eDiplomaMCU: पर्यावरण संरक्षण आडम्‍बर मात्र तक सीमित : किसी के शौक तो किसी की मज़बूरी

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Wednesday, June 7, 2023

पर्यावरण संरक्षण आडम्‍बर मात्र तक सीमित : किसी के शौक तो किसी की मज़बूरी

विश्‍व पर्यावरण दिवस का नाम आते ही 5 जून की याद आती है, और जब 5 जून ही हो तो इसके नाम से शिविर का आयोजन, जागरूकता कार्यक्रम किया जाना स्‍वाभाविक हो जाता है। सन् 1973 से पर्यावरण दिवस प्रत्‍येक वर्ष 5 जून को दुनिया भर के देशों में मनाया जाने लगा है। इस वर्ष 2023 में 5 जून को विश्‍व पर्यावरण दिवस की 50वीं वर्षगॉंठ मनाई गई। मैं भी प्रत्‍येक वर्ष कुछ शिविरों को सुनता हूँ तो कई बार लेख पढ़ता रहता हूँ। परन्‍तु एक बात हमेशा विचार में आती है कि आखिर विश्‍व पर्यावरण दिवस मनाते हुए 50 वर्ष होने को आए हैं, चाहे वह लोकल स्‍तर पर हो, राष्‍ट्रीय अथवा अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर हो, पर्यावरण सूचकांक में भारत का स्‍तर दिन-ब-दिन गिरता ही जा रहा है। इस लेख मैं मैं उन कुछ ज़मीनी कारणों की भी चर्चा करूँगा जो पर्यावरण संतुलन को प्रभावित करते हैं। यह लेख उन लोगों के लिए भी एक आईना है जो सिर्फ शिविरों और आयोजनों में प्रायोजित दिखावे के तहत पर्यावरण का मज़ाक बना कर रख दिये हैं।

मैं एक बार पर्यावरण संरक्षण दिवस 5 जून के मौके पर एक शिविर में था, जहॉं वक्‍ता वह लोग थे जिनको सारी सुख-सुविधाऍं मिलती हैं। समझ नहीं आता कि उन लोगों का वक्‍तव्‍य सुनो तो लगता है कि वृक्षारोपण ही पर्यावरण संरक्षण का एकमात्र उपाय है, अथवा यदि कोई अधिक स्‍तर तक सोच पाया तो गाड़ी न चलाकर पेट्रोल की बचत करो अथवा ऐसे वक्‍त पंखा मत चलाओ जब ज़रूरत न हो। मैं ऐसे कई मौकों पर पर्यावरण संरक्षण के प्रति चिंतनीय समारोह में सम्मिलित हुआ और पाया कि 99 प्रतिशत मौकों पर वृक्षारोपण के आडम्‍बर तले पर्यावरण एवं इसके संरक्षण के महत्‍व को कमतर ऑंक लिया जाता है। भला पर्यावरण का सम्‍बंध सिर्फ वृक्षों से थोड़ी न है जिसके अधिकाधिक रोपण से उन समस्‍याओं का भी समाधान हो जाएगा जो समस्‍याऍं हम मानव प्रकृति को देते हैं। 

पर्यावरण संरक्षण दिवस के अवसर पर वक्‍ताओं के अभिभाषण सुनने से यह साफ हो जाता है कि उनका बौद्धिक स्‍तर कितना विकसित है जो पर्यावरण संरक्षण के नाम पर ऐसे तर्क आगे रखते हैं जो आजकल मानव समाज का हिस्‍सा बन गया है। भला कोई बोले कि यदि आपको बाज़ार से काई सामान खरीदना हो तो पैदल निकल लो और इससे पर्यावरण का संरक्षण हो जाएगा, दूसरी तरफ मानव समाज के इस तबके द्वारा बहुतायत में एयर कण्‍डीशनर, फ्रीज, आदि ऐसी चीजों का धड़ल्‍ले से प्रयोग होता है। भला अब फ्रीज, एसी और ऐसी उन चीजों का विरोध हो जाएगा कि हम प्रकृति द्वारा प्रदाय वातावरण के शय में काम करेंगे और सोऍंगे जो पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाती हो। समाज का हर तबका आज इसी आडम्‍बर के तहत पर्यावरण संरक्षक के महत्‍व को मज़ाक बना दिया है।

भला यह शिक्षा के स्‍तर को ही व्‍यक्‍त करता है कि हम इतने स्‍वार्थी हो गये हैं कि पर्यावरण संरक्षण के नाम पर फोटो, सेल्‍फी आदि को बढ़ावा दे रहे हैं और यह ख़बर उन तक चलती है जो मज़बूरी में जी रहे होते हैं, आर्थिक तंगी और घर की गरीबी में उनके घर में जीवन-यापन का सहारा कच्‍चा घर, फ्रीज के नाम पर घड़ा और एसी के नाम पर पेड़ की छॉंव और घर का ऑंगन होता है। शिविरों और आयोजनों में इन्‍हीं लागों को उपदेश दिया जाता है जिनकी हैसियत कोई बड़ी कार, एसी आदि लेने की नहीं है। दूसरी तरफ जो पर्यावरण प्रदूषण में अन्‍य वजहें भी हैं उन्‍हें भ्रष्‍टाचार आदि की वजह से कभी भी बन्‍द नहीं किया जाता है।

यदि पर्यावरण के प्रति लोग इतने ही चिंतित होते हो पर्यावरण प्रदूषण के सभी आयामों की चर्चा करते। पॉलीथीन का प्रयोग धड़ल्‍ले से हो रहा है और यह पॉलीथीन अकेले उन सभी पर्यावरण खतरों से बढ़कर है जो आमतौर पर पर्यावरण प्रदूषण के एक आयाम तहत देखा जाता है। आज बाज़ार से लेकर घर के प्रत्‍येक काम में पॉलीथीन का प्रयोग बेझिझक हो रहा है। पॉलीथीन बैन होने के बाद भी जिम्‍मेदारान लोग जो पर्यावरण संरक्षण में अभिभाषण देते नज़र आ जाएगें, पॉलीथीन के प्रयोग करने से नहीं कतराते। वहीं कई बार हमने देखा है कि पॉलीथीन का प्रयोग करने के बाद इसे यहॉं-वहॉं कहीं भी लोगों द्वारा फेंक दिया जाता है जिससे मृदा प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण आदि तरह के प्रदूषण होते हैं। यह अज़ीब बात है कि पर्यावरण संरक्षण का उपदेश उन लोगों द्वारा दिया जाता है जो पर्यावरण को भारी तरह से नुकसान पहुँचाते हैं। सादगी का परिचय तो सिर्फ फोटो, फेसबुक, इंस्‍टाग्राम और वायरल होने के लिए छद्म नीयत के तहत किया जाता है।

इस प्रदूषण की पराकाष्‍ठा सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि जब कोई प्रदूषण एक परिवेश में आता है तो उससे जुड़े पूरे इकोसिस्‍टम को प्रभावित कर देता है। जैसे कि घातक केमिकल युक्‍त पदार्थों के सेवन से मानव एवं जीवों को नुकसान होता है, वहीं उन जीवों (मछली, चिकन आदि) को खाने से मानव के स्‍वास्‍थ्‍य के साथ खिलवाड़ होता है यहॉं तक कि जान तक चली जाती है। धड़ल्‍ले से बाज़ार में चल रहे इन अनैतिक और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों का विक्रय खुलेआम हो रहा है जिसकी खिलाफ़त कोई नहीं करता क्‍योंकि उनके सम्‍बंधी किसी ऐसे पद अथवा पहुँच वाले होते हैं जो कानून इस अन्‍याय को पैसों के दम पर जीत लेगें, ऐसा सोचकर आमजन का शोषण करते हैं।

कहने को बहुत कुछ है कि किस प्रकार कुछ कम्‍पनियॉं अनैतिक रूप से जलाशय, नदियॉं आदि नष्‍ट कर दी हैं, सरकार के ही बीच के लोग पर्यावरण की रक्षा इस वजह से न कर पाए क्‍योंकि उनका व्‍यक्तिगत स्‍वार्थ निहित था। परन्‍तु इस लेख में मैं सामान्‍य बात रखना चाह रहा हूँ कि पर्यावरण संरक्षण एवं उसके संरक्षण के जागरूकता की कमान जिनके हाथ में अक्‍सर होती है वह स्‍वयं पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचा रहे होते हैं और आडम्‍बर दिखाते हुए पर्यावरण हितकारी मानते हैं। इन सबकी वजह से भारत के गरीब और आम जनता के बीच गलत संदेश जाता है और वह पुन: ठगा सा महसूस करता है कि साहब जी ने तो पर्यावरण संरक्षण के बारे में बात किया और स्‍वयं किस कदर पर्यावरण को प्रदूषित करने में अमादा हैं और यह ढीकरा आमजन गरीबों पर फोड़ देते हैं।

लेख पूर्णत: प्रकृति संरक्षण के लिए लिखा गया है, कृपया दिल पर बात न लें। यदि आप पर्यावरण प्रदूषित कर रहे हैं तो आडम्‍बर से हटकर पर्यावरण को संरक्षित करने के उद्देश्‍य से साधारण जिन्‍दगी अपनाएँ। धन्‍यवाद।

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