दोस्तों, मेरा लिपिकों के सम्बंध में शायद यह आखिरी लेख है। अब आये दिन मैं लिपिक और वेतन विसंगति के बारे में कोई लेख नहीं लिखा करूंगा। दुनिया में तरक्की के कई रास्ते हैं, लेकिन मैं उस मोड़ पर खड़ा हूँ जहॉं लिपिक होने पर खुद पर शर्म भी आती है और असहाय भी महसूस करता हूँ। इस लेख को लिखने का मेरा मुख्य उद्देश्य खुद की आत्मा को मारकर शान्त बैठकर ताउम्र अन्याय के सामने सिर झुका देना है, वैसे लिपिक के इस पद से मुक्ति चाहता हूँ और प्रयासरत भी हूँ।
मुझे याद है कुछ महीने पहले जब मैं लिपिक वेतन विसंगति के मुद्दे को तूल देने का प्रयत्न कर रहा था, तब कोई भी लिपिक वेतन विसंगति के बारे में बात नहीं कर रहा था। मुझे लिपिक वेतन विसंगति का दर्द इसलिए था क्योंकि उच्च योग्यता होने के बाद लिपिक को चपरासी के समान न सिर्फ वेतन मिलता है, बल्कि लिपिक की छवि भी चपरासी जैसा बनाने की कोशिश की जाती रही है। पुराने दिनों जब कम योग्यता वाले चपरासियों को लिपिक के पद पर पदोन्नत कर दिया जाता था, तबसे ही लिपिक को बदनामी का टैग मिल चुका है। सीपीसीटी आने के बाद चपरासी और लिपिकों में एक खाई/लकीर सी तो बनी लेकिन नवनियुक्त उच्च योग्य लिपिकों को चपरासियों के ही समान ज़हालत भरी जिन्दगी जीने को मज़बूर होना पड़ा।
लिपिकों की मज़ाल क्या कि अनुसेवक की तरह चाकरी करने से मना कर दें। कुछ लिपिक जो भाग्यवश लिपिक बन गये या किन्हीं कारण वश लिपिक पद पा गये या इतना प्रताडि़त कर दिये गये कि सांसे चल रही, उसी को जिन्दगी मान बैठे, ऐसे ही लिपिकों ने लिपिक पद को बदनाम कर डाला। भ्रष्टाचार में लिप्त दो कौड़ी के इन लिपिकों को लिपिक वेतन विसंगति का दर्द कभी नहीं हुआ। मध्यप्रदेश का लिपिक वर्ग स्वार्थी और निम्नस्तर सोच रखने वाला है। यह वही वर्ग है जो इतना स्वार्थी हो गया है कि स्वयं की सिद्धि के सिवाय दूसरे समकक्ष ईमानदार लिपिकों को नज़रअन्दाज करने में इसे हिचक नहीं होती। लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने के लिए एकता की दुहाई देने वालों को भी मैंने नज़दीक से देख लिया है और यह भी देख लिया है कि असमान योग्यता और क्षमता वाले लिपिकों में लिपिक पद की गरिमा को गौरवशाली बनाने के लिए काबीलियत ही नहींं है।
मैं स्वयं लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने की जद्दोजहद में इस तरह पागल हो गया कि पता ही नहीं चला कि मैं भी उस वर्ग से आता हूँ जिसे यूँ ही नहीं निकम्मा, घूसखोर और बदनाम किया गया है, इन लिपिकों की ख़ामोशी और निकम्मापन ही इस बात का परिणाम है। अकार्यपालिक लिपिक पदों के इन बाबुओं का गुमान इस कदर होता है कि मानों यही ऑफिस चला रहे हों जबकि इनकी असली औकात दो कौड़ी की भी नहीं होती। दिन-ब-दिन अपमानित और जहालत झेलने के बाद भी इन लिपिकों का आत्मसम्मान नहीं जगता।
अभी हाल ही में मध्यप्रदेश मंत्रालयीन लिपिकों ने लिपिक वेतन विसंगति दूर करने का ज्ञापन/मॉंग पत्र सरकार के समक्ष रखा और मॉंग किया कि सिर्फ मंत्रालयीन लिपिकों का ग्रेड पे 1900 से बढ़ाकर 2400 कर दिया जाए। बकाया विभागों के लिपिकों का क्या? उन लिपिकों का क्या जो दिन रात लिपिक एकता की दुहाई देते हैं और पूरी ईमानदारी से काम करते हैं, उनकी उम्मीद भी अधिक ग्रेड पे पाने की है क्योंकि यही तो उनका हक़ है। लेकिन साफ हो गया कि लिपिक में ही ऐसी तुच्छ सोच विद्यमान है जो और लिपिकों को नीचा दिखाने से पीछे नहीं हटती। अब मेरा दिल टूट चुका है। मैंने स्थानान्तरण से लेकर कई मुद्दों पर भाई-भतीजावाद, घूसखोरी और भ्रष्टाचार सरकारी कार्यालयों में देखा है और सबसे अधिक जिसका शोषण हो रहा है, वह है नवनियुक्त लिपिक।
इस लेख के माध्यम से न तो मैं सरकार से कोई मॉंग पूरी करवाना चाहता हूँ और न ही लिपिक एकता की बात करना चाहता हूँ, बल्कि इतना बेईज़्जत और दरकिनार होने के बाद भी मैंने अंतिम मौके तक लिपिक वेतन विसंगति को ज्वलंत मुद्दा बनाना चाहा। मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि उच्च योग्यता पर भर्ती होने के बाद मुझसे उच्च योग्यता का तो काम कराया जाए और साथ-ही-साथ चपरासी जैसा रवैया भी अपनाया जाए क्योंकि मेरा वेतन चपरासी के समकक्ष है। शर्म आनी चाहिए उन लोगों को जो ईमानदार लिपिक को खून के आंसू रोने को मज़बूर किये हैं। मध्यप्रदेश में ईमानदारी और सच्चाई की दुहाई देना एक अपराध है, जिनको मेरी बातें झूठ लग रही हों तो सर्वे करा लीजिए और पता कर लीजिए कि किस कदर भ्रष्टाचार सरकारी कार्यालयों में व्याप्त है। झूठा बदनाम है तो बाबू पद/ लिपिक पद। लिपिक भी होंगे भ्रष्ट लेकिन यह उन लिपिकों को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं जिनमें स्वयं की गरिमा है, आत्मसम्मान है।
लिपिक वेतन विसंगति के सम्बंध में यह मेरा अंतिम लेख है। एक बात आप सभी नोट कर लें, न तो कभी लिपिक वेतन विसंगति दूर होगी और न ही लिपिकों को कोई सम्मान मिलने वाला है। ताउम्र लिपिक नौकरों की तरह काम करते रहेंगे और फिर भी आपके किसी भी काम की कोई कदर न होगी। शर्म आती है खुद पर कि लिपिक पद पर क्यों काम कर रहा हूँ। बहुत जल्द इस नरक से दूर जाना चाहता हूँ। मैं एक लिपिक के तौर पर डेटा एन्ट्री से लेकर कई प्रकार के कार्य करता हूँ, जबकि इस अन्याय और शोषण के बारे में बोल-बोलकर और सोच-सोचकर अवसादग्रस्त हो गया हूँ। मैं लिपिक वेतन विसंगति को दूर कराने के लिए इसलिए इतना चीखा-चिल्लाया क्योंकि काम तो करना ही पड़ता है, जो झूठी बातें फैलाई जाती हैं एक लिपिक के बारे में वह असलियत में सच नहीं होता है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण में शूद्र उस वर्ण को बोला जाता था जो मालिक से पहले जगे और बाद में सोए, मालिक की सेवा करे, मेहनत करे, सारा काम करे, लेकिन मिलता था अपमान और बेईज्जती। मध्यप्रदेश के लिपिक उन्हीं शूद्र के समान हैं। यदि छुआछूत और शूद्रों पर अत्याचार अमानवीय और गलत था, तो आज क्यों सरकारी कार्यालयों में योग्य लिपिकों के साथ उसी प्रकार व्यवहार किया जा रहा है। मध्यप्रदेश का लिपिक एक शूद्र ही है। लिपिकों से बन्धुआ मज़दूर की तरह कार्य कराया जाता है और बदले में अपमानित किया जाता है। यह मेरा अन्तिम लेख है, मैं लिपिक वेतन विसंगति के बारे में अब कोई लेख नहीं लिखूंगा, बस इतना कहना चाहूंगा सरकार से कि लिपिकों के साथ अत्याचार बन्द करो, लिपिक भी इन्सान हैं, लिपिकों को उनकी योग्यता के आधार पर वेतन दिया जाए।
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