तीन गुना अधिक था। खैर, यह बात तो बीत गयी, मध्यप्रदेश में आज लिपिक/सहायक ग्रेड (1,2,3, सेक्शनल ऑफिसर) आदि चपरासी ही हैं। लिपिक वर्ग ने भी वेतन विसंगति दूर कराने के लिए बहुत संघर्ष किया था। युवाओं ने बढ़चढ़कर योगदान दिया था। सरकार ने पुलिस बल का प्रयोग करते हुए बुरी तरह आन्दोलन को दबाकर खत्म कर दिया। एक मंत्री जी ने तो यहां तक कह दिया था कि ये जो लिपिक घर के सामने आकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, अब तो इनकी वेतन विसंगति बिल्कुल भी दूर नहीं करेंगे।
जागो लिपिक जागो- इस बार 2023 के विधानसभा चुनाव का इन्तज़ार नहीं करना चाहिए। लिपिकों को चाहिए कि वह अभी से एकजुट हो जाएं और एक सूत्रीय मांग लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने की ही मांग करें। इस बार लिपिक वर्ग बहुत कमज़ोर और उदासीन लग रहे हैं। लिपिकों के नेता लिपिकों से दूरी बनाए हुए हैं और न जाने क्यों उनको लिपिक संवर्ग के हालात नज़र नहीं आ रहे। 2018 में लिपिकों की वेतन विसंगति दूर नहीं हुई क्योंकि हमारे ही कुछ लोग चाहते हैं कि लिपिक वेतन विसंगति कई वर्ष पूर्व से दूर की जाकर एरियर दिया जाए। असलियत तो यह है कि लिपिकों को सरकार सिर्फ बन्धुआ मज़दूर समझती है जिसके लिए लिपिक का सम्मान कुछ मायने नहीं रखता। सरकार की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने का बहाना हमेशा लिपिक वर्ग की वेतन विसंगति दूर न करने को ही लेकर रहता है, बकाया संवर्ग की कोई विसंगति न होने के बाद भी उनको आर्थिक पुरस्कार दिये गये।
अनार्थिक और अन्य मांगे बाद में/ इस बार सिर्फ एक सूत्रीय मांग लिपिक वेतन विसंगति- लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने के लिए प्रतिबद्ध सभी लिपिकों को चाहिए कि वो न तो पुरानी पेंशन योजना की बात करें और न ही किसी अन्य मांग को लेकर आगे आएं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ वेतन विसंगति दूर करने के बिन्दु पर ही केन्द्रित रहें। आज लिपिक सबसे अधिक काम करता है, जिस प्रकार कोई बोझा ढोता है उसी प्रकार। ज्यादातर लिपिक कम्प्यूटर पर काम करते हैं जिससे उनकी आंख को और मानसिक रूप से कई तरह की बीमारियों का सामना भविष्य में करना पड़ेगा, इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार की तरह न तो कम्प्यूटर या अन्य भत्ते ही दिये जा रहे।
कुछ लिपिकों को वेतन से कोई मतलब नहीं - यह लेख लिखते समय मुझमें आक्रोश है, चिन्ता भी है। लिपिक संवर्ग के ही कुछ विभागों के लिपिकों की ऊपरी कमाई इतनी अधिक है कि उन्हें वेतन से कुुछ लेना देना नहीं है। और ये लिपिक लोग इतने अधिक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं कि अन्य लिपिक साथियों के हालात पर इनको तरस भी नहीं आता है। लेकिन इन लिपिक साथियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्य कुछ विभागों में ऐसे भी लिपिक साथी हैं जिनकी ऊपरी कमाई नगण्य है और ज्यादातर लिपिक भ्रष्टाचार करना पसंद भी नहीं करते।
सरकार खुुद लिपिकों को भ्रष्टाचार का इज़ाज़त देती है- अन्य संवर्ग जिनका वेतन कई बार रिवाईज किया गया और लिपिकों से आधी सैलरी पाने वालों को लिपिक के दोगुना वेतन पर ला दिया गया, जबकि आज भी लिपिक की योग्यता, मेहनत, काम पर शक नहीं किया जा सकता। इतने वर्षों की मांग के बाद भी यदि सरकार लिपिक का वेतन विसंगति दूर नहीं करना चाह रही तो इसका तो सिर्फ यही मतलब निकाला जा सकता है कि सरकार खुद चाह रही कि सभी विभागों के लिपिक भ्रष्टाचार से ही अपने घर का खर्च चलाएं। वैसे सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कड़ा रूख लेती है, लगता है यह सब कहने वाली बात है। लेकिन सरकार को उन निर्दोष लिपिकों के बारे में सोचना ज़रूरी है जो मेहनत, ईमानदारी से काम करते हैं और बदले में उन्हें दासता की जिन्दगी मिलती है।
पंचायतीराज चुनाव और लिपिक - लिपिक संवर्ग को इस बात का एहसास हो जाना चाहिए कि आज वह अपनी मांगों को लेकर बहुत पिछड़ गये हैं। मध्यप्रदेश में पंचायतीराज चुनाव की आचार संहिता 4 दिसम्बर 2021 से लेकर 23 फरवरी 2022 तक लग गयी है। ऐसे में राज्य के सम्पूर्ण लिपिक कर्मचारियों को एक मंच पर लाकर मैदान में उतारना बहुत मुश्किल हो गया है। आचार संहिता के प्रभावी हो जाने की वजह से और चुनाव में व्यस्तता होने की वजह से कई सारे विभाग के लिपिक भाई बन्धुआ मज़दूर की तरह काम में लगे रहेंगे और अपनी मांगों को रखने का समय खोते जाएंगे।
पंचायत चुनाव के बाद लॉकडाउन- फरवरी के अन्त में चुनाव समाप्ति के बाद यह बात तो साफ है कि मध्यप्रदेश में लॉकडाउन लगेगा। यह लॉकडाउन नए वित्तीय वर्ष 2022-23 के अप्रैल माह से प्रभावी हो सकता है। ऑमिक्रॉन वेरिएण्ट/ कोरोनावायरस फिर से लिपिक वर्ग की मांगों को दरकिनार करने का एक बड़ा साधन बन जाएगा। आप इस लॉकडाउन और सरकार की मंशा को इस बात से ही समझ सकते हैं कि किस प्रकार मध्यप्रदेश की सरकार ने ऑमिक्रॉन को एक कन्सर्निंग वजह मानते हुए मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों की मांगों जैसे महंगाई भत्ता, आवास भत्ता, लिपिक वेतन विसंगति, पेंशनर्स का महंगाई भत्ता आदि के आंदोलन को रोकने के लिए तत्काल इमरजेंसी बैठक में किसी भी प्रकार के आन्दोलन/धरना प्रदर्शन पर रोक लगा दिया।
अधिकारी/अधिक वेतन पाने वाले/अन्य संवर्ग को लिपिक वेतन विसंगति से कोई लेना देना नहीं - लिपिक वर्गीय कर्मचारी संघ को लगता है कि मध्यप्रदेश अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा ही लिपिक वेतन विसंगति दूर कराएगा, लेकिन उनका यह भ्रम अब धीरे-धीरे टूट रहा है। मध्यप्रदेश के लिपिक के अतिरिक्त अन्य संवर्ग को लिपिकों के दर्द से कोई लेना-देना नहीं और इसका जीता-जागता उदाहरण यही है कि अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा ने लिपिक वेतन विसंगति को अपने ज्ञापन में उच्च वरीयता में कभी भी स्थान नहीं दिया।
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