eDiplomaMCU: म.प्र. लिपिकों की वेतन विसंगति पर सब ख़ामोश क्‍यों?

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Friday, February 17, 2023

म.प्र. लिपिकों की वेतन विसंगति पर सब ख़ामोश क्‍यों?

दोस्‍तों, मेरा नाम अभिषेक है। मध्‍यप्रदेश के लिपिकों की वेतन विसंगति मुद्दे के बारे में मैंने 2 साल पहले से आवाज़ उठाना शुरू कर दिया था। मेरा अथक प्रयास रहा है मध्‍यप्रदेश के लिपिक वर्गीय कर्मचारियों को उनका हक़ मिले। परन्‍तु मेरा अकेले का प्रयास अभी तक निरर्थक रहा है। हमने अपने लिपिकीय नेतृत्‍व को आपस में बटे देखा, तो दूसरी तरफ कुछ ऐसे लिपिक नेतृत्‍व को जिन्‍होंने दिन-रात एक करके लिपिक हित के लिए मेहनत किया और यही वजह है कि लिपिक वेतन विसंगति चर्चा का विषय बना रहा है। एक तरफ आपने देखा कि किस प्रकार चिकित्‍सा क्षेत्र के कर्मचारियों की मॉंगों को चन्‍द दिनों में पूरा कर लिया गया तो दूसरी तरफ उनको मीडिया कवरेज भी अच्‍छी मिली। जिन वर्गों की मॉंगें दोबारा उठ रही हैं ये वही वर्ग हैं जिनका वेतनमान कई बार बढ़ाया गया है, न सिर्फ वेतन बढ़ाया गया अपितु पदनाम भी बदला गया। मध्‍यप्रदेश में लिपिक संवर्ग आज मानसिक तनाव से जूझ रहा है। लिपिकों ने आये दिन सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेला है। 

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म.प्र. लिपिक के साथ अन्‍याय क्‍यों?

साथियों, मैं लिपिक वेतन विसंगति और इसके दर्द के बारे में आपसे बात नहीं करने वाला क्‍योंकि पूर्व में मैंने 20 से अधिक लेख एवं 100 से अधिक यूट्यूब वीडियो लिपिक वेतन विसंगति के सम्‍बंध में ही बनाया है। मुझे यह देखकर अच्‍छा नहीं लगा कि जिन विभागों में कई संवर्गों की मॉंगें आये दिन पूरी कर दी जाती हैं वहीं लिपिक संवर्ग को अछूता समझकर उसके साथ भेदभाव की नीति के तहत उसे अलग रखा जाता है। लिपिकों की मॉंगें कभी पूरी नहीं की गयी। 

तो चलिए बात करते हैं फरवरी 2023 में हम कहॉं तक पहुँचे हैं। कुछ हमारे नये लिपिक साथी जिनको मात्र साल-दो-साल ही सेवा में हुआ है उनको भी लिपिक वेतन विसंगति के दर्द का अब एहसास हो चुका है। परिणामस्‍वरूप अपने हक़ की मॉंग के लिए लिपिकों के दिल में आग जल चुकी है और लिपिक शांत नहीं बैठने वाला है। लिपिक संवर्ग को अन्‍य सभी संवर्गों ने अपने फायदे के लिए इस्‍तेमाल किया है और साथ ही साथ लिपिकों को उनका सम्‍मानजनक हक़ न मिल पाए इस बात को भी सुनिश्चित किया गया है। कुछ हमारे लिपिक संवर्ग के लिए साथियों ने इस चाल को नहीं समझा और अबतक देरी की तो कुछ अन्‍य के बहकावे में आकर संयुक्‍त मोर्चा से न्‍याय की उम्‍मीद लगाये बैठे रहे। जिन संवर्ग का वेतन कुछ वर्ष पूर्व हमसे कम था (जैसे पटवारी) आज उनका वेतनमान फिर बढ़ने वाला है। न जाने लिपिक स्‍वयं को भृत्‍य के समकक्ष क्‍यों देखने में खुशी महसूस करता है। 

हमने अबतक देखा कि लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने के लिए माननीय न्‍यायालय ने भी लिपिकों के पक्ष में आदेश दिया था, दूसरी तरफ सरकार ने भी लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने के लिए कई बार कमेटियों का सहारा लिया परन्‍तु ऐन वक्‍त पर कमेटियों का अर्थ सिर्फ नकाब की तरह पाया गया जिससे लिपिकों के विरोध की बू आ रही होती है। लिपिक पर हुये शोषण की इन्‍तेहा इस कदर है कि सभी कमेटियों ने, हाल की बात करें तो रमेशचन्‍द्र शर्मा कमेटी ने भी लिपिकों की वेतन विसंगति दूर कराने की बात कही और सम्‍मानजनक परिस्थिति पाने पर ज़ोर दिया, परन्‍तु हमेशा की तरह अब की बार भी लिपिकों के साथ धोखा हुआ। 

अरे नहीं, बात अभी और बॉंकी है। विधानसभा में लिपिक वेतन विसंगति के मुद्दे की चर्चा नहीं की जाती है। कभी कभार यदि किसी ने चर्चा भी की तो कहा जाता है कि लिपिक वेतन विसंगति दूर होगी, यह चिन्‍तनीय विषय है परन्‍तु कब तक दूर होगी कहा नहीं जा सकता। यहॉं लिपिक कम वेतन पर अधिक काम करते हुए बन्‍धुआ मज़दूर जैसी जिन्‍दगी का एहसास करते हुए बूढ़ा हो जाता है, और मर जाता है परन्‍तु लिपिक वेतन विसंगति दूर होने का सपना नहीं देख पाता। इसी प्रकार मार्च 2023 में लिपिक वेतन विसंगति का मुद्दा फिर से म.प्र. विधानसभा में उठाया जाएगा और देखने वाली बात रहेगी कि क्‍या सरकार लिपिकों की वेतन विसंगति इसी साल विधानसभा चुनाव से पूर्व दूर कर देती है अथवा नहीं। मुझे जहॉं तक लग रहा है तो लिपिकों की वेतन विसंगति दूर करने के प्रश्‍न पर (समयसीमा बताया जाना सम्‍भव नहीं) ही उत्‍तर आयेगा। 

हमारा लिपिक नेतृत्‍व जब लिपिक वेतन विसंगति पर ज़ोर न देकर महंगाई भत्‍ता, आवास भत्‍ता, पुरानी पेंशन, पटवारियों को ग्रेड पे उन्‍नयन आदि विषयों के लिए सड़क पर हमें ले जाने की बात करता है तो यह बहुत दु:खद एहसास होता है। मध्‍यप्रदेश के लिपिकों को इस बात का एहसास होना अत्‍यंत आवश्‍यक है कि लिपिकों की वेतन विसंगति दूर होने का आदेश यदि इसी साल 2023 में जून माह तक नहीं हुआ तो कभी भी लिपिकों की वेतन विसंगति दूर न होगी, और उच्‍च योग्‍यता पर भर्ती हुए लिपिकों को चपरासी के समान जिन्‍दगी का निर्वाह करना होगा। विडम्‍बना इस बात की है कि डेटा एन्‍ट्री ऑपरेटर का वेतनमान 2400/- ग्रेड पे है तो वहीं एक लिपिक (सहायक ग्रेड-3) डेटा एन्‍ट्री का काम करने के बाद भी और वही योग्‍यता रखने के बाद भी मात्र 1900/- ग्रेड पे वेतन पा रहा है। इस अन्‍याय और शोषण का संज्ञान सभी कमेटियों और सरकारों को रहा है, परन्‍तु अमानवीय तरीके से जिस प्रकार लिपिकों का शोषण होता आया है यह समझ से परे है कि भगवान क्‍या लिपिकों को यही दिन दिखाने के लिए लिपिक बनाया है। लिपिक संघ अंतिम रूपरेखा बनाए जाने की बात कर रहा है, परन्‍तु यह अंतिम दिन क्‍या विधानसभा चुनाव के बाद आयेगा, यह पता नहीं। 

इसी उम्‍मीद के साथ मैं अपनी बात समाप्‍त करना चाहूँगा कि हमारा विरोध किसी से नहीं है। हमें न तो पुरानी पेंशन चाहिए और न ही कोई भत्‍ते, हमें बस सम्‍मानजनक वेतन चाहिए जो हमारा हक़ है। हमने कर्तव्‍य का पालन करना सीखा है, और हमारी वजह से किसी आमजन को तकलीफ न हो इसलिए हम कोई हड़ताल या आन्‍दोलन नहीं करते। परन्‍तु हमारे प्रति अमानवीय रवैया और शोषण के नीति की इंतहा हो गई है। अब यह ना-काबिल-ए-बर्दाश्‍त है। मध्‍यप्रदेश लिपिक न्‍याय की गुहार लगा रहे। 

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