हम सभी को ज्ञात कि असाइनमेंट का वेटेज 30 प्रतिशत जबकि वार्षिक परीक्षा मूल्यांकन का वेटेज 70 प्रतिशत होता है। इसलिए लाईब्रेरी साइन्स में स्नातक करने वाले सभी इग्नू के छात्रों के लिए यहॉं विषयवार सत्रीय असाइनमेंट प्रस्तुत किया जा रहा है। हम विषय सूची का उल्लेख करने जा रहे हैं, जिस आधार पर आपको असाईनमेंट प्राप्त होंगे। इस असाइनमेंट में विभिन्न विषय को कवर किया जा रहा है, आप देखेंगे -
बी.एल.आई.-221 - पुस्तकालय, सूचना तथा समाज
बी.एल.आई.-222 - सूचना स्त्रोत तथा सेवाऍं
बी.एल.आई.-223 - सूचना व्यवस्थापन एवं प्रबंधन
बी.एल.आई.-224 - सूचना-संचार प्रौद्योगिकी के मूल तत्व
बी.एल.आई.-225 - Communication Skills
बी.एल.आई.-226 - पुस्तकालय एवं सूचना केन्द्र का प्रबंधन
बी.एल.आई.-227 - प्रलेख प्रक्रियाकरण अभ्यास
बी.एल.आई.-228 - सूचना उत्पाद एवं सेवाऍं
बी.एल.आई.-229 - पुस्तकालयों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी
इन विषयों को इग्नू के बी.लिब. 1 वर्षीय स्नातक में हम पढ़ते हैं। अब चलिए हल करते हैं - लाईब्रेरी साईन्स में स्नातक असाइनमेंट सत्र 2020 : IGNOU (BLIS) बी.एल.आई.-221
बी.एल.आई.-221 - पुस्तकालय, सूचना तथा समाज
खण्ड-अ (अधिकतम 500 शब्द)
प्रश्न-1. सूचना समाज क्या है? इसके विभिन्न अवबोधों की चर्चा कीजिए।
उत्तर - सूचना समाज उस समाज को व्यक्त करता हैं जहॉं सूचना का निर्माण, वितरण, हस्तान्तरण, उपयाेग तथा सुधार प्रमुखतया आर्थिक, राजनैतिक तथा सांस्कुतिक गतिविधियों में होेता है। सूचना समाज सूचना तकनीकि का वृहद रूप होता है। इसे हम इस बात से समझ सकते हैं कि जिस प्रकार 18वीं सदी की औद्योगिक क्रांति ने उद्योग को बदल दिया उसी तरीके से आज तकनीकि के प्रयोग ने समाज को बदल दिया है। सूचना समाज में सूचना / डाटा का प्रसंकरण रूप समाज में एक विशेष स्थान रखता है। सूचना समाज की अवधारणा 1990 के लगभग जन्म ली जब इन्टरनेट का उदय हो चुका था।
दूसरी तरफ वर्तमान में यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक प्रश्न है कि आखिर हम किस प्रकार के समाज में रह रहे हैं तथा सूचना और तकनीक इस प्रकार के समाज में क्या भूमिका निभा रही है। ये दोनो प्रश्न/बिन्दु सूचना समाज के महत्वपूर्ण केन्द्रीय विषय हैं।
सूचना समाज के विभिन्न अवबोध - सूचना समाज पर गहन अध्ययन करने वाले विद्वानों द्वारा जिन शब्दावलियों का प्रयोग सूचना समाज को विस्तारित करने हेतु किया गया है, वह कुछ इस प्रकार हैं-
- हस्तांरणीय नेटवर्क पूँजीवाद
- डिजिटल पूँजीवाद
- वर्चुअल पूँजीवाद
- हाई-टेक पूँजीवाद
सर्वप्रथम हमें यह जानना जरूरी है कि डाटा का अर्थपूर्ण रूप ही सूचना होता है। सूचना की अवधारणा समय के साथ परिवर्तित होती गयी। समाज ने सूचना को तब से समझना प्रारम्भ कर दिया जब से उसे सूचना के अर्थ का ज्ञान हो गया। सूचना के अवबोध को समझने के लिए साधारण शब्दों में हम डिजिटल सूचना को समझेंगे एवं देख पायेंगे कि किस तरह से सूचना समाज में नये आयाम निर्मित किये जा रहा है। सूचना न सिर्फ पत्रकारिता तक सीमित है, बल्कि आज के दौर में ई-व्यापार, राजनीति, अर्थनीति आदि भी इसी पर आधारित है।
आप देखेंगे कि कुछ समय पहले जब सूचनाऍं प्राप्त करने का माध्यम समाचार पत्र हुआ करते थे, यद्यपि आज भी हैं, परन्तु उन समाचारों की पहुँच व विश्वसनीयता का एकाधिकार हुआ करता था। परन्तु आज के दौर में ग्राहक से लेकर विक्रेत तकनीकि के माध्यम से आसानी से एक-दूसरे तक पहुँच रखते हैं तथा उनका उन समाचारों से रूबरू होने का तरीका बिल्कुल बदल गया है। यद्यपि आप देखेंगे कि इन सबके बीच आर्थिक पहलु भी दिखाई देता है।
सूचना समाज की प्रकृति -
- सूचना का हस्तांतरण
- सूचना की केन्द्रीय भूमिका
- सूचना का बहुलता से उत्पादन
- नेटवर्क की प्रभावी एवं सुदृढ़ व्यवस्था
- सूचना का डिजिटल प्रयोग
सूचना समाज में जो सबसे महत्वपूर्ण बात होती है वह यह है कि कानून समाज में सूचना के ढ़ग तथा प्रयोग का निर्धारण करता है। सभी देशों की अपनी सूचना नीति होती है जिस आधार पर वहॉं के नागरिक सूचना प्रयोग की सीमा को समझते एवं पालन करते हैं। बिना कानून के सूचना की उपलब्धता समाज में अपराध को बढ़ावा देती है एवं सूचना समाज का आदर्श स्थापित नहीं हो पाता है। इसी के अनुपालन में भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 पारित किया था। सूचना समाज में सूचना के महत्व को समझते हुए सन् 2005 में भारत सरकार ने सूचना का अधिकार अपने नागरिकों को प्रदान किया, इस आधार पर समाज में काम के प्रति पारदर्शिता आयी है एवं भारत प्रगति के रास्ते पर बढ़ता जा रहा है। यह अधिनियम सूचना समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है एवं समाज में सूचना के प्रसंस्करण तथा उपलब्धता को सुनिश्चित करता है।
प्रश्न-2. प्रतिलिप्यधिकार से आप क्या समझते हैं? उन कार्यों की व्याख्या कीजिए जिनकी वजह से प्रतिलिप्यधिकार का उल्लंघन नहीं होता है।उत्तर - प्रतिलिप्यधिकार का अर्थ इस बात से है जबकि हमारे उत्पाद या हमारी वस्तु का एकाधिकार कानूनन रूप से हमारा खुद का होता है। प्रतिलिप्यधिकार को अंग्रेजी में कॉपीराईट (copyright) भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत किसी व्यक्ति को उसके द्वारा निर्मित या बनायी गयी सम्पत्ति जो कि मानसिक तौर या शारीरिक तौर पर हो सकती है, प्रदान की जाती है। मुख्यत: प्रतिलिप्यधिकार इस बात पर भी निर्भर करता है कि वह व्यक्ति जिस देश में रह रहा है वहॉं के कानून क्या हैं। या फिर इस बात पर भी निर्भर करता है कि क्या वह व्यक्ति अन्तराष्ट्रीय मंच पर है, इस आधार पर उसे प्रतिलिप्यधिकार प्रदान किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर यह कोई व्यक्ति भारत में कोई ज़मीन खरीदता है तो रजिस्ट्री के बाद भारत सरकार उसे अधिकार देती है कि वह व्यक्ति उस ज़मीन का मालिकाना हक रखता है। वह व्यक्ति अब जब भी चाहे तो उस ज़मीन पर घर बना सकता है एवं किराये पर दे सकता है। इस प्रकार से उस सम्पत्ति से आय उस व्यक्ति की खुद की होगी तथा कोई और उस सम्पत्ति या उससे होने वाली आय पर अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकता, यह और बात होगी कि यह वह व्यक्ति जिसकी ज़मीन है दूसरे व्यक्ति हो ऋण पर या अनुबंध पर दे दे। यही बात लागू होती है प्रतिलिप्यधिकार पर भी।
अब दूसरा उदाहरण देखिए कि यदि व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय मंच पर है, तब उस व्यक्ति की सम्पत्ति वह अंतरराष्ट्रीय समिति या कंपनी के अधीन होती है, अब अगर कम्पनी चाहे तो उस व्यक्ति को प्रतिलिप्यधिकार दे सकती है। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो यदि आप यूट्यूब पर वीडियोज बनाते हैं एवं चैनल पर अपलोड करते हैं तो यूट्यूब आपको कॉपीराईट नाम से प्रलिप्यधिकार आपको प्रदान करता है। जब भी कोई व्यक्ति आपकी वीडियोज का प्रयोग करता है तो आप उस व्यक्ति के खिलाफ केस कर सकते हैं एवं यूट्यूब दूसरे व्यक्ति को दण्ड दे सकता है, यह दण्ड उसके चैनल को ब्लॉक करके भी दिया जाता है।
प्रतिलिप्यधिकार एवं उल्लंघन व बचाव अब हम समझ चुके हैं कि काॅपीराईट किस प्रकार कार्य करता है एवं किस तरह से हमें इसके फायदे व नुकसान होते हैं। आपको यह समझना बहुत आवश्यक है कि प्रतिलिप्यधिकार उसके मूल निर्माता के लिए वरदान समान है जिसकी रायल्टी उसके असली मालिक को ताउम्र मिलती है। यह कोई व्यक्ति बिना अनुबंध व शर्त के जो कि उसके असली मालिक से पूछकर प्राप्त की जाती है, के बिना उन सामग्री का प्रयोग करता है तो उस सामग्री का असल मालिक दूसरे व्यक्ति पर केस कर सकता है एवं यह कार्य प्रतिलिप्यधिकार के उल्लंघन के अन्तर्गत आती है।
कापीराईट उल्लंघन के मामले अक्सर तब देखे जाते हैं जबकि कोई व्यक्ति कोई गाना अपने वीडियोज पर अपलोड करता है, और की वीडियो अपने चैनल पर अपलोड करता है, किसी पुस्तक की सामग्री को अपने कंपनी के माध्यम से बेचता है अथवा कोई ऐसा कार्य करता है जो उसका खुद का नहीं है एवं धन कमाने के उद्देश्य से प्रतिलिप्यधिकार नीति का उल्लंधन करता है। कॉपीराईट से बचने का सबसे कारगर तरीका है कि सामग्री का प्रयोग करने से पहले उस मंच से संबंधित नीतियों का गहनापूर्वक अध्ययन करे एवं किसी और की सामग्री प्रयोग करने से पूर्व उसके असल मालिक से लायसेन्स लेकर ही प्रयोग करे। परन्तु कई शर्तें ऐसी भी हैं जहॉं व्यक्ति को बिना अनुमति औरों की सामग्री प्रयोग करने का अधिकार होता है, जिनके बारे में भी समझना ज़रूरी होता है।
प्रश्न-3. व्यवसाय (प्रोफेशन) के अभिलक्षणों का उल्लेख कीजिए। पुस्तकालय और सूचना विज्ञान को एक व्यवसाय मानने और व्यवसाय नहीं मानने के बारे में लेखकों के विरोधाभासी विचारों की चर्चा कीजिए।उत्तर - व्यवसाय का अर्थ इस बात से समझा जा सकता है कि एक ऐसी आर्थिक गतिविधि, जो मानव की इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए उत्पाद और सेवाओं के निरन्तर और नियमित उत्पादन से सम्बन्धित है। असल में व्यवसाय एक संगठन या आर्थिक व्यवस्था है जहॉं वस्तुओं और सेवाओं को एक दूसरे के लिए रूपयों के लिए विनिमय किया जाता है। सामान्यया व्यवसाय को कई प्रकार में वर्णित किया जा सकता है जैसे कि कंपनी, व्यापार, फर्म, उद्यम आदि।
हम सभी जानते हैं कि लाइब्रेरियन के तौर पर रोजगार के अवसर बहुत से हैं और आये दिन लोग लाइब्रेरियन में अपना भविष्य देखते हैं, यह इस बात से प्रमाणित हो जाता है कि बहुत से छात्र लाइब्रेरियन को एक करियर बतौर देखते हैं एवं इससे संबंधित पाठ्यक्रम में ज्यादा से ज्यादा संख्या में प्रवेश लेते हैं। वास्तव में हम यह नहीं कह सकते हैं कि पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विशुद्ध व्यवसाय की श्रेणी में आता है। आजीविका के साधन को यदि दरकिनार रख दिया जाये तो निश्चित रूप से यह एक साधना, तपस्या है, यह लोगों में साक्षरता लाने का एक जुनून है, जुनून एक नि:स्वार्थ सेवा का। ऐसा भी कहा जाता है कि एक पुस्तककर्मी बनने के लिए यह आवश्यक है कि उस व्यक्ति में अच्छे सात्विक गुण हो। इसे अन्य व्यवसायों की तरह कदापि नहीं समझा जाना चाहिए।
यह बात है उन लोगों की जो कि यह मानते हैं कि पुस्तकालय विज्ञान एक सेवाधर्म है। उनका यह भी मानना है, पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान मात्र एक शैक्षणिक विषय ही नहीं है बल्कि यह एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम है जिसमें व्यावहारिक, प्रेक्षण एवं प्रायोगिक अध्ययन शामिल होता है। इसी लाइब्रेरियन को व्यवसाय समझा भी जाता है तो इस व्यवसाय में विद्वान व्यक्तित ज्ञान के पिपासु होने चाहिए एवं आर्थिक मोह से दूर होने चाहिए जिससे कि इसकी पवित्रता बनी रहे। ऐसे व्यक्ति स्वयं के लिए नहीं अपति समाज व राष्ट्र के लिए जीता है, स्वयं को समर्पित कर देता है। यदि उस व्यक्ति में ऐसे भाव उत्पन्न नहीं हो रहे हैं तो उसे किसी अन्य व्यवसाय की तलाश कर लेनी चाहिए।
अब दूसरे पक्ष को साबित करने में अधिक बल नहीं लगता कि पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान एक व्यवसाय ही है क्योंकि आज के दौर में अधिकांश लोग यह व्यवसाय कर रहे हैं एवं समाज सेवा के नाम पर पर मोटी रकम वसूल रहे हैं। अब इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि स्कूल, कॉलेज आदि में पुस्तक व शिक्षा ही एक व्यवसाय की तरह हो गया है एवं ऐसा कदाचित ही हो कि नि:स्वार्थ भाव से कोई पुस्तकालय खोलना चाहेगा। अतएव यह बातचीत का विषय अब भी बना हुआ है कि पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान को एक व्यवसाय के नज़रिए से देखा जाना चाहिए या नहीं।
प्रश्न-5. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 पर एक निबंध लिखिए।। उत्तर - सूचना
प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 – इन्टरनेट का उद्भव होने के साथ ही विश्व
भर में इसकी उपयोगिता को नज़र में रखते हुए यूएन ने यह फैसला लिया कि ई-कॉमर्स एवं
संबंधित कार्यकलाप में इन्टरनेट को अहमियत देनी है। सन् 1997 में यूएन द्वारा सूचना
तकनीकि की आदर्श नियमावली (यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑफ इन्टरनेशनल ट्रेड लॉ) पेश किए
जाने के बाद भारत को भी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम को लागू करना अनिवार्य कर दिया
गया। सभी देशों में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का लागू होना इसलिये भी आवश्यक हो
गया था क्योंकि देशों को एक प्रोटोकॉल के तहत काम करना था। इसी के मद्देनज़र भारतीय
सांसद द्वारा 17 अक्टूबर, 2000 को पारित किया गया जिसे बाद में सन् 2008
में तत्पश्चात् सन् 2009 में संशोधित कर दिया गया।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 भारत के आन्तरिक मामलों के साथ-साथ अन्तराष्ट्रीय हस्तक्षेप को भी
नियंत्रित करता है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अस्तित्व
का उद्देश्य निम्न है –
- इेलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों की वैद्यता एवं मान्यता
- डिजिटल हस्ताक्षर को मान्यता
- साइबर अपराध व नियंत्रण एवं न्याय व्यवस्था सुनिश्चित
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में कुल 13 अध्याय व 94 धाराऍं हैं। यह धारा साइबर दुनिया में अहम रोल
निभाती हैं। साइबर अपराध की कुछ धाराऍं सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के साथ ही साथ भारतीय दण्ड अधिनियम की धाराओं में भी उल्लेख मिलता
है।
उदाहरण के तौर पर, 66-एफ साइबर आतंकवाद के खिलाफ प्रावधानों का वर्णन करता है। इसी प्रकार अन्य
धारायें जैसे - कम्प्यूटर संसाधनों से छेड़छाड़ की कोशिश - धारा 65, किसी
की निजता भंग करने के लिए दण्ड का प्रावधान - धारा 66इ, डाटा
या आंकड़ो को गलत तरीके से पेश करना - धारा 71 आदि।
सारांश यह है कि आज भारत में
ई-कॉमर्स या ऑनलाईन दस्तावेज, ई-गवर्नेन्स जो भी आप देखते हैं / रूबरू होते हैं यह सभी सूचना
प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 नियमावली अन्तर्गत होते हैं। यह
अधिनियम भारत को डिजिटल युग में प्रवेश को सुनिश्चित कराता है।
खण्ड-ब (अधिकतम 250 शब्द)
प्रश्न-1. ज्ञानार्जन सुविधाऍं और सहायता प्रदान करने में पुस्तकालयों की भूमिका की व्याख्या कीजिए।उत्तर - ज्ञानार्जन
सुविधाऍं और सहायता प्रदान करने में पुस्तकालयों की भूमिका – हम सभी जानते हैं कि बदलते परिवेश में पुस्तकालयों ने भी अपना स्वरूप बदला है।
पुस्तकालय पहले भौतिक रूप में ही हुआ करती थीं परन्तु आज बदलते परिवेश ने पुस्तकालयों
का स्वरूप भौतिक के साथ-साथ डिजिटल भी हो गया है। तो इस प्रश्न को समझने के लिए हमें
अपनी सोच का दायरा बढ़ाना होगा। ज्ञानार्जन की सुविधा के लिए हम सभी पुस्तकालय की
भूमिका से भली-भॉंति परिचित हैं। पुस्तकालयों में ज्ञानार्जन की विशेषता इस बात से
भी मज़बूत हो जाती है कि वहॉं हमें अच्छे परिवेश के साथ-साथ ऐसी पुस्तकें भी उपलब्ध
होती हैं जो सामान्यतया किसी और जगह शायद ही उपलब्ध हों। पुस्तकालय के यदि व्यावसायिक
पहलू को इतर रखा जाय तो इस बात से काई इन्कार नहीं करेगा कि पुस्तकालय सुविधा प्रदानकर्ता
पाठक को शिक्षा प्राप्त करने की सीढ़ी से अवगत कराता है तथा ज्ञानार्जन हेतु अगली
पुस्तक को पाठक के सामने रख देता है।
शिक्षा / ज्ञान प्राप्त करने
हेतु आजकल डिजिटल पुस्तकालयों का भी प्रचलन शुरू हो गया है। आज देश के कई प्रतिष्ठित
पुस्तकालय ऑनलाईन पुस्तकालय भी संचालित कर रहे हैं। यह सुविधा पाठक को किसी भी समय
कहीं से भी, कभी भी अपनी मोबाईल फोन से डिजिटल पुस्तकालय का एक्सेस प्राप्त कर सकता
है।
प्रश्न-2. पुस्तकालय और सूचना विज्ञान व्यवसाय के विकास में 'इफ्ला' की भूमिका की चर्चा कीजिए।उत्तर - 'इफ्ला' - पुस्तकालय और सूचना
विज्ञान व्यवसाय में 'इफ्ला' की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 'इफ्ला' का पूरा नाम इन्टरनेशनल फेडरेशन ऑफ लाइब्रेरी
एसोसिएशन एण्ड इन्स्टीट्यूशन्स है। इसकी स्थापना सन् 1927 में एडिनबर्ग, स्कॉटलैण्ड
में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हुई थी। आज पूरी दुनिया में लगभग 150 देशों
में इफ्ला के 1600 से अधिक सदस्य हैं।
इफ्ला एक स्वतंत्र, गैर सरकारी, अंतर्राष्ट्रीय संस्था जो जिसका
उद्देश ज्ञान को सार्वजनिक उपलब्ध कराना, देशों के मध्य
समन्वय, सहयोग, सूचना का आदान-प्रदान,
शिक्षा-शोध एवं विकास को प्रोत्साहन प्रदान करना है। यह एक गैर
लाभकारी संस्था है। इफ्ला के सभी सदस्यों की नागरिकता, लिंग,
धर्म, नस्ल, भाषा आदि
के अलग होने के बावजूद एकलक्ष्य गतिविधि में शामिल होकर लाभ प्राप्त करने में
समर्थ की प्रतिबद्धता है।
इफ्ला का आम सम्मेलन
दुनियाभर के विभिन्न शहरों में वार्षिक होती है। इसने समान हितों वाले विभिन्न
संगठनों के साथ अच्छे संबंध बनाकर सूचना के नियमित विनिमय हेतु अवसर प्रदान किया
है।
प्रश्न-3. पुस्तकालयाध्यक्ष की 'पुस्तक अभिरक्षक' से 'डिजिटल पुस्तकालयाध्यक्ष' के रूप में रूपांतरण की चर्चा कीजिए।उत्तर - पुस्तकालयाध्यक्ष की 'पुस्तक अभिरक्षक' से 'डिजिटल पुस्तकालयाध्यक्ष' के रूप में रूपान्तरण – प्रारंभिक दौर में जबकि किसी
भी पुस्तक की एक प्रति हुआ करती थी, तब संस्कृति व लेख को संरक्षित करना
पुस्तक अभिरक्षक की महत्वपूर्ण जि़म्मेदारी हुआ करती थी। इतिहास में हमें इस बात
के भरपूर साक्ष्य मिलते हैं कि किस प्रकार से विदेशी ताकतों ने भारतीय संस्कृति को
नष्ट करने के लिए यहॉं के ग्रंथों को मिटाने का प्रयास किया तथा पुस्तक अभिरक्षक
कई बार उन्हें ऐसा करने से रोकने में नाकाम हुआ करते थे। नालन्दा विश्वविद्यालय
को तबाह करना इसका ही एक प्रमाण है, तब बेशकीमती पुस्तकों की
एक ही प्रति हुआ करती थी जिसे संजोकर रखा जाना अति आवश्यक था, इसके अभाव में उन ग्रंथों के बाद के संस्करण में अप्रमाणित तथ्यों ने जगह
बना ली। समय व्यतीत होने के साथ ही साथ पुस्तकालयाध्यक्ष की भूमिका पुस्तक अभिरक्षक
से डिजिटल पुस्तकालयाध्यक्ष के रूप में स्थापित हो गयी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही
कि अब पुस्तक के कटने-फटने की समस्या समाप्त हो चुकी थी। अब पुस्तकें इलेक्ट्रॉनिक
रूप में आ चुकी थीं। अब यह पुस्तकें डिजिटल माध्यम में होने लगीं तथा इनका स्वरूप
टेक्स्ट से इमेज, ऑडियो, वीडियो आदि होने
लगा। पॉडकास्ट, स्ट्रीमिंग आदि सभी इसी के उदाहरण हैं। अब तो
गूगल प्लेस्टोर पर भी आप डिजिटल पुस्तकालय का स्वरूप देख सकते हैं। अब पुस्तकालयाध्यक्ष
पुस्तक अभिरक्षक से सेल्समैन तक की भूमिका में आ गये हैं।
प्रश्न-4. संसाधनों के पारस्परिक उपयोग की आवश्यकता और उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।उत्तर - संसाधनों के पारस्परिक
उपयोग की आवश्यकता और उद्देश्य – आज के दौर में सूचना का महत्व बढ़ गया है। यह दौर सूचना एवं तकनीकि का है। ऐसे
में संसाधनों पर किसी एक का नियंत्रण न होकर सर्वसाधारण के विकास हेतु प्रयोग में लाया
जाना अति आवश्यक है। सूचना के ऐसे संसाधन न सिर्फ भौतिक रूप में अपितु डिजिटल
रूप में भी होते हैं। संसाधनों के पारस्परिक उपयोग की आवश्यकता इस बात से बढ़ जाती
है जब हम एक लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर हों। चाहे अर्थनीति हो, राजनीति हो
या कोई भी पहलू हो हमें लक्ष्य प्राप्ति हेतु सामंजस्य प्राप्ति की आवश्यकता होती
है जो संसाधनों के पारस्परिक उपयोग एवं सहयोग से ही प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न-6. पुस्तकालयों के आधुनिकीकरण में आर.आर.आर.एल.एफ. की भूमिका की संक्षेप में चर्चा कीजिए।उत्तर - आर.आर.आर.एल.एफ. अर्थात्
राजा राम मोहन राय लायब्रेरी फॉउन्डेशन एक केन्द्रीय स्वशासित संस्था है। यह
संस्थान भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा सहायता प्राप्त संस्थान है।
यह पुस्तकालय भारत में सार्वजनिक पुस्तकालयीन सेवाओं को समर्थन देने एवं इसके
प्रोत्साहन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। राजा राम मोहन राय लायब्रेरी फाउन्डेशन
ऑनलाईन प्लेटफॉर्म्स जैसे ट्विटर पर भी उपलब्ध है एवं चैनल्स के माध्यम से
पुस्तकालय प्रोत्साहन को निरन्तर बढ़वा दे रहा है। यह पुस्तकालय प्रगति हेतु
विभिन्न कार्यशालाओं का भी आयोजन कराता है। यह संस्था ‘सभी के लिए पुस्तक’ नीति के अनुसार कार्यरत है।
राजा राम मोहन राय लायब्रेरी फॉउन्डेशन की डिजिटल पुस्तकालय
में एक अहम भूमिका है। यह संस्थान देश के विभिन्न हिस्सों के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों
में भी लायब्रेरी उपलब्ध कराता है तथा निरन्तर इसके गुणवत्ता का निरीक्षण भी करता
रहता है।
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