eDiplomaMCU: म.प्र. लिपिकों के पतन का कारण । लिपिक वेतन विसंगति

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Friday, June 2, 2023

म.प्र. लिपिकों के पतन का कारण । लिपिक वेतन विसंगति

आज मेरे एक लिपिक साथी ने संदेश भेजा और बताया देखो यार लिपिक तो तरह-तरह के काम करते हैं लेकिन 2008 की एक आधिकारिक रिपोर्ट में मध्‍यप्रदेश के लिपिक कर्मचारियों को सिर्फ फाईलों को प्रस्‍तुत करने का कार्य होने तक सीमित बताया। हम दोनों में इस बात को लेकर चर्चा होने लगी कि हो सकता है उक्‍त वक्‍त लिपिकों का सिर्फ वही काम होता रहा हो जिस वजह से उस समय लिपिक साथियों ने उस बात का विरोध नहीं किया। परन्‍तु इस बात को भी हमने ध्‍यान रखा कि वेतन विसंगति दूर कराने की मॉंग तो 90 के दशक से मध्‍यप्रदेश के लिपिक साथी करते आ रहे हैं। हमने जितनी भी चर्चाऍं की तो पाया कि कहीं न कहीं लिपिकों के साथ साजिश तो हुई है।

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म.प्र. लिपिकों के पतन का कारण । लिपिक वेतन विसंगति

यह लेख किसी पूर्वाग्रह के आधार पर नहीं लिखा जा रहा है, बल्कि उस रूपरेखा को सम्मिलित करते हुए जो मध्‍यप्रदेश के लिपिक साथियों ने पिछले 40 सालों में देखा है। वेतन बढ़ाये जाने की मॉंग करना व्‍यक्तिगत स्‍वार्थ दिख सकता है परन्‍तु संवैधानिक रूप से भी यही प्रावधान होता है कि कोई भर्ती यदि समान योग्‍यता पर हो और समान कार्य प्रकृति का हो तो उनका वेतन समान होना चाहिए। यही समस्‍या आज मध्‍यप्रदेश के लिपिक सहायक ग्रेड-3 और डेटा एंट्री ऑपरेटर की है। सहायक ग्रेड-3 उस दौर से गुजर चुका है जिसे पदनाम परिवर्तन से लेकर कम ग्रेड पे पाने वालों को अपने से आगे निकलते देखना पड़ा है।

हमने ऐसी सभी कमेटियों के टिप्‍पणियों को देखा और विश्‍लेषण किया तो पाया कि जानबूझकर लिपिकों के कार्य को कमतर दिखाने की कोशिश की जाती रही है जिसके विरोध में लिपिक संघ कई बार माननीय न्‍यायालय के समक्ष गया एवं इस समस्‍या को कई बार सरकार के समक्ष ज्ञापन के माध्‍यम से रखा लेकिन हमेशा की तरह आश्‍वासन अथवा पत्राचार के तले इस बात को नज़रअन्‍दाज किया गया। हमने पिछले कई वर्षों के विधानसभा में लिपिक वेतन विसंगति के सम्‍बंध पूछे गये प्रश्‍न का अवलोकन किया तो यही पाया कि लिपिकों की वेतन विसंगति है जो मॉग जायज है परन्‍तु इसकी समयसीमा को हमेशा नज़रअन्‍दाज किया गया। लिपिक संवर्ग ने हर सम्‍भव रास्‍ता अख्तियार किया परन्‍तु हर बार कमेटियों और बातचीत के बीच लिपिकों की मॉंग को दबा दिया गया। जो संवर्ग लिपिकों से बहुत कम वेतन पाते थे अथवा लिपिकों के समान वेतन पाते थे उनका वेतनमान बढ़ा दिया गया साथ ही साथ उन्‍हें सम्‍मानजनक पदनाम भी दिया गया। इससे लिपिकों में कुण्‍ठा एवं आत्‍मग्‍लानि की भावना जन्‍म ले चुकी है।

लिपिकों में स्‍वयं के प्रति लापरवाह होना भी इस समस्‍या की एक वजह है। लिपिक शीर्ष नेतृत्‍व को लिपिक वेतन विसंगति अर्थात् ग्रेड पे बढ़ाये जाने के प्रति संवेदनशील होना चाहिए था लेकिन लिपिक नेतृत्‍व ने मैदानी लिपिकों की भावना के विरूद्ध सार्थक प्रयास नहीं किया। लिपिक वेतन विसंगति के सम्‍बंध में बनी कमेटियों की अनुसंशाओं को भी कभी लागू नहीं कराया गया, इसकी मुख्‍य वजह भी लिपिक संघ को स्‍वयं के हित के प्रति असंवेदनशील होना रहा है। आज 2023 में भी कई संवर्ग ऐसे हैं जिनकी मॉंगें आवर्तीरूप से पुन: पूरी की जा रही हैं, परन्‍तु लिपिकों को आश्‍वासन तक नहीं मिला। सिर्फ पत्राचार किया गया जिसका सार्थक परिणाम धुंधला नज़र आ रहा है। मैदानी लिपिक जिसकी जिन्‍दगी का आधार सिर्फ उसका वेतन है, विभिन्‍न प्रकार के काम निष्‍पादित करने के बावजूद भी असहाय है। लिपिकों ने अबतक भरसक प्रयास किया है और अब यदि लिपिकों की वेतन विसंगति दूर नहीं होती है तो यह लिपिक को उनके अधिकार से वंचित रखने की पराकाष्‍ठा हो जाएगी। जब कभी भी लिपिकों की बात आई है तो लिपिकों का सिर्फ एक कमज़ोर पक्ष रखा गया है, लिपिकों का बड़ा तबका जो इस शोषण का दंश झेलता आया है उसे छुपाया और दबाया गया है।

लिपिकों के सामने एक समस्‍या यह भी है कि लिपिक नेतृत्‍व अन्‍य संवर्गों के झांसे में आ जाता है। लिपिक स्‍वयं के मुद्दों को भूलकर अन्‍य संवर्ग अथवा कॉमन मुद्दों की बात करने लगता है अर्थात् लिपिक का आन्‍दोलन हाईजैक कर लिया जाता है। लिपिक संघ को प्राथमिकता का एहसास होना चाहिए कि सिर्फ लिपिक वेतन विसंगति दूर कराना ही लिपिकों की वर्षों पुरानी मॉंग रही है जो सर्वोपरि है, परन्‍तु ऐन वक्‍त पर लिपिकों को पथभ्रमित कर दिया जाता है। 2018 में मध्‍यप्रदेश के 50 से अधिक पदों का वेतनमान बढ़ाया गया था, उनमें से कई ऐसे पद थे जिनका पूर्व में कई बार वेतन बढ़ाया गया, अब 2023 में भी उनमें से कई पद ऐसे हैं जिनकी कई आर्थिक और अनार्थिक मॉंगों को पूरा किया जा रहा है। लिपिक संवर्ग के साथ हमेशा से होता अन्‍याय अब बर्दाश्‍त के बाहर है, लिपिक संवर्ग असहाय और बेसहारा महसूस कर रहा है। अब समय है कि सभी लिपिक साथी सिर्फ लिपिक वेतन विसंगति मुद्दे पर केन्द्रित रहें। 


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