यह बोलकर कि लिपिक वेतन विसंगति क्या है और क्या-क्या प्रताड़नाएं लिपिक साथी आज तक झेलते आये हैं, मैं आपका बहुमूल्य समय नहीं लेना चाहता हूँ। लिपिक वेतन विसंगति तो कई वर्ष पुरानी सज़ा है जिसका दु:ख आज का भी लिपिक झेल रहा है। अर्श से फर्श पर मध्यप्रदेश का लिपिक आ गया है। लिपिक वर्ग ने आये दिन लिपिक वेतन विसंगति के बारे में अलग-अलग सरकारों को अवगत कराया है, परन्तु आज दिनांक तक लिपिकों को सिर्फ और सिर्फ धोख़ा ही मिला है।
लिपिक वेतन विसंगति से न भटकें म.प्र. लिपिक कर्मचारी |
मेरी इस बात को अन्यथा और साधारण भाव में न लिया जाए। यह आम बात होती है यदि हम सभी किसी भी समस्या के लिए सिर्फ राजनेता और सरकार को जिम्मेदार ठहरा दें। हमने पूर्व में आपके सामने ऐसे कई घटनाएं रखा है जिससे यह साबित होता है कि सरकारी विभागों में काम करने वाले उच्च पद के लोग ख़ुद नहीं चाहते हैं कि लिपिकों का वेतन बढ़े। यही बात एक मध्यप्रदेश राज्य के अधिकारी ने बोला कि केन्द्र सरकार अपने लिपिकों को उतना ही ग्रेड पे दे रही है जितना हमारे प्रदेश के लिपिक प्राप्त कर रहे हैं, तो आखिर मध्यप्रदेश के लिपिक अपनी मांग पर क्यों अड़े हैं? शायद इन महानुभाव को यह नहीं पता कि केन्द्र और राज्य के भर्ती नियम व योग्यताएं अलग-अलग हैं, साथ ही पद के कर्तव्य भी अलग है। क्या यही तर्क अन्य पदों का वेतनमान निर्धारण हेतु केन्द्र से तुलना किया गया? पूर्व में जितने भी वेतन आयोग आये हैं, सभी में अन्य पदों को वैतनिक पुरस्कृत किया गया है, सिर्फ और सिर्फ लिपिक वर्ग कर्मचारियों को उच्च शिक्षा एवं सराहनीय कार्यप्रकृति के बावजूद भी उनका शोषण करने के लिए उनके साथ ऐसी नीति अपनाई गई है।
सरकार कोई भी फैसला लेने से पहले ऐसे उच्च पदों में बैठने वालों की राय लिया करती है, अधिकांशत: उदाहरण सामने आया है कि यही वो असली लोग हैं जो सरकार को लिपिकों की वेतन विसंगति दूर न करने की सिफ़ारिश किया करते हैं। सन् 2018 में आये आदेश के मुताबिक 2016 से कई पदों का वेतनमान सरकार ने पुन: बढ़ा दिया, सिर्फ और सिर्फ लिपिक को अकेला छोड़ दिया गया। लिपिक वर्ग के साथ अन्याय, अत्याचार, शोषण किया गया, लेकिन किसी भी पद का कोई भी न तो व्यक्ति विशेष और न ही कोई संगठन लिपिक के समर्थन में आया। यह एक ऐतिहासिक बात है।
हाल ही में राजस्थान की अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार ने अपने सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बहाल करने का निर्णय लिया, जो सन् 2004 की बाद सरकारी सेवा में आये हैं। नई पेंशन योजना को हटाकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी ने ऐतिहासिक व सम्मानजनक फैसला लिया है। इसके बाद से मध्यप्रदेश व अन्य राज्य के सरकारी कर्मचारी लगातार नई पेंशन योजना को हटाकर पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना सिर का दर्द है जिसपर मरहम लगाकर राजनीति चमकाने के लिए कांग्रेस एवं विपक्षी दल के नेता सामने आ रहे हैं। भले कुछ भी हो, पुरानी पेंशन योजना सही है, एवं इससे सरकारी कर्मचारियों को अधिक लाभ होगा, इसलिए यह स्वागत योग्य है।
मध्यप्रदेश के लिपिक कर्मचारियों की वेतन विसंगति दूर कराने की मांग कई वर्ष पुरानी है। इसे पिछले विधानसभा चुनाव 2018 से पहले ही दूर किया जाना था, परन्तु अब यह मुद्दा हल्का पड़ गया है। लिपिकों में महंगाई भत्ता, आवास भत्ता, पुरानी पेंशन योजना आदि की अधिक चिन्ता है, और चिन्ता इस बात की भी है कि कहीं यदि लिपिक अपने वेतन विसंगति की मांग को खुलेआम सबके सामने रखेंगे तो अन्य क्या सोचेंगे? वे लोग जो लिपिक से कम वेतन पाया करते थे और आज लिपिक से अधिक वेतन पा रहे हैं, वे लिपिकों का मज़ाक उड़ायेंगे? लिपिक अपनी मांग रखने में शर्मशार महसूस होता है, क्योंकि लिपिक मान चुका है कि उसकी क्षमता और पद की कीमत एक अनुसेवक की ही तरह है। लिपिकों को लिपिक वेतन विसंगति के मुद्दे से भटकाने का मुख्य काम सरकारी विभागों में कार्यरत अन्य छद्म प्रकृति के कुछ लोग भी कर रहे हैं, और कुछ ऐसे भी लिपिक जिन्हें ईमानदार लिपिक और उनकी कराह सुनाई नहीं दे रही।
विधानसभा चुनाव को अब सिर्फ कुछ महीने ही बचे हैं। कोरोना का इस्तेमाल कभी भी किया जा सकता है। लिपिक वेतन विसंगति से बढ़कर कई अन्य मुद्दे सामने आएंगे, जबकि असल में लिपिक वेतन विसंगति हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है। लिपिक यदि कोई ज्ञापन सौंपता है तो उसमें महंगाई भत्ता, आदि मांगों के साथ-साथ ऐसे लोगों की भी आवाज़ उठाता है जो लिपिक से संबंधित है ही नहीं। लिपिक कर्मचारियों की हालात दयनीय है और उसकी सोच और दूरदर्शिता उसकी बर्बादी की कहानी लिख रही है।
लिपिक कर्मचारियों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि आवास भत्ता, महंगाई भत्ता, पुरानी पेंशन योजना सभी सरकारी कर्मचारियों का मुद्दा है, यदि इनमें से कोई आदेश सरकार के द्वारा किया जाता है तो इसका प्रभाव सभी सरकारी कर्मचारियों पर होगा। दूसरी बात यह है कि वेतनमान के अनुसार ही आपकी महंगाई भत्ता, पुरानी पेंशन योजना आदि के लाभ का निर्धारण होता है। तो यदि आपकी वेतन विसंगति दूर नहीं हुई तो अन्य भत्ते बढ़ जाने के बाद भी आपकी स्थिति सापेक्ष गरीबी की रहेगी। एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि लिपिक वेतन विसंगति के अलावा अन्य मांगे अधिक उपयोगी हैं, लिपिक कर्मचारी अपनी मुख्य मांग से भटक चुके हैं। लिपिक संवर्ग के नेता भी न जाने क्यों लिपिक वेतन विसंगति के बारे में कोई कदम नहीं उठा रहे हैं।
लिपिक साथियों, जागो और अपने हक़ की मांग करो। लिपिक वेतन विसंगति को राज्यव्यापी मुद्दा बनाओ। लिपिक वेतन विसंगति के अलावा अन्य मांगे आपके लिए नहीं हैं, अन्य मांगे अन्य संवर्ग एवं अन्य पद के कर्मचारियों के लिए छोड़ दो। उच्च पदों में काम करने वाले मध्यप्रदेश के अधिकारी/कर्मचारी स्वयं सरकार से बात कर पुरानी पेंशन योजना जैसी मांगें मनवा लेंगे जब बात उनपर आयेगी तो, वैसे पुरानी पेंशन योजना आगामी विधानसभा चुनाव से पहले ही बहाल होने की पूरी सम्भावना है। मध्यप्रदेश के लिपिकों को सर्फ एक शस्त्र की तरह प्रयोग किया जाता रहा है, आपको सड़क पर उतारकर, आपको प्रताडि़त कराकर अन्य सभी अपनी मांगों को मनवाने का सहारा लेंगे लेकिन जब बात लिपिक वेतन विसंगति की आयेगी तो पूर्व की तरह आपके लिए बोलने वाला कोई न होगा। समय के साथ अन्य सभी भत्ते मिल जाएंगे, लेकिन लिपिक वेतन विसंगति दूर इस बार नहीं हुई तो इसका अफ़सोस लिपिक के लिए हमेशा के लिए रहेगा।
चेतावनी - इस लेख का उद्देश्य किसी भी राजनीतिक पार्टी को समर्थन या विरोध करना नहीं है। न ही हमारा उद्देश्य विभिन्न पदों के कर्मचारियों के मध्य स्नेह को विरोध में बदलना है। हमारा उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ मध्यप्रदेश के मेहनती, ईमानदार, सभ्य लिपिकों की वेतन विसंगति को दूर कराना है। लिपिक सरकारी विभागों में रीढ़ की हड्डी की तरह कार्य करता है, परन्तु लिपिक वर्ग का मध्यप्रदेश में शोषण हो रहा है। लिपिक को उसकी पद गरिमा के अनुसार वेतन दिया जाना न्यायोचित है। लिपिक वर्ग के विकास के साथ ही मध्यप्रदेश का विकास जुड़ा है, इसलिए एक अच्छे मध्यप्रदेश के निमार्ण हेतु यह लेख लिखा गया है।
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