मध्यप्रदेश की जनता पिछले कई वर्षों से राजनीतिक उदासीनता देख रही है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों सरकारें अलग-अलग समय में कर्मचारी विरोधी साबित हुई हैं। मध्यप्रदेश में विधानसभा के बजट सत्र में बीजेपी सरकार ने साफ-साफ कह दिया कि पुरानी पेंशन योजना मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के लिए बहाल नहीं की जाएगी। कुछ ही दिन पहले जब राजस्थान की कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा की तो देश के साथ-साथ प्रदेश कर्मचारियों में पुरानी पेंशन योजना बहाली हेतु आशा की किरण जाग उठी।
म.प्र. पुरानी पेंशन बहाली संघर्ष |
जैसे ही शिवराज सरकार ने पुरानी पेंशन बहाल न करने की घोषणा की, मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारी आक्रोशित हो गये, बोलने लगे कि विधानसभा चुनाव 2023 में हम बीजेपी को वोट नहीं देंगे और कुछ तो बोलने लगे दोनों को नहीं देंगे। यह बात अब सोशल मीडिया फेसबुक, ट्विटर, आदि पर चलने लगी है कि कर्मचारी पुरानी पेंशन के लिए ऐसी सरकार को चुनेंगे जो उनका हित चाहे। लेकिन कर्मचारियों को इस बात का ध्यान देना ज़रूरी है कि मध्यप्रदेश सरकार कभी नहीं चाहेगी कि कर्मचारियों का लाखों का वोट बैंक उससे छिन जाए। दोनों राज्य जिसने पुरानी पेंशन योजना लागू किया है, कांग्रेस शासित हैं।
क्यों बीजेपी शासित राज्य नहीं कर रहे पुरानी पेंशन योजना लागू- 2005 व उसके बाद के सभी सरकारी कर्मचारियों पर नई पेंशन योजना लागू करने की पहल भारतीय जनता पार्टी के अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने किया था। केन्द्र में आज बीजेपी की ही सरकार है और यदि कोई बीजेपी शासित राज्य पुरानी पेंशन योजना बहाल कर भी दे तो इसका मतलब केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच टकराव होगा। यह भी बात साफ है कि पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा राष्ट्रव्यापी आन्दोलन का रूप ले चुका है तो न चाहते हुए भी केन्द्र सरकार के साथ-साथ बीजेपी शासित राज्यों को भी पुरानी पेंशन बहाल करना ही होगा, यदि नहीं किया तो सरकार का बदलना तय है।
मध्यप्रदेश के कर्मचारी नहीं चाहते बीजेपी और कांग्रेस को- बीजेपी की शोषण की नीति तो सभी झेल ही रहे हैं, किस प्रकार से आवास भत्ता छठे वेतनमान के हिसाब से आज तक दिया जा रहा है, साथ ही साथ महंगाई भत्ता और एरियर का लाखों का नुकसान, लिपिक वेतन विसंगति, आदि ऐसे मुद्दे हैं जिससे साफ होता है कि मध्यप्रदेश की सरकारें कर्मचारी विरोधी रही हैं।
जब कांग्रेस की कमलनाथ की सरकार थी तो उन्होंने भी कोरोना महामारी न होने के बावजूद कर्मचारियों का महंगाई भत्ता जुलाई 2019 का रोक रखा था और बाद में जब सरकार गिरने लगी तो 5 प्रतिशत मारा हुआ महंगाई भत्ता देने का आदेश दिया, लेकिन बदली हुई सरकार ने उस महंगाई भत्ते को रूकवा दिया। कमलनाथ की ही कांग्रेस की सरकार ने कर्मचारी विरोधी कानून तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों के लिए जो लोक सेवा आयोग के अलावा भर्ती तरीकों से भर्ती की जाने को थीं, 70, 80, 90 प्रतिशत का स्टायपेंड नियम लागू करवा दिया, इस वजह से छोटे कर्मचारियों का आर्थिक शोषण बढ़ा ही है। कोई भी छोटा कर्मचारी कांग्रेस को दोबारा सत्ता में नहीं लाना चाहेगा, और साथ ही साथ उस सरकार को जो ऐसे काले कानून को अपने शासनकाल में भी ज़ारी रखे हुये है।
बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने लिपिक वर्गीय कर्मचारियों का शोषण किया और करवाया- लिपिक वेतन विसंगति कई वर्ष पुराना मुद्दा है। उच्च योग्यता रखने वाले लिपिक कर्मचारियों को अनपढ़/पॉंचवी/आठवीं पास चपरासियों के समान वेतन दिया जा रहा है। लिपिकों में इस बात का आक्रोश है, और लिपिक जब-जब अपनी मॉंग सरकार के समक्ष रखे हैं, सरकारों ने धोखा ही दिया है। इस वजह से भी लिपिक वर्गीय कर्मचारी न तो कांग्रेस को पसंद कर रहा और न ही बीजेपी को। जिस कांग्रेस ने कर्मचारियों का अपने शासनकाल में ध्यान नहीं दिया, वही अब पुराने पेंशन के मुद्दे पर कर्मचारी समर्थक बता रहे स्वयं को।
आम आदमी पार्टी मध्यप्रदेश में बना सकती है सरकार- आज 10 मार्च 2022 को पंजाब विधानसभा चुनाव का परिणाम आने को है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने वाली है। लोगों ने बदलाव स्वीकार किया है। यही बदलाव मध्यप्रदेश के लाखों सरकारी कर्मचारी चाह रहे हैं। मध्यप्रदेश की जनता एक ही सिक्के के दो पहलुओं बीजेपी और कांग्रेस से तंग आ चुकी है। चूंकि यह राष्ट्रीय मुद्दा है, तो आम आदमी पार्टी अवश्य ही मध्यप्रदेश में अपनी सरकार बनाना चाहेगी, तब कहीं न कहीं मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों का भला हो सकेगा और ये कर्मचारी केन्द्र के समान आवास भत्ता, महंगाई भत्ता, पुरानी पेंशन, लिपिक वेतन विसंगति जैसे मुद्दों को हल कर पाएंगे। वैसे यह एक सम्भावना ही है, लेकिन अपेक्षया कांग्रेस का पलड़ा बीजेपी पर भारी पड़ रहा है।
चेतावनी- इस लेख का लेखक से कोई लेना देना नहीं है। लेखक सिर्फ सुनी-सुनाई बातें लिखा है। लेखक न ही किसी पार्टी का समर्थन करता है और न ही विरोध।
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