मध्यप्रदेश में पुरानी पेंशन योजना बहाल होना अत्यंत आवश्यक है। जो सरकार पुरानी पेंशन योजना बहाल नहीं करेगी वह मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के आक्रोश का प्रकोप झेलेगी, ऐसे मध्यप्रदेश के सभी कर्मचारी संगठनों ने कह दिया है। मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है और कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को जमकर तूल दे रही है। कांग्रेस उन सभी मुद्दों को उठा रही है जो उसका वोट बैंक हो सकता है। मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियाें को उम्मीद थी कि इसी बजट सत्र के 9 मार्च 2022 की विधानसभा बैठक में ही सरकार पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दे, लेकिन सरकार ने साफ-साफ मना कर दिया।
नई पेंशन योजना के समर्थन में विधानसभा में और बाहर कई सारे व्यक्तित्व नज़र आते हैं जो स्वयं पुरानी पेंशन योजना का लाभ ले रहे होते हैं। पुरानी पेंशन योजना ईमानदार और कर्मठ कर्मचारियों के लिए है, न कि भ्रष्ट और काली कमाई करने वालों के लिए, ऐसा कुछ नागरिक भी बोल रहे और ऐसा भी बोल रहे कि हम इन भ्रष्ट लोगों को अपने टैक्स के पैसे पर मज़े कैसे करने दें। यह बात अलग है कि ईमानदारी की आज सरकारी कार्यालयों में कोई जगह नहीं है, इस बेईमानी भरे माहौल में गरीब किस्म के कुछ मेहनती, योग्य और ईमानदार छोटे कर्मचारी भी पिस जाते हैं, ये कर्मचारी छोटी योग्यता या छोटा कार्यप्रकार के नहीं होते, वेतनमान की वजह से इनको छोटा कर्मचारी बोला जाने लगा है, जी हॉं, हम बात कर रहे हैं लिपिकों के बारे में।
जब 9 मार्च 2022 को शिवराज सरकार ने साफ-साफ कह दिया कि पुरानी पेंशन योजना मध्यप्रदेश में लागू नहीं होगी तो कांग्रेस ने इसे आपदा में अवसर की तरह देखा और विधानसभा में इस मुद्दे को लेकर 11 मार्च 2022 को ख़ूब हंगामा किया। बीजेपी के नेता ने तो नई पेंशन योजना और उस पर निर्धारित बजट की ख़ूब तारीफ़ की, जबकि कांग्रेस के पी.सी. शर्मा जी ने कुछ यूँ कहा-
''मैं कर्मचारियों के बारे में कहना चाहता हूँ। मुख्यमंत्री जी यहां बैठे हुए हैं, इसलिए निवेदन करना चाहता हूँ, जो बात आई कि 1 अप्रैल से आपने महंगाई भत्ता दिया है, उसका पिछला एरियर भी कर्मचारियों को दिया जाना चाहिए, क्योंकि कोरोना काल में कर्मचारियों ने बहुत सेवा की है, वे भी आर्थिक तंगी से परेशान हैं और दूसरा वर्ष 2005 के पहले की पेंशन के बारे में कहना चाहता हूँ कि आदरणीय मुख्यमंत्री जी वर्ष 2005 के पहले की पेंशन को बहाल करें। छत्तीसगढ़, राजस्थान ने इसको लागू कर दिया है, क्योंकि ये पूरा मामला कर्मचारियों के हित में है। ''
इतना ही नहीं, कांग्रेस जानती है कि उनका वोट बैंक आगे चलकर यही कर्मचारी होंगे। कुछ अन्य मुद्दे जैसे शिक्षक नियुक्ति पर भी पी.सी. शर्मा जी ने चिन्ता जताई है और बोला कि चयनित शिक्षकों को नियुक्ति दी जाए। परन्तु कांग्रेस एवं सभी पार्टी के सभी लोग भूल चुके हैं कि लिपिक वेतन विसंगति भी कोई मुद्दा रहा है। लिपिकों का शोषण पिछले 40 वर्षों से होता आ रहा है। कोई भी सरकार हो, सभी ने लिपिकों के शोषण को बढ़ावा ही दिया है। लिपिकों ने कितने ज़ुल्म सहे, कितनी लाठियॉं खाईं, लिपिकों के बच्चे भूखे पेट सो जाते हैं। लिपिक वेतन विसंगति पर लिपिक अपना वेतन बढ़ाने के लिए हाथ नहीं फैला रहे, लिपिकों को इस बात का दर्द अधिक है कि उच्च योग्यता पर लिपिकों की भर्ती की जाती है, जबकि लिपिकों का वेतन चपरासी के समतुल्य होता है। इसी वजह से लिपिकों को चपरासी के समान ही समझकर कार्यालयों एवं कार्यालय के बाहर अपमानित किया जाता है। लिपिकों से उच्च योग्यता का काम तो कराया ही जाता है, ऊपर से लिपिकों को मिलता है अवसादग्रस्तता।
जितनी भी सरकारें आईं, सभी ने लिपिकों के वेतन विसंगति दूर करने के वायदे किये। बीजेपी ने 2018 में लिपिकों से छल किया था तो लिपिकों ने कांग्रेस को समर्थन किया और कांग्रेस ने अपने संकल्पपत्र में लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने का वचन दिया था, लेकिन जब कांग्रेस की सरकार आई तो उन्होंने भी लिपिकों को धोखा ही दिया। लिपिक के आंसू सभी के लिए मज़े का एक साधन बन गया है। लिपिकों के बच्चे/परिवार आधा पेट खाना खाते हैं, अपमान सहन करते हैं वह भी उच्च योग्यता होने के बाद और उच्च स्तर का कार्य करने के बाद। लिपिकों की आह उन उच्च पद पर बैठै जिम्मेदारों को अवश्य लगेगी जो इंसानियत को तार-तार करके मानवीय मूल्यों को भूलकर लिपिकों का शोषण करने में अमादा हैं।
विधानसभा सत्र में सबकी बात हुई सिवाय लिपिकों के, यह बात तो समझ में आ गई। लेकिन तथाकथित प्रान्त स्तरीय लिपिक नेता इस मुद्दे को गम्भीरतापूर्वक क्यों नहीं ले रहे, यह बात समझ नहीं आ रही। लिपिक नेताओं को पिछले वर्ष 2021 से ही सिर्फ एकसूत्रीय मांग लिपिक वेतन विसंगति के लिए आन्दोलन की राह पर आना चाहिए था, लेकिन लिपिकों को स्वयं के सम्मान से अधिक प्रिय भीड़ का हिस्सा बनकर खुद को झूठे सम्मान की दिलासा दिलाना है। यदि लिपिक वेतन विसंगति 2022 में दूर नहीं हुई तो यक़ीन मानिए यह कभी दूर नहीं होगी, और आने वाले उच्च योग्य लिपिक एक अनुसेवक की तरह वेतन पाएंगे और अपने ज़मीर को मारकर जिन्दगीभर के लिए अनुसेवा में लगे रहेंगे और यूंही अपमानित होते रहेंगे।
चेतावनी- इस लेख का लेखक से कोई सम्बंध नहीं है। लेखक को किसी लिपिक ने ऐसी बातें शेयर कीं तो लेखक ने लिख दिया। लेखक न ही किसी राजनैतिक पार्टी का समर्थन करता है और न ही विरोध। लेखक सरकार की समस्त योजनाओं का समर्थन करता है और एक बेहतर तथा खु़शहाल मध्यप्रदेश की कल्पना करता है।
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