हम सभी को पता है कि जब कोई अपराध होता है तो पुलिस तहकीकात के पश्चात चालान न्यायालय में पेश करती है। विवेचना पुलिस विभाग का हेड कान्स्टेबल या उच्च स्तरीय कर्मचारी / अधिकारी करते हैं। न्यायालय में चालान / अभियोग पत्र कोर्ट मुंशी द्वारा अभियोजन अधिकारी (कोर्ट साहब) के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। कोर्ट साहब यह तय करते हैं और सलाह देते हैं कि कौन सी धारा इस घटना के लिए सही है या कौन सी गलत, क्योंकि अभियोजन अधिकारी ही पीडि़त का पक्ष माननीय न्यायालय में न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। अभियोजन अधिकारी (कोर्ट साहब) पुलिस विभाग के ही पुलिस के रायदाता / एडवायजर होते हैं।
अभियोग पत्र, चालान, फरारी चालान |
कोर्ट मुहर्रिर वह पुलिस आरक्षक होते हैं जो पुलिस विभाग से ही होते हैं और अभियोजन की मदद के लिए न्यायायल में बैठते हैं एवं दैनिक कार्य में अभियोजन कार्य सम्पन्न करते हैं। कोई भी घटना पश्चात पुलिस पीडि़त द्वारा सूचना पश्चात् अथवा घटना प्रकार के आधार पर मुकदमा कायम करती है (एफआईआर दर्ज़ करती है) तथा विवेचना पश्चात् मामला अभियोजन समक्ष प्रस्तुत करती है, जो बाद में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
यदि आरोपी / अपराधी गिरफ्तार किये जा चुके हैं, या अपराधी पुलिस पकड़ से दूर नहीं हैं तो प्रस्तुत अभियोग पत्र, अंतिम सूचना रिपोर्ट (ज़रूरी दस्तावेजों सहित) प्रस्तुत करती है तो इसे चालान कहते हैं। परन्तु यदि अभियुक्त / अपराधी फरार है, पुलिस कि पहुँच में नहीं है तो प्रस्तुत चालान अभियोग पत्र कहा जाता है। असल में फरारी का चलान जैसा कोई शब्द ही नहीं है, जिसे पुलिस अभियोजन में कहती है कि साहब यह फरारी का चालान है। असल में यह फरारी का चालान अभियोग पत्र ही होता है।
एक महत्वपूर्ण बात यह कि पुलिस न्यायालय में अभियोजन में बिना जाये भी चालान पेश कर सकती है, परन्तु अभियोजक ही वाद-प्रतिवाद में सरकार का पक्ष रखते हैं, इसीलिये पुलिस को हमेशा अभियोजन अधिकारी से चालान / अभियोग पत्र की जॉंच जरूर करा लेना चाहिए।
लेखक अभियोजन कार्यालय देवसर, जिला सिंगरौली (म.प्र.) में सहायक ग्रेड-3 के पद पर कार्यरत है। इसी तरह के अन्य जानकारी के लिए आप हमसे जुड़े रह सकते हैं, वीडियोज देखने के लिए हमारा यूट्यूब चैनल डिजिटल साफ्ट हब विजिट कर सकते हैं।
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