पिछले वर्ष मैंने 'यूथ की आवाज़' के लिए एक कंटेस्ट लेख लिखा था जिसमें मेरे लेख को विजेता की श्रेणी में चुना गया था। मेरे लेख का विषय था - इंटरनेट की छात्र जीवन में उपयोगिता और इसके नुकसान। मैंने उस लेख में इंटरनेट और इसके प्रयोग के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा किया था। आज समाज में इंटरनेट की उपलब्धता आसान होने के बावजूद हम समाज को पतन की दिशा में जाते हुए देख रहे हैं। मुझे याद है जब मैं स्कूल में माध्यमिक स्तर में था तब से एक विषय काफी चर्चा का विषय रहता था, अमीर और अमीर होता जा रहा है जबकि गरीब और गरीब। इसके पीछे हम चर्चा तो करते थे परन्तु विषय का सार और रहस्य तब हमारी समझ के परे था।
राजनीतिक रूप से हम समाज के खाई के बारे में चर्चा कर अपनी जिम्मेदारियों पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं। जिन्हें कोई पद-प्रतिष्ठा यदि प्राप्त हो भी गई तो उसी का रौब दिखाने में उनकी जिन्दगी बीत जाती है और अमीर का और अमीर होना जबकि गरीब का और गरीब होना हम सबके लिए उसी प्रकार चर्चा का विषय बना रहता है जिस पर चर्चा करना तो पसंद होता है, परन्तु हम सब होते बेबस हैं।
इस लेख के माध्यम से हम समाज के कुछ ऐसे बिन्दुओं पर चर्चा करने वाले हैं जिनकी अहमियत काफी है परन्तु हमारा उद्देश्य समस्याओं को दिखाकर किसी को कोसना नहीं है। सरकार, प्रशासन और जन सामान्य को खोई संस्कृति का पैमाना सामने रखकर ही बदलाव की शुरूआत करने की जद्दोजहद करनी होगी।
आज आए दिन हम तरह - तरह के आपराधिक कृत्यों को देखते हैं। विभिन्न आपराधिक कृत्यों में नौयुवक/युवतियों की संलिप्तता चिन्ता का विषय बनी हुई है। ऐसे कृत्य अशिक्षा की वजह से बढ़ रहे हैं, इस बात को नकारा नहीं जा सकता। आज हमारी नई पीढ़ी शिक्षा से इतर जाकर मॉडर्नाइजेशन के नाम पर अभद्रता और व्यभिचार को सही ठहराने पर गर्व महसूस करती है। भारतीय संस्कृति एवं इसके मायने जो हमारे लिए आदर्श का काम करती आई है, आज लुप्त होने के कगार पर है। इंटरनेट के प्रयोग ने हमारी संस्कृति, सदाचार एवं इन मूल्यों की पहुँच को जन-जन तक पहुँचाने का काम किया है, परन्तु इसके विपरीत कुरीति, कदाचार, निम्न आचरण कई घरों में कब्जा करने में सफल रहा है।
भारतीय संस्कृति और मूल्य के इतर युवा पीढ़ी का शिक्षा से विरत रहकर नशे की चपेट में आना और इन मनोविकृति परिस्थिति का साहित्य एवं समाज द्वारा आडम्बरभरी ग्लोरीफिकेशन ने भी भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से को दयनीय परिस्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। इन गतिविधियों में लिप्त अशिक्षित और अयोग्य लोगों का जुड़ाव अच्छे रोजगार से कदाचित ही हो पाता है और अंतत: बेरोजगारी एवं अण्डरएम्प्लॉयमेंट जैसी परिस्थितियां सामने आती हैं, जिसका सीधा फायदा राजनीतिक पार्टियों के साथ - साथ गुनाह की दुनिया से जुड़े लोगों द्वारा उठाया जाता है। समाज में सहिष्णुता का पतन इन्हीं कुप्रथाओं के प्रचलन के कारण प्रारम्भ हुआ है। ऐतिहासिक समय जिन्हें हम कुप्रथाओं के रूप में गिनते हैं उनका निदान हुआ है, परन्तु आज जिस द्रुत गति से इंटरनेट और मीडिया की मदद से समाज के एक बड़े हिस्से को भटकाया जा रहा है अथवा स्वयं उन बच्चों के अभिभावकों का समुचित नियंत्रण नहीं है, यह एक बड़ी चिन्ता का विषय है।
दोस्तों, मैंने शिक्षा एवं समाज सेवा के क्षेत्र में अथक प्रयास करते हुए बहुत लगन एवं मेहनत से काम किया है एवं पाया है कि नशा, इंटरनेट का दुरूपयोग, अपराध एवं अभद्रता का ग्लोरीफिकेशन ने समाज को पतन की दिशा में मोड़ दिया है जिसके परिणाम नजदीक भविष्य में अत्यंत भयावह होने वाले हैं। चन्द लोग हैं जिन्होंने भारतीय संस्कृति की परवाह की है एवं शिक्षा से जुड़कर एक बेहतर भविष्य की राह अपनाया है, परन्तु ऐसे चन्द लोगों को आज समाज में सकारात्मक परिवर्तन हेतु योगदान देने की अत्यंत आवश्यकता है। सरकार एवं प्रशासन की सुविधा पैसे वालों के लिए जिसका दुरूपयोग हम समय के साथ होता देखते आ रहे हैं, परन्तु हममें से सक्षम लोगों को भारतीय संस्कृति के पनरूस्थान के लिए वापस प्रयत्न करना होगा जिसका रास्ता धार्मिक उपदेशों, प्रवचनों आदि तक सीमित न होते हुए त्याग के रास्ते होकर शिक्षा एवं रोजगार के अवसर एवं तरीकों को जन-जन तक पहुँचाने का है।
आज नशा के चलन ने कई युवाओं की जिन्दगियों को तबाह किया है, बचा-कुचा समय रील्स आदि और अभद्रता भरे कंटेट बर्बाद कर देते हैं। जो घर से सक्षम हैं और जायदाज में काफी कुछ पाये हैं उन्हें ज्यादा असर नहीं होता क्योंकि उनके पास वापसी का रास्ता होता है, दूसरी तरफ सामान्य परिवार के युवा ऐसी आदतों के चलते जिन्दगी का काफी सुनहरा वक्त गवां देते हैं।
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