दोस्तों, मेरा नाम अभिषेक है। मैं मध्यप्रदेश सरकार में सरकारी कर्मचारी हूँ। देशभर में पुरानी पेंशन योजना बहाली के फायदों और नुकसान की बात चल रही है। एक ओर जहॉं सरकारी कर्मचारियों और उनके कुटुम्ब का तबका है, वह पुरानी पेंशन बहाली का समर्थन कर रहा है, तो दूसरी तरफ एक बड़ा तबका ऐसा है जो पुरानी पेंशन बहाली के खिलाफ़ है। पुरानी पेंशन योजना एक चुनावी मुद्दा बन गया है, इसका प्रभाव हमने विभिन्न राजनीतिक चुनावों में देखा एवं आगे बहुत कुछ देखना बॉंकी है। इस लेख में मैं कोई भी चुनावी बात नहीं करूँगा जिससे किसी पार्टी को मेरा समर्थन मिलता हो या किसी का मैं विरोध करता हूँ। इस लेख में आप यह समझ पाऍंगे कि पुरानी पेंशन योजना देश के भविष्य को एक नई दिशा देने वाली है एवं इसके क्या-क्या परिणाम हो सकते हैं, आप यह भी देखेंगे।
पुरानी पेंशन की ज़रूरत क्यों? |
पुरानी पेंशन योजना के बारे में मैं पूर्व में कई सारे लेख लिख चुका हूँ, इसलिए मैं इस योजना के बारे में अधिक नहीं कहना चाहूँगा बल्कि आपसे अपेक्षा करूँगा कि पूर्व के लेख जो पुरानी पेंशन योजना से सम्बंधित हैं, आप उन्हें पढ़ लीजिए -
और पढ़ें - नई पेंशन योजना के मार्स प्लान से भ्रमित न हों कर्मचारी : पुरानी पेंशन बहाली संघर्ष रहे ज़ारी
दोस्तों, आज मैं एक ऑनलाईन लेख पढ़ रहा था जिसमें पुरानी पेंशन योजना बहाली को अर्थनीति और राजनीति दोनों हिसाब से गलत बताया गया है। ऊपर दिये गये लेखों को पढ़ने के बाद आप आसानी से समझ पाऍंगे कि किस प्रकार से एनपीएस (नई पेंशन योजना) एक फिक्स्ड डिपॉजिट से भी ख़राब योजना है जिसमें मार्केट की गतिविधियों का सीधा असर आप पर पड़ता है। जब आपको शेयर मार्केट की समझ नहीं होती है, आपको आपके रूपये को कहॉं लगाना है और कैसे लगाना है इस सब बात की अच्छी समझ नहीं होती है, तो आपका रूपया जानबूझकर डुबाया जाए या किसी कारणवश गायब हो जाए, इस बात पर भी आपका सीधा नियंत्रण नहीं होता है।
आप आजकल जितने भी लेख पढ़ेंगे ज्यादातर में पुरानी पेंशन योजना के विरोध और इसके नुकसान की ही बात आपके सामने रखी जाएगी, दूसरी तरफ जिन राज्यों ने पुरानी पेंशन योजना बहाल किया है उनके सत्तारूढ़ पार्टियों पर यह इल्ज़ाम लगाना भी एक हद तक सही है कि राजनीतिक परिप्रेक्ष्य की वजह से वह ऐसा कर रहे हैं। पुरानी पेंशन योजना बहाली हो जाने से देश/प्रदेश के बजट का एक बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के पेंशन पर जाता है। तो बात यहॉं आकर अटक जाती है कि क्या पुरानी पेंशन योजना को कर्मचारियों के अधिकार के रूप में देखा जाए अथवा इसे एक कल्याणकारी नीति के रूप में स्वीकार कर लिया जाए। यह बात भी सही है कि पुरानी पेंशन योजना बहाल हो जाने से सरकार को अन्य आय की जरूरत पड़ने वाली है जिससे कि वस्तुओं पर बढ़ा हुआ टैक्स आपको देखने को मिल सकता है।
अब मुझे हरियाणा के माननीय मुख्यमंत्री (हाल के) जी का बयान ध्यान में आ रहा है कि उन्होंने कहा था कि हम सरकारी ख़जाना सरकारी कर्मचारियों पर नहीं लुटा सकते, हमारे प्रदेश में अन्य लोग भी हैं जिनको सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याणकारी नीतियों के तहत हमें लाना होता है। देखिए, एक सरकारी कर्मचारी होते हुए मैं सरकार की किसी भी नीति का विरोध नहीं कर रहा, परन्तु एक तबका सरकारी कर्मचारियों का ऐसा भी है जो हमेशा सरकार की किसी भी कल्याणकारी योजना से वंचित रहता है। मेरे लेख में मुख्यतया मैं ऐसे ही सरकारी कर्मचारियों के हक़ की बात करता हूँ, क्योंकि सरकारी विभागों में भी कुछ वर्गों का वेतनमान बहुत अधिक है फलत: उनपर होने वाले पेंशन का भार भी सरकार पर अधिक होता है, जबकि कुछ वर्ग ऐसा है जिसका वेतनमान बहुत कम है ( मध्यप्रदेश का लिपिक संवर्ग ऐसा कर्मचारियों का वर्ग है जिसकी योग्यता समय के साथ बढ़ी है एवं सरकारी विभागों में उनपर कार्यबोझ भी बढ़ा है परन्तु इन लिपिकों को दासताभरी जिन्दगी जीने को मज़बूर किया जा रहा है, पढ़ें - लिपिक वेतन विसंगति) ऐसे में कम वेतनमान वाले संवर्गों को भी कल्याणकारी योजना दिया जाना आवश्यक हो जाता है।
कुछ माह पहले देश में रेवड़ी और कल्याणकारी योजनाओं के अंतर के बारे में बहुत बहस हो रही थी। राजनीतिक पार्टियॉं भी इस मुद्दे को खूब उछाल रही थीं कि चुनावी माहौल में फ्री की रेवड़ी मिलना बन्द हो। फ्री की रेवड़ी का अर्थ फ्री की वस्तुऍं जिनका सम्बंध वोट बैंक से होता है, और इस मामले में भारत की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियॉं अव्वल रही हैं। अब वर्तमान में हिमाचल और गुजरात में विधानसभा का चुनाव है, हिमाचल में विधानसभा का चुनाव सम्पन्न हो चुका है और आपने देखा कि किस प्रकार राजनीतिक पार्टियॉं बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त की बिजली, कर्ज माफ आदि को कैसे चुनावी मेनिफैस्टो बनाए हैं। जब इन राजनीतिक लोगों से इन योजनाओं अथवा रेवड़ी के बारे में बात की जाती है तो वो इसे कल्याणकारी योजना नाम कहकर आम लोगों को लुभाने के प्रयास में लग जाते हैं। तो मुद्दा यह हो जाता है कि हर चुनावी माहौल में एवं राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में आमजन को दिया जाने वाला लाभ यदि कल्याणकारी योजना है तो एक कर्मचारी जो ताउम्र लगभग ऐसी सभी कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रहता है, उसे मिलने वाली पुरानी पेंशन रेवड़ी अथवा रूपये की बर्बादी कैसे हो सकती है? इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पुरानी पेंशन योजना बहाल हो जाने से देश पर आर्थिक बोझ नहीं आएगा, परन्तु पुरानी पेंशन योजना को यदि कल्याणकारी योजना के तौर पर देखा जाए तो शायद इसकी बहाली में कोई दिक्कत नहीं आए।
पुरानी पेंशन योजना बहाल हो जाने से सरकार को सबसे बड़ा नुकसान अब होगा, क्योंकि सरकार ने कुछ संवर्गों का वेतनमान इस कदर बड़ा दिया है कि भविष्य में उसके पेंशन की रकम यदि देखी जाए तो देश उस बोझ को शायद ही सहन कर पाएगा। एक तरफ सरकारी कर्मचारियों की बड़ी तादात पुरानी पेंशन योजना बहाली करने की बात करती है तो दूसरी तरफ निजीकरण का विरोध। जिन सरकारों ने पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा की है, दूसरी तरफ निजीकरण को बढ़ावा भी दिया है। यह बात सरकार को भी भली-भॉंति पता है कि पुरानी पेंशन योजना तभी लागू किया जा सकता है यदि सरकारी कर्मचारियों (पेंशनरों) की संख्या भविष्य में कम हो। यही वहज है कि भारत की सेना में पेंशन के बोझ को कम करने के लिए अग्निवीर भर्ती योजना लाई गई। वन रैंक वन पेंशन जिस दिन लागू हुआ उसी दिन इस बात का एहसास हो गया था कि भारत पेंशन का अतिरिक्त भार नहीं सहन कर सकता।
मैंने पुरानी पेंशन योजना से सम्बंधित गतिविधियों को भली-भॉंति समझा है और इस बात से मैं सीधे तौर पर इनकार नहीं कर सकता कि पुरानी पेंशन योजना बहाली अर्थनीति और राजनीति दोनों हिसाब से सही नहीं है, परन्तु यदि पुरानी पेंशन योजना बहाली को एक कल्याणकारी योजना के तौर पर ही देखा जाए तो शायद हमारे मन में इस बात का भ्रम नहीं रहेगा कि देश की अर्थनीति हमें इस बात की इज़ाजत न दे की पुरानी पेंशन बहाल किया जाए। चलिए अब मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ कि किस प्रकार राजनीतिक पार्टियॉं कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर इतना अधिक खर्च कर देती हैं जो एक सरकारी कर्मचारी को ताउम्र सेवा करने के बाद भी नहीं मिल पाता है।
उदाहरण के लिए हम मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले आवास भत्ता, वहीं दूसरी तरफ आमजन को प्रधानमंत्री आवास योजना से मिले रूपये के ऑंकड़ो की बात करेंगे। मध्यप्रदेश के कर्मचारी में हम एक कस्बे में पदस्थ लिपिक संवर्ग की बात करेंगे क्योंकि यह कर्मचारी का एक सम्मानजनक एवं आम पद है। म.प्र. का लिपिक संवर्ग शुरूआती आवास भत्ता आज सन् 2022 के हिसाब से 227/- रूपये प्रतिमाह पाता है। यदि वह कर्मचारी 25 वर्ष सरकारी सेवा में रहे एवं आवास भत्ता बढ़ता जाए तो औसतन यदि यह आवास भत्ता 700/- रू. अर्थात् लगभग 4 गुना बढ़ता है तो पूरी सेवाकाल के दौरान उसे लगभग 2 लाख 10 हज़ार आवास भत्ता मिलता है। वहीं सरकार जो आवास के नाम पर आमजन (सरकारी सेवकों के अलावा) को कल्याणकारी योजना बताते हुए एक बार में ही रूपये दे रही है वह है 2 लाख 50 हज़ार। यह लगभग 40 हज़ार अधिक रूपये है जो एक म.प्र. लिपिक कर्मचारी को ताउम्र सरकार की सेवा में घर के बाहर रहने के बाद एवं कई दुखों-परेशानियों को सहने के बाद मिलता है। चूँकि आमजन को बिना कुछ किये फ्री में 2 लाख 50 हज़ार मिला, शौचालय के लिए रूपया, किसान सम्मान निधि हर म.प्र. व केन्द्र सरकार का मिलाकर 10 हज़ार प्रतिवर्ष, बिजली बिल में छूट, कर्ज माफ, आयुष्मान आदि कितनी सारी योजनाऍं हैं जो देश के सरकारी कर्मचारियों को छोड़कर अन्य लोगों को फ्री में बिना कुछ किये दे दिया जाता है और इन्हीं योजनाओं का नाम कल्याणकारी योजना होता है।
अब एक कर्मचारी को उपरोक्त किसी योजना का कोई लाभ नहीं मिलता है। आवास भत्ता के नाम पर उसे एक आमजन को मिलने वाली फ्री की कल्याणकारी योजना से भी कम अर्थ मिलता है, तो सरकारी कर्मचारियों के मन में यह प्रश्न उठना वाजिब होता है कि आखिर पुरानी पेंशन योजना बहाली से देश की आर्थिक बर्बादी होगी तो क्या कल्याणकारी योजनाओं और फ्री की राजनीति के नाम पर चल रहे योजनाओं को देश के रूपये की बर्बादी नहीं कहा जाएगा? सरकारी विभागों में तन-मन से कार्यरत कर्मचारियों के सामने अल्पवेतन तो समस्या है जो बढ़ रही महंगाई से लड़ने में पर्याप्त नहीं है, तो क्या उन्हें बुढ़ापे पर एक सम्मानजनक वेतन पाने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए? उपरोक्त परिस्थितियों को समझते हुए पुरानी पेंशन योजना बहाल किया जाना उचित होगा, परन्तु वेतन में अनियमितता को भी दूर करने के बारे में सरकार को सोचना चाहिए। अत्यधिक वेतन (मूल वेतन) न देकर सरकार को अन्य भत्तों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि रिटायरमेंट के बाद बड़े पद वालों पर सरकार के ख़जाने पर अधिक बोझ न हो। दूसरी तरफ रिटायरमेंट की उम्र लगभग 50 वर्ष कर देना चाहिए जिससे की कर्मचारियों के अंतिम वेतन का मान कम रहे एवं उसके आधे पर पेंशन मिलने पर सरकार पर आर्थिक बोझ कम होने के साथ-साथ ऊर्जावान कर्मचारियों की संख्या बरकरार रहे, जिससे सरकार बेराजगारी पर भी नियंत्रण कर पाएगी एवं ऐसे कर्मचारियों को जिन्दगी में कुछ बेहतर कर पाने के लिए एक मंच भी तैयार हो चुका होगा।
No comments:
Post a Comment