समय के साथ शिक्षा के मायने बदल रहे हैं। यह बदलाव उद्योग जगत की मांग के साथ - साथ बच्चों को नए आयाम से जोड़ने का भी रहा है। कोरोना वायरस महामारी के बाद से हमने देखा है कि किस प्रकार विद्यालयों में पाठ्यक्रम को ऑनलाईन तरीके पर मोड़ा गया। इसके पश्चात् नई शिक्षा नीति ने भी दर्शा दिया कि इंडस्ट्री की मांग के अनुरूप ही शिक्षा पद्धति होनी चाहिए और बच्चों को उनकी रूचि के क्षेत्र में काम करने का मौका मिलना चाहिए। इन्हीं वजहों ने होम स्कूलिंग अर्थात् घर से शिक्षा के विचार को जन्म दिया है। भारत में तो होम स्कूलिंग उतना चलन में नहीं आया है परन्तु पश्चिमी कई देशों में होम स्कूलिंग को एक बेहतर शिक्षा पद्धति के रूप में देखा जा रहा है।
भारत में भी आपने स्वयं एप्लिकेशन के माध्यम से होम स्कूलिंग के एक चेहरे को देख लिया है। भारत में उच्च शिक्षा में आपको ऑनलाईन सर्टिफिकेशन, डिग्रियां आदि देखने को मिल जाएगा, परन्तु स्कूल में होम स्कूलिंग के बारे में चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं, परन्तु इसे मूर्त रूप कुछ वक्त बाद आप देख पाएंगे। होम स्कूलिंग प्रारम्भ किये जाने की मुख्य वजहों में से एक सुरक्षा करण भी है जो कई देशों में आतंकी हमलों से बच्चों की सुरक्षा के लिए पहल में लाया जा रहा है, वहीं अन्य वजहों में बच्चों को एक बेहतर वातावरण प्रदान करने का है जिसमें बच्चों के अभिभावक ही बच्चों को सकारात्मक परिवेश देने की पहल करेंगे, यह बिल्कुल वैसा ही होगा जैसा कि होम ट्यूशन देने वाले शिक्षक बच्चों की पढ़ाई में सहयोग करते हैं।
होम स्कूलिंग के माध्यम से बच्चों में औद्योगिक कार्य की समझ बचपन से ही हो जाएगी क्योंकि उद्योग क्षेत्र के कार्य को बच्चे होम स्कूलिंग के माध्यम से बचपन से ही देखते आ रहे होंगे, इस प्रकार से बेरोजगारी दर में भी कमी आएगी। होम स्कूलिंग भी बच्चों के लिए मुश्किल भरा हो सकता है क्योंकि इसमें मोबाईल फोन, कम्प्यूटर आदि जैसे उपकरणों/तकनीकों का प्रयोग किया जाएगा। आजकल के अधिकांश बच्चे मोबाईल के दुर्पयोग के चपेट में आ चुके हैं, इसकी वजह न सिर्फ बच्चों द्वारा खुद की ऐसी समझ है बल्कि एडवर्टाइजमेंट एजेंसियों द्वारा किया जा रहा तरीका है जो अनुचित वेबसाईट्स पर बच्चों/यूजर्स को रिडायरेक्ट कर दिया करता है। बच्चे मोबाईल फोन का प्रयोग करके अपना बचपन खोते जा रहे हैं, गेम में पैसा लगाने से लेकर एडल्ट्री के दलदल से होते हुए समय बर्बादी के हर आयाम को छूते जा रहे हैं जो हर प्रकार से बच्चों के विकास पर लगाम लगाता है।
सोशल मीडिया जैसे यूट्यूब, इंस्टा आदि के सदुपयोग के साथ - साथ दुरूपयोग अधिक हैं जो बच्चों पर आसानी से पकड़ बना लेते हैं। शॉर्ट्स का चलन इस कदर हावी हो चुका है कि बच्चे सदाचार, नैतिक मूल्यों से दूरी बनाकर अपनी शिक्षा से इतर उस दुनिया में चले जाते हैं जो उनके भविष्य के लिए घातक होता है। आज हर कोई यूट्यूबर, इंफ्लुएंशर बनने की होड़ में है, भले ही जानकारी और समझ के क्षेत्र में उनका स्तर नगण्य ही क्यों न हो। यह भावी बेरोजगारी के साथ - साथ नशे में लिप्त ऐसे समाज को जन्म दे रहा होता है जो आपराधिक प्रवृत्तियों को बढ़ाने में अहम रोल अदा करता है।
बच्चों को अच्छा परिवेश प्रदान करना अभिभावकों के लिए अच्छा रहेगा परन्तु तकनीकि के दौर में सही दिशा दे पाना अभिभावकों के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता है। अधिकांश बच्चे शिक्षा से दूर नशे आदि की चपेट में स्कूल की जिन्दगी से ही लग जाते हैं जिसमें स्कूल दोस्तों का सर्कल भी अहम रोल अदा करता है। अभी होम स्कूलिंग को शत प्रतिशत सही या गलत नहीं ठहराया जा सकता, परन्तु वर्चुअल रोबोट आदि का डिजिटल शिक्षक के रूप में बच्चों के बीच आना भी उसी दिशा की तरफ एक इशारा है जो भविष्य में होने वाला है। होम स्कूलिंग भारत में एक पहल होगी जो अगले कई वर्षों तक शिक्षा के मायने बदल देगी।
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