दोस्तों, मेरा नाम अभिषेक है। आज इस लेख में मैं मध्यप्रदेश के लिपिकों से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें करने वाला हूँ। मेरा मकसद यह बिलकुल नहीं कि लिपिकों को हतोत्साहित करूँ या उनके संघर्ष के बीच कुछ मनमुटाव पैदा करूँ। असल में इस लेख में आप एक सामान्य लिपिक की भावनाओं को समझेंगे और आपको यह एहसास होगा कि जो भी बातें लेख या वीडियोज के माध्यम से मैंने कही हैं, वह सोलह आने सच है।
म.प्र. लिपिक कर्मचारियों की दुर्दशा |
आज मैं लिपिक वेतन विसंगति या लिपिकों की मॉंगों और संघर्ष के बारे में बात नहीं करने वाला। आज मैं आपको मध्यप्रदेश सरकार के कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों के बारे में बात करूँगा जिससे आपको इस बात का एहसास हो जाएगा कि मध्यप्रदेश में लिपिक बनना क्यों गलत है। मध्यप्रदेश के लिपिकीय संवर्ग कर्मचारियों का जीवन स्तर एक गरीब नागरिक की भॉंति है, महीने में मिलने वाली तनख्वाह से लिपिक कर्मचारी अपना परिवार ठीक से चला पाने में असक्षम है। लिपिकों का वेतन कम होता इस बात को स्वीकार एवं मान्य तब किया जा सकता था जबकि लिपिक कर्मचारियों की भर्ती ही अल्प योग्यता के लिए हो रही हो जैसे किसी चपरासी की भर्ती के लिए 5वीं,8वीं पास ही मॉंगा जाता है और कई सारे प्रकरणों में उच्च योग्यता रखने वाले चपरासी व समकक्ष पदों के लिए अभ्यर्थियों को अनर्ह मान लिया जाता है।
1. आवास भत्ता रिकवरी रेंट 50 प्रतिशत बढ़ेगा - एक सरकारी कर्मचारी को सरकारी आवास आवण्टित होते ही उसे मिलने वाला आवास भत्ता बन्द कर दिया जाता है। सरकारी आवास में रहने के लिए उस कर्मचारी को कुछ हाउस रेंट रिकवरी भी देना होता है। पिछले 2 दशक में मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारियों का हाउस रेंट रिकवरी 2 मर्तबा बढ़ चुका है, अब पीडब्ल्यूडी विभाग ने सरकार को हाउस रेंट रिकवरी बढ़ाने के लिए प्रस्ताव भेजा है जिससे सरकार की आमदनी में वृद्धि होगी। विडम्बना इस बात की है कि मध्यप्रदेश में एक लिपिक स्तर (सहायक ग्रेड-3) के कर्मचारी को तहसील स्तर पर सिर्फ 227/- रूपये मासिक आवास भत्ता मिलता है। यदि सरकारी आवास आवण्टित हो जाए तो लिपिक कर्मचारी बहुत खुश होता है क्योंकि बाज़ार मूल्य पर 227/- रू. में आजकल कोई 1 दिन के लिए भी आवास नहीं देता। आवास भत्ता को दरकिनार करते हुए रिकवरी दर को मध्यप्रदेश सरकार बढ़ाने वाली है जिससे सीधा कर्मचारियों के वेतन पर बुरा असर पड़ने वाला है।
2. लिपिक वेतन विसंगति को दरकिनार, अन्य संवर्गों का फिर बढ़ेगा वेतनमान - ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो मध्यप्रदेश के लिपिक संवर्ग को खून के ऑंसू रोने पड़े हैं। मध्यप्रदेश में लिपिकों की वर्षों पुरानी वेतन विंसगति को माननीय उच्च न्यायालय के आदेशानुसार भी दूर नहीं किया गया, वहीं दूसरी तरफ अन्य संवर्गों को आये दिन आर्थिक ईनाम दिया जाता रहा है। हाल ही में मध्यप्रदेश आईटीआई ट्रेनिंग अधिकारियों का ग्रेड पे 3200/- से 4200/- होने के प्रस्ताव पर मध्यप्रदेश सरकार ने संज्ञान लिया है। आईटीआई ट्रेनिंग अधिकारियों की भर्ती योग्यता मध्यप्रदेश के लिपिक भर्ती योग्यता से कम है, एवं कार्य पद्धति एवं कार्यकुशलता आदि परिप्रेक्ष्यि में लिपिक संवर्ग भारी पड़ता है, परन्तु लिपिकों से अधिक एवं गुणवत्तापर्ण काम लेने के बाद भी दैनिक वेतन भोगी के स्तर से भी बदतर जीवन का एहसास मध्यप्रदेश के लिपिक संवर्ग के कर्मचारियों को करना पड़ रहा है। मध्यप्रदेश के लिपिक संवर्ग का वेतनमान शायद कभी दूर न हो क्योंकि इसी के साथ मध्यप्रदेश के लिपिक पद पर आउटसोर्स से भर्ती की प्रथा तीव्रगति पर है।
3. विभागों में लिपिकों की कमी के कारण अन्य संवर्ग कर रहे लिपिकों का काम - मध्यप्रदेश के विभागों में लिपिकीय कार्य बढ़ा है, तकनीकि एवं कम्प्यूटर की मदद से आज का एक लिपिक प्रथा के परे 5 लिपिकों का कार्य अकेले कर रहा है। योग्यता एवं कार्यकुशलता बढ़ने के बाद भी लिपिक कर्मचारियों को सापेक्ष गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया गया है। लिपिकों को वापस उभर पाने में बहुत मशक्कत करना पड़ रहा है। एक तरफ तो लिपिक संवर्ग अपने खोये हुए सम्मान पाने की मॉंग कर रहा है, दूसरी तरफ लिपिकीय नियमित पद की समाप्ति और ठेका प्रथा/निजीकरण का हावी होना लिपिकीय अमले के सामने अंधेरा कायम किये हुए है। लिपिक संवर्ग ठेका प्रथा का सम्मान करता है क्योंकि नियमित रूप से उच्च योग्यता एवं कार्यकुशलता को अंजाम देने वाले लिपिकों की वेतन विसंगति एवं इस वजह से सम्मान से आएदिन हो रहे खिलवाड़ से लिपिकीय अमला हताश एवं परेशान है।
लिपिकों का एक बड़ा तबका लिपिक वेतन विसंगति एवं हो रहे इस अन्याय से अवसादग्रस्तता की ओर जा चुका है। एक तरफ लिपिकों को इन वजहों से जिन्दगी के प्रति लगाव खत्म हो गया है तो दूसरी तरफ परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए शोषण व अन्याय को गले लगाकर लिपिकों द्वारा लगनपूर्ण कार्य किया जा रहा है।
वीडियो - मध्यप्रदेश लिपिक वर्गीय कर्मचारियों पर गिरी गाज़ - समय के साथ अस्तित्व और सम्मान की लड़ाई
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