दोस्तों, मेरा नाम अभिषेक है। मैं एक लिपिक हूँ। मध्यप्रदेश सरकार में लिपिक होना एक अभिशाप की तरह है। जी नहीं, यह अभिशाप नहीं था, बल्कि अब अभिशाप बन गया है। क्या आपको पता है, उन दिनों जब मध्यप्रदेश का गठन हुआ था तक लिपिक जिसे आप अब सहायक ग्रेड-3 के रूप में जानते हैं, उसका वेतन आज के कई पदों से बहुत अधिक था। उस समय का लिपिक निम्न श्रेणी शिक्षक (वर्ग-3), पशु चिकित्सा क्षेत्र सहायक, फारेस्टर, पटवारी, फारेस्ट गार्ड, पुलिस आरक्षक आदि से कहीं अधिक था। परन्तु आज हालात यह है कि मध्यप्रदेश लिपिक बहुत कम वेतन पर अपनी जिन्दगी से समझौता किये बैठा है। समय के साथ कई पे कमीशन आये और लिपिक की बर्बादी की गाथा लिखती चली गयी।
म.प्र. लिपिक वेतन विसंगति |
आज उपरोक्त में से अधिकांश पदों का ग्रेड पे 2800 एवं 2400 हो गया है, वहीं दूसरी तरफ एक लिपिक कर्मचारी 1900 ग्रेड पे पर काम कर रहा है। यह दर्द आज का नहीं, बल्कि बहुत पुराना है। सन् 1981 से प्रारम्भिक वेतन विसंगति शुरू हुयी और आज यह विकराल रूप ले ली है। लिपिक वर्गीय कर्मचारियों ने बहुत पहले तक बड़े स्तर पर मांग नहीं की, और अब जब सोशल मीडिया का ज़माना आ गया, यह मांग दोबारा जीवन्त रूप ले रही है।
मध्यप्रदेश लिपिक वेतन विसंगति: एक विकट समस्या - होगी इस साल दूर । लिपिक कर्मचारियों को मिलेगा 2800 ग्रेड पे
क्या लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने की मांग जायज है? - असल में लिपिक वर्गीय कर्मचारी मध्यप्रदेश के समस्त विभागों की रीढ़ की हड्डी की तरह काम करता है। सारा लिखा-पढ़ी का मुख्य कठिन कार्य लिपिक के द्वारा ही सम्पन्न कराया जाता है, यह बात अलग है कि एक की पदनाम लिपिक (वर्तमान सहायक ग्रेड-3) होने के बावजूद उनकी कार्यशैली अलग-अलग कार्यालय में अलग-अलग होती है। स्वयं सरकार की नज़र में भी यह मांग जायज है एवं इस वेतन विसंगति को दूर कराने के लिए सरकार लगातार आश्वासन देती आयी है।
लिपिक के वर्तमान हालात- आज लिपिक आर्थिक, मानसिक व सामाजिक रूप से बहुत कमज़ोर हो गया है। लिपिक वर्ग को इस कदर प्रताडि़त किया गया है कि अब यदि सांसे चल रही हैं, उसी को लिपिक वर्ग अपनी जिन्दगी समझ बैठा है। लिपिक जो पहले राजा के समान हुआ करता था, आज रंक की तरह हालात हैं और आर्थिक रूप से यह वर्ग बिल्कुल टूट चुका है। लिपिक के हालात का अन्दाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एक तरफ 8वीं एवं 10वीं पास पुलिस आरक्षक का ग्रेड पे 1900 है व अन्य भत्ते भी प्राप्त करता है, वहीं लिपिक वर्गीय कर्मचारी 12वीं पास (कहीं-कहीं स्नातक), कम्प्यूटर डिप्लोमा, सीपीसीटी होने के बावजूद भी पुलिस आरक्षक से कम वेतन प्राप्त कर रहा है।
वेतन विसंगति दूर न हो पाने की वजह- वेतन विंसगति दूर न होने की कई वजह है, परन्तु सबसे बड़ी वजह जो आज है वह यह कि पुराने लिपिक वर्गीय कर्मचारी अपनी विसंगति का एरियर प्राप्त करना चाहते हैं एवं परानी डेट से ग्रेड पे बढ़वाना चाहते हैं, इससे सरकार पर करोड़ों का बोझ आयेगा और ऐसा सरकार करने वाली है नहीं। यद्यपि पुराने लिपिकों से आज के लिपिक अधिक पढ़े-लिखे एवं योग्य हैं (कृपया अन्यथा न लें, मैं सीधी भर्ती एवं सीपीसीटी, कम्प्यूटर डिप्लोमा को बेस बनाकर बोल रहा हूँ), एवं इन लिपिकों को इनके कार्य के अनुरूप वेतन नहीं मिल रहा है। दूसरी वजह यह भी है कि कई लिपिक अयोग्य होने की कगार पर हैं और इनका मुख्य ध्यान अनार्थिक मांगों की तरफ अधिक है, जैसे सीपीसीटी को हटाना, आदि। मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि सीपीसीटी की योग्यता 2015 के बाद से की गयी है तो आज के नवनियुक्त लिपिक को इसका विरोध नहीं करना चाहिए।
मांग एवं हल क्या- आज लिपिक 2400 ग्रेड पे की मांग कर रहे हैं। असल में यह मांग 2016 में भी तेजी पकड़ी थी। अब समय बदल गया है, पटवारी जो लिपिक से आधी सैलरी पाते थे, आज लिपिक से अधिक वेतन पाते हैं एवं पटवारी 2800 ग्रेड पे की मांग कर रहे हैं। लिपिक वर्ग को भी चाहिए कि पुरानी तिथि पर न जाकर आज के ही दिनांक से 2800 ग्रेड पे की मांग करें। वैसे यह कोई नाइंसाफी या नकारा मांग नहीं है, राजस्थान के लिपिक 3600 ग्रेड पे की मांग कर रहे हैं जबकि उनका ग्रेड पे 2400 बहुत पहले से ही है।
यह भी चाहिए कि अब लिपिक की न्यूनतम योग्यता 12वीं से बढ़ाकर स्नातक कर देना चाहिए। साथ ही साथ कम्प्यूटर डिप्लोमा, सीपीसीटी आदि कड़ाई से मांगे जाने चाहिए और ग्रेड पे बढ़ाकर तत्काल प्रभाव से 2800 कर दिया जाना चाहिए।
मांग व आन्दोलन अब तक- अब तक कुुछ भी सही नहीं हो पाया है। लिपिक वर्ग में ही कुछ लिपिक स्वयं स्वार्थ सिद्धि में लगे हैं एवं जो प्रमुख मांग है वेतन विसंगति दूर कराने की उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लिपिकों को उनके नेताओं ने आज तक गुमराह किया है। लिपिक ने पुराने आन्दोलन में बेतुके से हथकण्डे अपनाये थे, जैसे वृक्षारोपण करके वेतन विसंगति का विरोध करना आदि। सन् 2021 में लिपिक वर्गीय कर्मचारी औरों की मांगों को पूरा कराने में अधिक चिन्तित दिख रहे हैं, बजाए इसके कि खुद की वेतन विसंगति को दूर कराने के।
लिपिक वर्ग फंसा अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के जाल में- अधिकारी कर्मचारी संयुक्त मोर्चा मंहगाई भत्ता व अन्य कई मांगों को लेकर आगे बढ़ रहा है, इस बैनर तले लगभग सैकड़ों छोटे-मोटे दल अपनी मांग रखने का प्रयास कर रहे हैं, परन्तु लिपिक वर्गीय कर्मचारी को यह मायाजाल नहीं दिख रहा है। जहां तक रही बात मंहगाई भत्ता, आवास भत्ता, पुरानी पेंशन योजना लागू करने की, तो लिपिक वर्ग कर्मचारी संघ को भी अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा का साथ देना चाहिए, परन्तु लिपिक वेतन विसंगति की मांग की जहां तक बात है यह लिपिक की खुद की लड़ाई है, और लिपिक संघ को इसे खुद लड़ना चाहिए।
मध्यप्रदेश अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा लिपिक वेतन विसंगति को स्पष्टत: समर्थन नहीं देता है। यदि ऐसा होता तो कब का यह वेतन विसंगति दूर हो गयी होती। परन्तु लिपिकों के साथ छल होता आया है और इस छल में भागीदार हमारे कुछ लिपिक बन्धु ही हैं।
लिपिक कर्मचारी नेता लिपिकों के बारे में सोचें- यदि लिपिक वर्ग किसी को अपना हितैषी सोचता है तो उन्हें इस बात का एहसास होना चाहिए कि उन्हें स्वयं स्वार्थ से उठकर लिपिक हित के बारे में सोचें। पूर्व में कई ऐसे कर्मचारी नेता रहे हैं जिन्होंने अच्छी-खासी मिली पहचान को राजनीतिकरण के रंग में रंग दिया। इस बार हर एक लिपिक का यह कर्तव्य होना चाहिए कि उन्हें किसी के भी झांसे में न आकर लिपिक वेतन विसंगति दूर न होने तक नियमित लड़ाई का मार्ग अपनाएं।
आन्दोलन व मांगों को पूरा कराने का सही समय- सन् 2023 में चुनाव है। अब नवम्बर 2021 है एवं यह साल बीतने वाला है। पंचायतीराज चुनाव भी अगले शुरूआती साल में सम्पन्न हो जायेगा। इस बीच लिपिक वर्ग को चाहिए कि वह इसी साल 2021 में यालगार करे, आन्दोलन व हड़ताल की राह पकड़े ताकि लिपिकों का खोया हुआ सम्मान उन्हें मिल सके। याद रहे, यह लड़ाई तब तक नहीं रूकनी चाहिए जब तक लिपिक का ग्रेड पे 2800 न हो जाये।
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