eDiplomaMCU: हिन्‍दी भाषा का क्रमश: विकासक्रम एवं रोचक तथ्‍य

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Tuesday, May 26, 2020

हिन्‍दी भाषा का क्रमश: विकासक्रम एवं रोचक तथ्‍य

हिन्‍दी भाषा एक ऐसा विषय है जोकि विभिन्‍न परीक्षाओं के लिए महत्‍वपूर्ण है। जब हम हिन्‍दी की बात करते हैं, इसका अर्थ केवल यह नहीं होता कि हम व्‍याकरण या पाठ्यक्रम को ध्‍यान में रखकर अध्‍ययन करें। बहुत महत्‍वपूर्ण होता है कि हम भाषा के क्रमबद्ध इतिहास को जानें-समझें। तो इसी कड़ी में आज हम हिन्‍दी के इतिहास को परीक्षा की दृष्टि से समझेंगे। आपको हमारा यह प्रयास अवश्‍य ही पसंद आएगा एवं आप देख पायेंगे की परीक्षा में हिन्‍दी भाषा के इतिहास से संबंधित समस्‍त प्रकार के प्रश्‍न आप आसानी से हल कर पा रहे हैं।

भाषा - विचार आदान-प्रदान करने का एक माध्‍यम जो ध्‍वनिक सिद्धांत पर कार्य करता हो। जैसे- अंग्रेजी

विभाषा- भाषा की एक ऐसी शाखा जिसके अन्‍तर्गत कई बोलियॉं आती हों। इसमें साहित्‍य होता है, किसी राज्‍य की राज्‍यभाषा हो सकती है जैसे मैथिली बिहार की।

उपभाषा - विभाषा के समतुल्‍य परन्‍तु उपभाषा भाषा की ऐसी शाखा है जिसके अन्‍तर्गत कई सारी बोलियॉं आती हों परन्‍तु इसमें साहित्‍य की कमी, कोई खुद का देश / क्षेत्र नहीं, बोलने पर प्रतिष्ठित न लगे उसे उपभाषा संज्ञा देते हैं। उदाहरण- छत्‍तीसगढ़ी, राजस्‍थानी, हरियाण्‍वी आदि।

बोली- किसी ग्राम, मण्‍डल या सीमित क्षेत्र में प्रचलित भाषा की सूक्ष्‍म इकाई। निर्धारित दूरी पर बोली बदल जाती है। 


जब किसी बोली में साहित्‍य की रचना होने लगती है तो वह विभाषा का रूप ले लेती है, परन्‍तु मानक रूप, व्‍याकरण इत्‍यादि के फलस्‍वरूप ही विभाषा को भाषा के रूप में स्‍वीकार्य किया जाता है। किसी विभाषा को भाषा के रूप में मान्‍यता प्राप्‍त होने के लिए लोगों के समर्थन की आवश्‍यकता होती है। 

हिन्‍दी भाषा के इतिहास को समझने का आसान तरीका है कि यह भारोपीय भाषा में भारतीय-ईरानी के अन्‍तर्गत आती है। वैदिक सभ्‍यता आर्य लोग के आने से भारत में भारोपीय भाषा जिसका आधुनिक परिष्‍कृत रूप हिन्‍दी है, का उद्गम हुआ। आइये देखते हैं कालक्रम-

वैदिक संस्‍कृत - १५०० ईसा पूर्व से १००० ईसा पूर्व
पालि भाषा - १००० ईसा पूर्व से ५०० ईसा पूर्व
प्राकृत -  ५०० ईसा पूर्व से प्रथम शताब्‍दी
अपभ्रंश - प्रथम शताब्‍दी के बाद से १००० ईस्‍वी
अवहट्ट - नवीं शताब्‍दी से १००० ईस्‍वी
प्राचीन हिन्‍दी - ११०० ईस्‍वी से १४०० ईस्‍वी
मध्‍य हिन्‍दी - १४०० ईस्‍वी से १८५० ईस्‍वी
आधुनिक हिन्‍दी - १८५० ईस्‍वी के बाद से अब तक 


महाजनपद काल में शूरसेन नामक एक महाजनपद था जो समयानुसार अपभ्रंश पश्‍चात् शौरसेनी का रूप लिया जो पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में प्रचलित है। शौरसेनी के उदाहरण ब्रज, बुन्‍देली, कन्‍नौजी, हरयाण्‍वी तथा राजस्‍थानी एवं गुजराती भी इसी शौरसेनी से विकसित हुई हैं।

पश्चिमी हिन्‍दी के ही अन्‍तर्गत खड़ी बोली आती है जिसमें अमीर खुसरो ने बहुत सी रचनाऍं अमीर खुसरो ने की। इसी खड़ी बोली में गद्य की रचना भारतेन्‍दु हरिश्‍चन्‍द्र ने की व आगे चलकर गद्य व पद्य दोनों में महावीर प्रसाद ने रचना की। 

शौरसेनी ही प्रमुखया पश्चिमी हिन्‍दी का आधार बनी। शौरसेनी से ही प्रभावित खस नाम एक अपभ्रंश का उदय हुआ जो तद्नुसार पहाढी हिन्‍दी का जन्‍म हुआ।

ब्रांचड अपभ्रंश ने सिंधी, पंजाबी को उदय किया। 

उपर्युक्‍तानुसार महाजनपद काल में उत्‍तर भारतीय एक मगध जनपद था जोकि बाद में मागधी अपभ्रंश को जन्‍म दिया। इसके अन्‍तर्गत बिहारी, बंगला, उडिया आदि आते हैं। 

कुछ अन्‍तर के साथ अर्द्ध-मागधी जो कि उत्‍तर प्रदेश में पूर्वी हिन्‍दी का उदाहरण है। 


दोस्‍तों एक अत्‍यंत रोचक बात यह कि लगभग १८३८ ईस्‍वी तक मुगल प्रशासन की आधिकारिक भाषा फारसी थी। परन्‍तु फारसी में 'स' वर्ण का लोप होता है। यही कारण है कि जब फारसी लोग भारत आये तो वे सिंधु नदी को हिन्‍दु उच्‍चारण किये और समयानुसार यह भारतीयों की पहचान और बाद में किसी समुदाय विशेष की पहचान बन गई। और हिन्‍दी जोकि फारसी भाषा का शब्‍द है, यहॉं रहने वाले लोगों की भाषा बोल दी गई।  


अपभ्रंश शौरसेनी से उदृत पश्चिमी हिन्‍दी की सबसे ज्‍यादा ५ बोलियॉं हैं ।
ये पांच पश्चिमी हिन्‍दी के प्रकार है-
१. खड़ी बोली / कौरवी - मेरठ क्षेत्र तरफ 
२. ब्रजभाषा- आगरा, अलीगढ़, मथुरा 
३. कन्‍नौजी - कन्‍नौज, इटावा, उन्‍नाव (कन्‍नौजी ब्रजभाषा से विकसित है)
४. बुन्‍देली - महोबा, चित्रकूट , झॉंसी 
५. हरियाण्‍वी/ बांगरू - हरियाणा क्षेत्र

खड़ी बोली + हरियाण्‍वी = आकार बहुला 
ब्रजभाषा + कन्‍नौजी + बुन्‍देली = ओकार बहुला 

अर्द्ध-मागधी से विकसित ३ बोलियॉं हैं;
१. अवधी- अवध क्षेत्र, अयोध्‍या, लखनऊ, प्रयागराज आदि 
(विनयपत्रिका तुलसीदास की ब्रज भाषा में है जबकि रामचरित मानस अवधी में लिखित है) 
२. बघेली - रीवा क्षेत्र व कुछ उत्‍तरप्रदेश क्षेत्र
३. छत्‍तीसगढ़ी-छत्‍तीसगढ़ 

मागधी अपभ्रंश से विकसित बिहारी हिन्‍दी की ३ बोलियॉं हैं -
१. मगही - बिहार क्षेत्र 
२. मैथिली - बिहार क्षेत्र (मैथिली कोकिल - विद्यापति)
३. भोजभुरी- बलिया, बनारस, मऊ, आज़मगढ़ 

ब्राचंड अपभ्रंश के अंतर्गत - पंजाबी, सिंधी ।

खस अपभ्रंश से कुमाउनी, पहाड़ी व गढ़वाली निकली हैं।


राजस्‍थानी हिन्‍दी के भाग हैं- उत्‍तर राजस्‍थानी अर्थात मेवाती, दक्षिण राजस्‍थानी अर्थात मालवी, पूर्वी राजस्‍थानी अर्थात जयपुरी ढूढाणी, पश्चिमी राजस्‍थान अर्थात मारवाड़ी हिन्‍दी । 

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची २२ भाषाओं (१७वॉं भाग) को मान्‍यता देती है। जब संविधान लागू हुआ उस समय १४ भाषाओं को मान्‍यता प्रदान किया गया था परन्‍तु २१वें संविधान संशोधन १९६७ में सिंधी को मान्‍यता दी गई है । ७१वें संविधान संशोधन १९९२ में ३ अन्‍य भाषाओं को मान्‍यता दी गई - नेपाली, मणिपुरी और कोंकणी । ९२वॉं संविधान संशोधन २००३ में नई भाषाऍं अनुसूची में जुड़ी - मैथिली, डोंगरी,बोडो और संथाली 

हिन्‍दी  की ५ उपभाषाऍं जिसके अन्‍तर्गत १७ बोलियॉं आती हैं। 

उपभाषाऍं बिन्‍दुबार हैं - पश्चिमी हिन्‍दी,अर्द्ध-मागधी अर्थात् पूर्वी हिन्‍दी, मगधी बिहार क्षेत्र, ब्राचंड और खस । इनके अन्‍तर्गत आने वाली १७ बोलियों को इन उपभाषाओं के अन्‍तर्गत दर्शाया गया है। 

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