महंगाई भारत में हमेशा से एक समस्या बनी रही है। वस्तुओं का समय के साथ कुछ दाम में परिवर्तन को ही तो महंगाई कहते हैं। परन्तु ऐसा जब हो जाए कि एक दशक की महंगाई हम एक साल में ही देख लें... । भारत सरकार की अर्थव्यवस्था को सम्भालने वाला रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया को बढ़ती हुई इस अनियंत्रित महंगाई के बारे में चिन्ता है। यही वजह है कि आरबीआई ने पिछले महीने 4 मई 2022 को 4 बेसिक पाईन्ट्स रेपो रेट बढ़ा दिया था और हवाला दिया था कि बेकाबू हो रही महंगाई पर कुछ नियंत्रण पाने के लिए अब ज़रूरी हो गया है कि रेपो रेट बढ़ा दिया जाए। पुन: जून महीना 2022 के पहले सप्ताह बीतते ही आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी ने निर्णय लिया है कि रेपो रेट फिर से बढ़ा दिया जाए, इस प्रकार अब रेपो रेट में 5 बेसिस पाईन्ट की फिर से बढ़ोतरी हुई है और आज दिनांक के हिसाब से रेपो रेट 4.9 प्रतिशत हो गया है।
रेपो रेट फिर से बढ़ा |
क्या है रेपो रेट - आसान भाषा में रेपो रेट को समझने के लिए आपको बस इतना जानना है कि कोई भी बैंक हो उसको ज़रूरत के हिसाब से रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया से लोन लेना पड़ता है। जिस दर पर रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया इन बैंक्स को लोन देता है उसी ब्याज दर को रेपो रेट कहते हैं। यह बिल्कुल उसी प्रकार है जब हम और आप बैंक या किसी भी संस्था से कोई लोन लेते हैं तो बदले में कुछ ब्याज सामने वाले को देना पड़ता है।
रिवर्स रेपो रेट - अब मान लीजिए कि किसी बैंक के पास उसके उपयोग से अधिक पैसा है और वह बैंक बचे हुए अधिक रूपये से कुछ रूपये कमाना चाहता है तो सामान्यतया वह पैसा रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के पास रखकर बैंक आरबीआई से ब्याज कमा सकता है। आरबीआई रिवर्स रेपो रेट पर देय पैसे को अन्य बैंक/संस्था को लोन देकर अधिक कमाई करता है और कुछ रकम जो पूर्व निर्धारित होता है उस बैंक को देता है जिसका पैसा आरबीआई ने ले रखा है। इसी को रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।
तो आपने देख ही लिया कि बैंक के कमाई का मुख्य स्त्रोत किसी को लोन देकर उसपर ब्याज कमाना है। क्योंकि आरबीआई अधिक शक्तिशाली है और भारत का केन्द्रीय बैंक है, साथ ही साथ सभी बैंकों को रेग्युलेट भी करता है, इसलिए आरबीआई को मॉनिटरी पॉलिसी बनाने का अधिकार भी होता है, और आरबीआई हमेशा रेपो रेट को रिवर्स रेपो रेट से अधिक रखता है।
हमें याद है 2009 में भारत में आर्थिक तंगी आई थी। उस समय भी सरकार/आरबीआई ने रेपो रेट कम कर दिया था। रेपो रेट कम करने का साफ मतलब यह होता है कि बैंक को आरबीआई कम ब्याज दर पर लोन देगा, तो बैंक भी ग्राहकों को कम दर पर लोन दे पाएगा, जिससे अधिक ग्राहक लोन लेने बैंक के पास आएंगे और बाज़ार में लोन लेने वालों की संख्या अधिक हो जाएगी अर्थात् बाज़ार में पैसा अधिक होगा। जब-जब कोई आर्थिक तंगी आई है अथवा लोगों में कुछ भी खरीदने की प्रवृत्ति के विपरीत बचत की प्रवृत्ति बढ़ी है तो सरकार ने हमेशा रेपो रेट कम कर दिया है ताकि बाजार में सस्ता ब्याज दर पर लोन लेने वालों की संख्या बढ़ सके और इकॉनमी/बाज़ार में तेजी आ सके। कोरोना वायरस की वजह से हुए नुकसान की भरपाई के लिए इकॉनमी को बूस्ट करने के लिए आरबीआई ने सन् 2022 मई महीने में रेपो रेट को घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया था, तब से अब 2022 तक यह रेपो रेट अपरिवर्तित रखा गया। दूसरी तरफ बाज़ार में उत्पादकता में कमी आई, जबकि बाज़ार में अधिक पैसा कम ब्याज दर होने की वजह से आ गया था। यह न सिर्फ ऑटोमोबाईल इन्डस्ट्री बल्कि सभी सेक्टर में देखने को मिला है। महंगाई की एक चैन सी बन गई। रूस-यूक्रेन लड़ाई और वैश्विक टेंशन की वजह से भी महंगाई में अनचाहा उछाल देखने को मिला। आरबीआई मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी ने इन्हीं वजहों को ध्यानगत रखा है और यही कारण भी बताया है कि किस लिए रेपो रेट को लगभग एक महीने में ही दूसरी बार बढ़ा दिया गया है।
महंगाई को नियंत्रित करना है तो बैंक को ब्याज दर अधिक देना होगा - चूँकि कम ब्याज दर मिलने के कारण और महंगाई दर अनुमानित 6.7 प्रतिशत वर्ष 2022-23 में होने के कारण लोगों का ध्यान बैंक में रूपये न रखकर बाज़ार में ही रूपये से कुछ अच्छा करने पर है। रेपो रेट बढ़ा देने से ब्याज दर तो लोन पर बढ़ेगा और साथ ही महंगाई पर कुछ कण्ट्रोल तो ज़रूर होगा, परन्तु जो पहले से बाज़ार में अधिक रूपये है अथवा बैंक को चाहिए कि ग्राहकों को कुछ अधिक ब्याज दर दिया जा सके ताकि लोगों के पास से पैसा बैंकों के पास चला जाए, तो महंगाई पर ज्यादा प्रभावशाली रोक लग सकती है।
एआईसीपीआईएन आंकड़ों के मुताबिक बढ़ रही महंगाई चिन्ताजनक है। आरबीआई ने आए दिन 1 महीने में ही महंगाई को ध्यानगत रखते हुए रेपो रेट लगातार 2 बार बढ़ा दिया है, यह चिन्ताजनक विषय है। जिन वस्तुओं के दाम बढ़ चुके हैं शायद अब दोबारा कम न हों, परन्तु दूसरी तरफ रोजगार के अवसर/ उत्पादकता में कमी आई है जो भारत के विकास में एक बाधा के समान है।
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