भारत में विशेषतया क्षेत्रीय जातिगत पार्टियॉं एवं जातिगत संगठन जातिगत आधारित जनगणना की मॉंग लगातार करते आ रहे हैं। बिहार जैसे राज्य में नितीश सरकार ने जातिगत जनगणना के लिए केबिनेट से मंजूरी पर सहमति हासिल की। जब जातिगत आधारित जनगणना की बात आती है तो सभी पक्षीय अथवा विपक्षीय पार्टियॉं एकसाथ आ जाती हैं क्योंकि तब यह पार्टी विशेष नहीं, बल्कि वोटबैंक विशेष मुद्दा बन जाता है। कुछ इसी प्रकार के मुद्दे को लेकर आज दिनांक 25 मई 2022 को बामसेफ जोकि कांशीराम जी द्वारा सन् 1971 में स्थापित किया गया था, भारत बन्द का ऐलान किया गया है। तो आईये विश्लेषण करते हैं इन मुद्दों के बारे में।
भारत बन्द |
बामसेफ के इस भारत बन्द को समर्थन सभी कमज़ोर-पिछले वर्ग के नाम से संचालित पार्टियों के अलावा बामदल द्वारा भी मिला है। भारत बन्द को समर्थन सरकारी कर्मचारियों जोकि पुरानी पेंशन बहाली के लिए आन्दोलन करते आ रहे हैं, के साथ-साथ बेरोजगार युवकों द्वारा भी दिया जा रहा है। भारत बन्द के मुख्य मुद्दे निम्नप्रकार हैं-
✔ जाति आधारित ओबीसी जनगणना - जातिगत आधारित जनगणना को केन्द्र सरकार ने नकार दिया है, परन्तु एससी/एसटी के लिए जातिगत जनगणना पर सरकार ने सहमति जताई थी। सरकार का कहना है कि जातिगत जनगणना से देश में अप्रिय माहौल जन्म लेगा जोकि भारत के विकास में बाधक होगा। परन्तु ओबीसी संगठनों एवं आरक्षित संगठनों ने जातिगत आधारित जनगणना पर जोर दिया है और कहा है कि हम अपनी जनसंख्या के अनुसार आरक्षण चाहते हैं। ओबीसी संगठनों का कहना है कि सरकार हमारी जनसंख्या के अनुरूप 27 प्रतिशत आरक्षण सभी क्षेत्रों में अभी से दे, एवं बाद में जातिगत जनगणना के बाद यदि हमारी जनसंख्या का प्रतिशत और अधिक रहा तो हम और भी अधिक आरक्षण के लिए आन्दोलन करेंगे। आपको बता दें कि 90 के दशक में वीपी सिंह प्रधानमंत्री जी ने ओबीसी आरक्षण हेतु मण्डल कमीशन को मानकर काफी बड़े विरोधी एवं उग्र आन्दोलन को जन्म दे दिया था।
✔ चुनावों में ईव्हीएम का प्रयोग बन्द हो - विरोध करने वाले संगठनों का कहना है कि ईव्हीएम हैक रहा करती हैं, हम वोट किसी और को देते हैं और वोट किसी और को चला जाता है। इसलिए बैलेट पेपर से चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न कराई जाए।
✔ निजी क्षेत्रों में एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण - केन्द्र सरकार के द्वारा पीपीपी (पब्लिक प्रायवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर काम करने की वजह से निजीकरण को बढ़ावा मिल रहा है। देश में सुव्यवस्थित ढंंग से संसाधनों से सही प्रयोग हेतु पीपीपी मॉडल आवश्यक रहा है, यही मॉडल पर आज ज्यादातर विकसित देश काम कर रहे हैं। परन्तु सरकार के पीपीपी मॉडल अपनाने की वजह से आरक्षण को चुनौती दी जा रही है, आरक्षित वर्ग के लोग आरक्षण को जीवित रखने के लिए प्रायवेट संस्थाओं में भी रिजर्वेशन चाहते हैं, क्योंकि आरक्षण एक संवैधानिक व्यवस्था है और सरकार द्वारा आरक्षण को बरकरार रखे जाना आवश्यक है। मध्यप्रदेश में कुछ दिनों पहले ही आरक्षित वर्ग के संगठनों ने प्रायवेट क्षेत्र में भी आरक्षण देने की मॉंग की है और अब यह देशव्यापी मुद्दा बन गया है। हमें बहुत जल्द देखने को मिल सकता है कि निजी क्षेत्रों में जैसे भारत में कार्यरत गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, विप्रो, अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि में आरक्षण के नियम लागू हो जाऍं, अर्थात यदि प्रायवेट कम्पनियों को भारत में काम करना है, तो आरक्षण को लागू करना ही होगा।
✔ पुरानी पेंशन योजना बहाल करना - सरकारी कर्मचारियों को एनपीएस में नुकसान है, एवं पुरानी पेंशन उनके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा। तो सरकार को चाहिए कि सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन को बहाल कर दे।
✔ साथ ही साथ एनआरसी, सीएए एवं एनपीआर के विरोध के साथ-साथ किसानों के मुद्दे भी उठाये जाऍंगे। ओडिशा एवं मध्यप्रदेश में पंचायती राज चुनावों में ओबीसी का 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किये जाने का भी प्रावधान हो।
उपरोक्त मुद्दों को लेकर भारत बन्द किया जाना उचित है। जातिगत जनगणना एवं समानुपातिक आरक्षण दिया जाना भी उचित है। भारत को विश्वपटल पर इस बात पर बहस करना चाहिए कि विश्वस्तरीय सभी महत्वपूर्ण जगहों, पदों एवं आधिकारिता क्षेत्रों में भारत को आरक्षण दिना जाना चाहिए क्योंकि भारत की जनसंख्या विश्व में दूसरे स्थान पर है और सबसे अधिक गरीब और फटे-नंगे लोग भारत में ही रह रहे हैं। वैसे आजादी के इतने साल बाद भी आरक्षण की मॉंग बढ़ती ही जा रही है, हर एक समुदाय अन्य से कमतर दिखने का प्रयत्न कर रहा है। वैसे यह अब तक के सरकार की नाकामयाबी है यदि जाति, धर्म, आर्थिक मुद्दों को आधार बनाकर आरक्षण दिया जाता रहा है। डाॅ. भीमराव अम्बेडकर जी ने यह सोचकर आरक्षण दिया था कि सभी वर्गों को आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए, इसलिए नहीं कि जिसकी जितनी आबादी उसके लिए उतना आरक्षण। सरकार को चाहिए कि मुफ्त की शिक्षा, मुफ्त की चिकित्सा सबको प्रदान करे, न कि मुक्त का सामान और सुविधाऍंं प्रदान कर लोगों को इतना कमज़ोर बना दे कि उन्हें अपने पुरूषार्थ पर शक होने लगे। जातिगत जनगणना के दो पहलूू हैं, यदि इसका सकारात्मक कोई पहलूू है भी तो दूसरा पहलू बेहत नकारात्मक और खतरनाक है जो भारत के भविष्य के लिए सही नहीं है।
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