चाइल्ड मैरिज या बाल विवाह समाज में एक कुप्रथा रही है जो अब भी व्याप्त है परन्तु पिछले 100 साल में बाल विवाह के ऑंकड़ों में ज़बरदस्त गिरावट आयी है। आजकल कभी-कभार समाचार पत्रों अथवा सोशल मीडिया के माध्यम से बाल विवाह की जानकारी पता चल जाती है लेकिन उतनी ही तत्परता से सरकार के द्वारा बाल विवाह कराने वालों के खिलाफ़ कार्यवाही करती है। बाल विवाह में बच्चों की जिन्दगियॉं बबार्द हो जाती हैं। एक बच्चा कभी अपना बचपन नहीं जी पाता। उम्र के कम पड़ाव में ही उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियॉं उठानी पड़ जाती हैं।
बाल विवाह निषेध कानून के प्रावधान |
बाल विवाह की वजह से अपरिपक्व बच्चों में जिन्दगी की सच्चाई के प्रति समझ नहीं होती और परिणामस्वरूप अशिक्षा, घरेलू हिंसा, गरीबी और पुनर्वती कुरीति को बढ़ावा मिलता आया है। भारत सरकार ने सन् 1929 में बाल विवाह के विरोध में एक कानून लाया जिसकी वजह से बाल विवाह के ऑंकड़ों में सकारात्मक गिरावट आयी है। यह बात सत्य है कि अभी ऑंकड़ा शून्य नहीं हुआ है परन्तु अब समाज में बाल विवाह के विरूद्ध समझ विकसित हुयी है, साथ ही साथ कानून ने भी समाज की भरपूर मदद की है। तो चलएि बात कर लेते हैं उन प्रावधानों की जो भारत सरकार ने बाल विवाह के विरूद्ध लागू किया है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 1929 भारत सरकार के द्वारा बाल विवाह को रोकने के लिए पहला कानूनन कदम था। उस वक्त लड़कियों की कानूनन शादी की उम्र 14 वर्ष जबकि लड़कों की 18 वर्ष थी। 2006 के संशोधन में इसे क्रमश: 18 वर्ष एवं 21 वर्ष कर दिया गया। तो आज की परिस्थिति के हिसाब से कोई भी लड़का या लड़की यदि 18 साल से कम उम्र के हैं तो उन्हें नाबालिग समझा जाएगा। परन्तु बाल विवाह में लड़कों की उम्र 21 को कानूनन सही ठहराया गया है। कोई लड़की 18 या अधिक वर्ष की है और यदि लड़का 21 या अधिक वर्ष का है, कानूनन शादी के लिए अर्ह है एवं इसे बाल विवाह नहीं माना जाएगा। धारा 370 के हटने के बाद बाल विवाह का कानून समस्त भारत अर्थात् जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू हो गया है।
लड़के को सज़ा का प्रावधान - कोई लड़का यदि बालिग है, अर्थात् 18 वर्ष से अधिक का है जबकि 21 वर्ष से कम का है तो उसे बाल विवाह कारित करने पर 15 दिन का साधारण कारावास अथवा ज़ुर्माना अथवा दोनों की सज़ा होगी। परन्तु यदि लड़के की उम्र 21 वर्ष या इससे अधिक है तो उसे बाल विवाह करने पर 3 माह के कारावास की सज़ा अथवा ज़ुर्माना अथवा दोनों की सज़ा होगी। ध्यान देने योग्य बात है कि नाबालिग लड़के-लड़कियों के द्वारा आयोजित शादी अमान्य मानी जाएगी क्योंकि तब उन्हें कानून के तहत अर्ह नहीं माना गया है।
शादी समारोह में शामिल मेहमानों को सज़ा एवं अभिभावक को सज़ा - शादी समारोह में सम्मिलित सभी को एवं अभिभावक को बाल विवाह करने के कारण 3 माह का साधारण कारावास अथवा ज़ुर्माना अथवा दोनों की सज़ा होगी। परन्तु यदि कोई यह साबित कर दे कि उसे पता नहीं था कि वहॉं पर बाल विवाह हो रहा था तो वह निर्दोष माना जाएगा।
* किसी भी परिस्थिति में महिलाओं को कारावास की सज़ा बाल विवाह कानून के तहत नहीं होगी।
संज्ञेय अपराध एवं परिसीमा काल - पुलिस सूचना मिलते ही कार्यवाही कर सकती है। दूसरी तरफ बाल विवाह समारोह के बाद 1 वर्ष के अन्दर ही इसके खिलाफ़ कार्यवाही की जा सकती है। मतलब बाल विवाह सम्पन्न होने के 1 साल के बाद इसके विरूद्ध कोई कानूनन कार्यवाही नहीं ही जाएगी।
अब हम सब जान गये हैं कि बाल विवाह को जानकर उसके जलशे में शामिल होना भी अपराध है। हमें बाल विवाह की खिलाफ़त करनी चाहिए जो शिक्षा एवं समझदारी से ही सम्भव है। दूसरी तरफ भारत सरकार द्वारा लड़कियों की भी शादी की उम्र लड़कों के समान 21 किये जाने की बात चल रही है, परन्तु कानूनन तौर पर यह अभी अधिनियमित नहीं हुआ है, इस बात को इस प्रकार भी सही ठहराया जा सकता है कि लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष सही है क्योंकि बायोलॉजिकल सर्वे देखा जाए तो लड़किया लड़कों से लगभग 3-4 साल पहले ही मैच्योर हो जाती हैं। देरी से शादी लड़कियों में आगे काम्प्लिकेशन्स बढ़ाएगा जो सही न होगा। परन्तु देखने वाली बात रहेगी कि क्या लड़कियों की भी शादी की उम्र 21 वर्ष होगी। आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
वीडियो देखें - THE CHILD MARRIAGE RESTRAINT ACT, 1929 | बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929
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