eDiplomaMCU: नई पेंशन योजना फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट से भी बदतर है, जानिए एनपीएस के नुकसान

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Wednesday, March 30, 2022

नई पेंशन योजना फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट से भी बदतर है, जानिए एनपीएस के नुकसान

दोस्‍तों, बिना किसी बात घुमाए मैं सीधा महत्‍वूर्ण मुद्दों के बारे में बात करना चाहूँगा। अपनी बात रखने से पहले मैं कुछ स्‍पष्‍ट करना चाहूँगा। एक दोस्‍त ने मुझसे सम्‍पर्क करके कहा कि तुम पुरानी पेंशन, लिपिक वेतन विसंगति, अथवा कर्मचारी हित के बारे में जिस अन्‍दाज में बात करते हो, सरकार और नेता की नज़र तुम पर है और कभी भी तुम्‍हें घेरे में ले सकते हैं। उस दोस्‍त ने मेरे प्रयास की तारीफ़ तो की, परन्‍तु बोला कि कैसे इतने बेबाक और निडर होकर बोलते हो, डर नहीं लगता? मैं यह बात स्‍पष्‍ट कर दूँ कि मेरा उद्देश्‍य मध्‍यप्रदेश की तरक्‍की है और तथाकथित छोटे कर्मचारी भी इन्‍सान ही हैं जिनको उपेक्षित किया गया है। आज तकनीकि और सभ्‍य समाज में अन्‍याय और शोषण की नीति को चुपचाप सहन करना भी मानवीय मूल्‍यों के खिलाफ़ है, रही बात मुझे डर की तो मैं किसी से इसलिए नहीं डरता क्‍योंकि मैं न तो घूस लेता हूँ और न ही भ्रष्‍टाचार को बढ़ावा देता हूँ। खुलकर कहता हूँ, मेरे खिलाफ़ जिसे जो करना हो कर ले, लेकिन भारत और माननीव मूल्‍यों के स्‍वतंत्रता की आज़ादी को कोई भला कैसे रोक सकता है। आखि़री बात यह कि छोटे कर्मचारियों/लिपिकों पर अन्‍याय की जो मैं दुहाई देता हूँ वह सच्‍चाई है, मेरा विरोध किसी से भी नहीं अपितु इस व्‍यवस्‍था से है जो शासन में कार्यरत योग्‍य तथाकथित निचले तबके पर होता अन्‍याय को नज़रअन्‍दाज करता है।   

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नई पेंशन योजना विरूद्ध एफडी

पेंशन किसी भी कर्मचारी के बुढ़ापे का एकमात्र सहारा है। भारत एवं राज्‍यों में अलग-अलग पेंशन नियम हैं। कुछ पेंशन विधवा/कल्‍याणी, दिव्‍यांग/विकलांग अथवा गरीब-असहाय के नाम पर भी दिये जाते हैं। पुरानी पेंशन योजना सरकारी कर्मचारियों के लिए थी जिसके माध्‍यम से कर्मचारी रिटायर होने के बाद अथवा जब स्‍वेच्‍छा से रिटायर होता था (निर्धारित मापदण्‍डों को पूरा होने के पश्‍चात्) उसके अन्तिम तात्‍कालिक वेतन का लगभग आधा ताउम्र पेंशन के रूप में मिलता था। इस पेंशन में साल में दो बार महंगाई भत्‍ता भी जुड़ता था और साथ ही साथ कर्मचारी को कुछ हो जाने के बाद पत्‍नी/नॉमिनी को पेंशन ताउम्र मिला करती थी। इस प्रकार पुरानी पेंशन पाने वाले का परिवार अपनी जिन्‍दगी का गुजर-बसर सम्‍मान के साथ कर सकता है/था।   

पुरानी पेंशन में जीपीएफ अथवा किसी भी प्रकार की स्‍वैच्छिक कटौती कर्मचारी की स्‍वयं की थी, इसका पेंशन से कोई लेना देना नहीं था। नई पेंशन योजना तात्‍कालिक भारतीय जनता पार्टी की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा लाया गया, वही अटल जी जो महान और युगपुरूष व्‍यक्तित्‍व माने जाते हैं। बीजेपी द्वारा लाये गये इस पेंशन को सरकारी कर्मचारियों पर बिना उनकी पूर्ण सहमति के लागू करा दिया गया जबकि राज्‍यों को इस बात की छूट दे दी गई कि राज्‍य सरकार यदि चाहें तो पुरानी पेंशन के साथ बने रहें या नई पेंशन योजना लागू कर दें। ज्‍यादातर सरकारों ने आये दिन केन्‍द्र सरकार के नक्‍शे कदम पर चलते हुए पुरानी पेंशन को हटाकर नई पेंशन लागू करा दीं, चाहे सरकार कांग्रेस की हो या कोई अन्‍य पार्टी, सभी ने नई पेंशन योजना का समर्थन किया। महान विद्वान स्‍व. अटल जी ने नेताओं को महत्‍वाकांक्षी नई पेंशन योजना से अलग रखा क्‍योंकि नेता लोग तो समाजसेवक होते हैं। 

नई पेंशन योजना के बारे में सच्‍चाई- नई पेंशन योजना के तहत आपके मूल वेतन और महंगाई भत्‍ते से कट रहा पैसा रिटायमेंट के बाद 60 प्रतिशत आपको ही मिलता है जबकि 40 प्रतिशत का पेंशन। लेकिन यह 40 प्रतिशत पैसा पेंशन के लिए कम्‍पनीज में लगाया जाता है जो आपको ब्‍याज की तरह ही महीने का पेंशन देती हैं। ध्‍यान दीजिए, आपको नई पेंशन में कोई मूल निर्धारित पेंशन और उस पर इन्क्रिमेंट भविष्‍य में नहीं मिलता जैसा पुरानी पेंशन में महंगाई भत्‍ते के रूप में मिलता है। नई पेंशन योजना पीएफआरडीए द्वारा निर्धारित की गई है जिसकी खिलाफ़त समाजवादी सरकारों और संगठनों ने आये दिन किया है। नई पेंशन में आपकी ही कमाई का पैसा भविष्‍य में कर योग्‍य माना जाता है। क्‍या भरोसा कि भविष्‍य में सरकार कोई नये बदलाव या कानून लाकर टैक्‍स का स्‍लैब अधिक कर दे। 

फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट किसी भी बैंक पर यदि आप एकमुश्‍त कुछ रूपये रख दें तो आपको 5,6,7 आदि प्रतिशत का वार्षिक ब्‍याज मिल जाया करता है। याद है, कुछ वर्षों पूर्व 1990 के दशक में 10-12 प्रतिशत तक बैंक ब्‍याज डिपॉजिट पर मिला करता था। आये दिन यह कम होता गया। न सिर्फ फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट में बल्कि स्‍माल सेविंग स्‍कीम जैसे पीपीएफ में भी आये दिन ब्‍याज का दर कम कर दिया गया है। अब ज़रा सोचिए जो बैंक ब्‍याज दर आज 2022 में मिल रहा है यह कितना कम है, करीबन 5 प्रतिशत लम्‍बे सालों के लिए आपको यह ब्‍याज दिया जा रहा है, जबकि आज दिनांक के हिसाब से भारतीय स्‍टेट बैंक के द्वारा शॉर्ट टर्म एफडी पर मात्र 2.90 प्रतिशत का ब्‍याज मिल रहा है, यही ब्‍याज दर 2 साल पहले करीबन 4.5 प्रतिशत था (7 से 14 दिन के लिए)। भारत में भविष्‍य में ब्‍याज की दरें कम होती जाएंगी, विकासशील अधिकतर देश अपने देश में ब्‍याज दर कम ही रखा करते हैं, लेकिन भारत में संलिप्‍त भ्रष्‍टाचार और घोटाओं के उदाहरण पर ध्‍यान दिया जाए तो साफ हो जाएगा कि भारत सिर्फ और सिर्फ कागजों पर तरक्‍की कर रहा है। आज भी भारत में राशनकार्ड धारकों की संख्‍या कम नहीं हो रही है, जो विकास के लिए विरोधाभाषी है। 

जब कुछ वर्षों बाद आप रिटायर हो रहे होंगे तो उस वक्‍त का इन्‍फ्लेशन/महंगाई का स्‍तर मिल रहे ब्‍याज से बहुत अधिक रहने वाला है, ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार आज बहुत सारे सरकारी कर्मचारी जो रिटायर हो रहे हैं और तकरीबन 1 हज़ार पेंशन प्राप्‍त कर रहे हैं। माफ करिए, यह पेंशन नहीं बल्कि फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट का फिक्‍स्‍ड रिटर्न है। जिस प्रकार से आज बैंक जब चाहें रिटर्न पर ब्‍याज की दर कम कर दिया करते हैं, भविष्‍य में भी पेंशन हेतु जो ब्‍याज दर पर निर्धारित किया जाएगा, कम कर दिया जाएगा। बढ़ती महंगाई की तुलना में मिल रहा ब्‍याज का दर अत्‍यल्‍प होगा जो सरकारी कर्मचारियों के लिए दुखदायी रहने वाला है। निजीकरण भारत में अपनी पहचान स्‍थापित कर रहा है, कोई अतिशयोक्ति नहीं यदि आप रिटायरमेंट की उम्र में निजी कम्‍पनियों के साथ पेंशन के लिए जाएं और यह कम्‍पनियॉं जब चाहें तब आपके फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट स्‍वरूप पर मिलने वाले ब्‍याज के दर को कम कर दें। 

अन्‍त में कुछ ऐसे आदर्श कथनों के साथ आपको छोड़ जाना चाहता हूँ जो हमारे देश के तथाकथित सर्वोत्‍तम समाजसेवी के रहे हैं। महंगाई की मार जब पड़ती है तो आप खाना-पीना छोड़ देते हैं, आपके बच्‍चे भूख से तड़प रहे होते हैं, तब आपके लिए चिन्तित व्‍यक्तित्‍व का बयान आता है कि प्‍याज खाना छोड़ दें क्‍योंकि मैं नहीं खाती, प्‍याज की कीमत की फिकर वो करें जो खाते हों, ऐसा माननीया वित्‍त मंत्री निर्मला सीथारमन ने सदन में कहा था। हिमाचल प्रदेश के बीजेपी के मुख्‍यमंत्री जयराम ठाकुर जी ने कहा कि यदि कर्मचारियों में हिम्‍मत है तो आ जाएं मैदान पर और लड़ लें चुनाव और यदि जीत जाएं तो बन जाएं पुरानी पेंशन के हक़दार। बस इतना ही कहना है कि कर्मचारी भी इन्‍सान हैं, कोई जानवर नहीं जिसे जब मन आया भूखा मार दिया गया। जब महंगाई की मार पड़ी है तो लेखक स्‍वयं प्‍याज, टमाटर या अन्‍य दैनिक वस्‍तुओं से समझौता किया है। आज लेखक खुद के प्रति आत्‍मग्‍लानि महसूस करता है क्‍योंकि मध्‍यप्रदेश लिपिक वेतन विसंगति का शिकार हो गया है। लेकिन महत्‍वाकांक्षा को कोई दीवार रोक नहीं सकी है, लेखक ज़रूर आगे चलकर ऐतिहासिक परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध है जो मानव कल्‍याण के लिए एक सबक होगा। 

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