मध्यप्रदेश लिपिक वेतन विसंगति को इस नज़रिये से देखना कि लिपिकों का वेतनमान बढ़ाया जाना चाहिए, नाकाफी है। लिपिक वेतन विसंगति का दंश मध्यप्रदेश के सभी लिपिक साथी झेल रहे हैं, उनकी बात नहीं कर रहा जो ऊपरी कमाई में इस कदर व्यस्त हैं कि उनको अपने वेतनमान से कुछ लेना देना नहीं है। लिपिक वेतन विसंगति के दर्द का स्तर अलग-अलग लिपिकों में अलग-अलग है क्योंकि दुर्भाग्य इस बात का है कि लिपिकों की भर्ती के लिए अलग-अलग योग्यता रही है और विभिन्न विभागों में परीक्षा का स्तर भी अलग-अलग रहा है।
लिपिकों का वेतन 1980 के ज़माने तक आज के 2800, 3200 ग्रेड पे पाने वाले पदों से भी अधिक था, परन्तु जितने वेतन आयोग आये, सभी में लिपिकों का वेतन स्थिर रखकर अन्य पदों का वेतन बढ़ा दिया गया। आज लिपिक का कार्य गुणवत्ता व कार्यबोझ बढ़ा ही है परन्तु उसकी योग्यता व स्तर के हिसाब से वेतन नहीं मिल रहा है। कुछ लिपिक जो उच्च योग्यता व कार्य का सम्पादन कर रहे होते हैं, एक उम्मीद रहती है कि लिपिकों की वेतन विसंगति दूर हो जाएगी, लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि सरकार लिपिकों की वेतन विसंगति कभी दूर नहीं करने वाली।
कोई भी नियोक्ता यदि मज़दूर को नियुक्त करना चाहता है तो उसकी प्राथमिकता होती है कि उच्च कौशल का मज़दूर मिल जाए जो कम वेतन में काम करने को तैयार रहे। आज के मध्यप्रदेश लिपिक इन्हीं मज़दूर की तरह हैं। एक अच्छा प्रशासन चलाने के लिए आवश्यक है कि मज़दूरों को उनकी कौशल पर गर्व करने का मौका ही न दिया जाए अन्यथा वे बगावत कर सकते हैं, इसी प्रकार मध्यप्रदेश लिपिकों का वेतनमान आये दिन जितने भी वेतन आयोग रहे हैं सभी में लिपिकों को स्थिर रखकर उनका हक़ मारा गया है। मध्यप्रदेश लिपिक मज़बूरी में मज़दूरी करते हैं क्योंकि उनकी रोजी-रोटी का सवाल रहता है।
मुझे याद है सन् 2018 में जब कई सारे पदों का वेतनमान बढ़ा दिया गया और 7 वां वेतन आयोग आया तो लिपिकों को भी एक आशा की उम्मीद थी कि उनका भी वेतनमान बढ़ेगा, लेकिन उनको मिला धोख़ा। रमेशचन्द्र शर्मा कमेटी 2016 में बनकर जल्द ही सरकार के सामने रिपोर्ट सौंप दी थी लेकिन सरकार को लिपिक वेतन विसंगति दूर करना ही नहीं था, इसलिए सरकार ने दर्दनाक और भावुक लिपिक आन्दोलन के बाद भी लिपिकों का वेतन नहीं बढ़ाया। सरकार को अब उच्च योग्य और गुणवत्तापूर्ण काम करने वाले बाबुओं को रोता देख और मज़ा आने लगा। सरकारी कार्यालयों में काम करने वाले वे उच्च व्यक्तित्व भी लिपिकों के बारे में वही राय रखे जो रूढि़वादी था, कि यदि केन्द्र का बाबू 1900 ग्रेड पे पा रहा है तो मध्यप्रदेश के बाबुओं को इतनी तड़प क्यों मच रही है। अफ़सोस कि उन व्यक्तित्व को इस बात का पता होता कि मध्यप्रदेश का आज का बाबू जो इतनी तड़प रख रहा है उसकी योग्यता के लिए आपने स्नातक, पीजीडीसीए, सीपीसीटी जैसे चरणों को आगे ला दिया है। ख़ैर इन सबके बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं।
एक लिपिक हितैषी बुज़ुर्ग का मुझे मैसेज आया और उन्होंने बोला कि तुम लिपिकों के बारे में क्या किये हो आज तक? तुम्हारा लेख लिखना और लिपिक वेतन विसंगति के बारे में वीडियो बनाने से कुछ नहीं होगा। मैंने विनम्रतापूर्वक उनसे पूछ लिया कि आपके ज्ञापन सौंपने से क्या हो गया? आपने क्या किया आज तक जो कि मुझसे पूछ रहे हैं कि लिपिकों के बारे में मैं जो कर रहा हूँ वो सही है या नहीं। वैसे भी मध्यप्रदेश सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना बहाली की माँँग हेतु कितने ज्ञापन नहीं सौंपे, लेकिन सरकार को नहीं देना था पुरानी पेंशन तो नहीं दी, क्या कर लिया सरकारी कर्मचारियों ने, इतना ही न कि तारीख आगे बढ़ा दिया। महँगाई भत्ता के लिए भी ज्ञापन सौंपा, लेकिन यह सोचना कि उनके ज्ञापन या आन्दोलन की वजह से सरकार ने महँगाई भत्ता बढ़ाया है तो यह भी सही नहीं है। यदि सरकार को आन्दोलन या ज्ञापन की फिक्र ही होती तो आपके ज्ञापन के अनुसार डीए का एरियर, आवास भत्ता आदि प्रदान कर देती। इसी प्रकार ज्ञापन लिपिक वेतन विसंगति के बारे में कितने नहीं दिये जा चुके हैं, सरकार को लिपिक वेतन विसंगति दूर नहीं करना है तो नहीं करेगी।
आज जो मानसिक प्रताड़ना एक मध्यप्रदेश लिपिक झेल रहा है वह शब्दों से बयांं नहीं किया जा सकता है। आर्थिक रूप से मध्यप्रदेश के लिपिक को तोड़ दिया गया है। मध्यप्रदेश के जो लिपिक कुछ नहीं कर सकते, जिनको दूसरों को नीचा दिखाने में ही मज़ा आता है और खुद नकारे हैं, वही लिपिक मध्यप्रदेश लिपिक वेतन विसंगति से कोई लेना देना नहीं रखते और जो कोई लेख या वीडियो के माध्यम से लिपिक के साथ होते हुए अन्याय हो उजागर करना चाहता है, उसकी नकारात्मक आलोचना पर उतारू हो जाते हैं। लिपिक एकता और एकरूपता दूर की बात है, यह कभी सम्भव है ही नहीं।
आन्दोलन के कई तरीके हैं। हड़ताल के भी कई तरीके हैं। आन्दोलन व हड़ताल इसीलिए किया जाता है कि बकाया जनता आपके दर्द को समझ सके। आन्दोलन व हड़ताल का यह अर्थ कतई नहीं है कि आप पब्लिक प्रोपर्टी का तोड़फोड़ करें, या सड़क पर बैठकर औरों को परेशान करें। आज यदि आधी आबादी सोशल मीडिया पर है तो आखिर हम क्यों न सोशल मीडिया पर भी आन्दोलन करें। सोशल मीडिया पर आन्दोलन व बात रखने के लिए हमें आबादी दिखाने की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि सही और सटीक बात सही दिशा में कम समय में पहुँच जाती है। जिनको लिपिक वेतन विसंगति के बारे में चिन्ता है और वह सोशल मीडिया पर आन्दोलन से खुश नहीं होते तो उनको स्वयं कोई और रास्ता बनाना चाहिए। अफ़सोस इसी बात का है कि हमारे बहुत सारे लिपिक साथी ऐसे हैं जो ख़ुद कुछ नहीं करते या करना चाहते, बल्कि यदि कोई किसी भी माध्यम से लिपिक वेतन विसंगति के बारे में आवाज़ उठाना चाहता है तो उसका मज़ाक ज़रूर उड़ाते हैं। वैसे भी ऐसे लिपिकों की व ऐसे लोगों के वक्तव्य की कोई अहमियत नहीं जो लिपिक वेतन विसंगति के मुद्दे को गम्भीरता से न ले।
लिपिक वेतन विंसगति एक लहर की तरह असर दिखाई है। शुरूआती वेतन आयोग में लिपिक वेतन विसंगति का असर अधिक नहीं दिखा है, लेकिन जैसे अगले 2 और वेतन आयोग आये व लिपिकों को अपेक्षयाकृत कमतर रखा गया, लिपिकों का अधिक आर्थिक नुकसान हुआ है। लिपिकों को यह बात ध्यान देनी चाहिए कि कम्पाउण्ड इन्टरेस्ट की तरह ही अगले वेतनआयोग में जो शायद 2026 में अर्थात् 4 साल बाद ही आ जाए, नुकसान उठाना पड़ेगा। लिपिकों की योग्यता तो बढ़ी है, काम का बोझ भी बढ़ा है, लेकिन सम्मान के मामले में अनुसेवक की तरह ही आपको समझा जाता है। आपकी आर्थिक स्थिति इतनी कम है कि आप अपना परिवार सही तरीके से नहीं चला पा रहे और आये दिन यह परेशानी बढ़ती ही जाएगी। लिपिक की योग्यता उच्च है, लेकिन 10वीं पास जो निम्नतम स्तर पर भर्ती किये जाते हैं उनको लिपिकों से अधिक वेतनमान प्राप्त हो रहा है।
लेख का सार यही है कि लिपिकों को वेतन विसंगति भूल जाना चाहिए। जिस प्रकार लिपिक 2021 के मौके को गवां दिये, उसी तरह आगे 1 साल और ख़ामोश बैठे रहें। लिपिकों को भीड़ में शामिल होने के लिए और तान से तान मिलाने के लिए पुरानी पेंशन बहाली, महंगाई भत्ता व एरियर, आवास भत्ता, पदनाम परिवर्तन आदि मुद्दे तो हैं ही। मेरे लेख लिखने का उद्देश्य यही है कि जो लिपिक कुछ कर रहे नहीं, वे बेवजह मुझे परेशान इस बात को लेकर न करें कि तुम्हारे वीडियो और लेख के माध्यम से लिपिक वेतन विसंगति के बारे में बोलने से कुछ नहीं होगा। कम से कम जो लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने के लिए आगे नहीं आ सकते, वे ज़रा किसी का मनोबल न तोड़ें। रही बात दूसरी, तो न ही मैं लिपिक एकता में यक़ीन करता और न ही इन लोकाचार में फंसना चाहता। दु:ख उस वक्त अधिक होता है जब हरियाणा के लिपिक 35400 बेस पे जबकि राजस्थान के लिपिक 3600 ग्रेड पे की मॉंग करते हैं, वैसे इन दोनों राज्यों के लिपिकों का वेतनमान मध्यप्रदेश के लिपिकों से कहीं बेहतर है। दूसरी तरफ हम जिस योग्यता पर भर्ती हुए हैं उसकी बात तो दूर, हमारे नेता मॉंग करते हैं कि पदनाम परिवर्तन करो और लिपिकों की योग्यता 12वीं ही रखी जाए और सीपीसीटी हटा दिया जाए। भला योग्यता हटाने और इसमें उलझने से लिपिकों का क्या भला होने वाला है, जो उच्च योग्यता वाले लिपिक हैं उनका तो भविष्य इस भीड़ में अन्धकारमय ही होगा।
वीडियो देखें- मध्यप्रदेश लिपिक वेतन विसंगति पर सब चुप | शोषण की नीति ने बाबुओं को बर्बाद कर डाला ...
चेतावनी- इस लेख को अन्यथा न लिया जाए। हमने सिर्फ एक प्रत्युत्तर के रूप में इस लेख को लिखा है। लिपिक से मुझे भी कोई ज्यादा लेना-देना नहीं है, लेकिन जब पूर्णनिष्ठा से कार्य करो और योग्यता एवं कार्यप्रकार के विरीत अत्यल्प वेतन मिले जो सम्मान को धुंधला करने वाला हो, तो चुपचाप अन्याय और अत्याचार सहन करना भी मानवीय व नैतिक मूल्यों के खिलाफ है। इस लेख का उद्देश्य किसी भी राजनीतिक पार्टी को सपोर्ट करना या अपोज करना नहीं है और न ही किसी भी सरकारी योजना का खिलाफ़त है। एक बेहतर और खुशहाल मध्यप्रदेश की कामना लेखक करता है।
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