मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के बारे में आये दिन कमेटियां बनती रहती हैं, समाचार वाले ख़बरें निकालते रहते हैं, परन्तु होता कुछ नहीं है। जब होना होता है तो न तो उसकी ख़बर चलती है और न ही कमेटियां बनती हैं और इसी लुका - छुपी में वेतन विसंगति और कर्मचारियों में आर्थिक भेदभाव जन्म ले लेता है। इस लेख में हम कुछ ऐसी ही बातों की चर्चा करेंगे जिसकी बात हम सबसे छुपाई जाती है या भ्रामक ख़बर के हम शिकार हो जाते हैं।
7वां वेतनमान सरकारी कर्मचारियों के लिए वर्ष 2016 से लागू हुआ है, परन्तु मध्यप्रदेश के कर्मचारियों को आवास भत्ता 6वां वेतनमान अनुसार मिल रहा है। कहने का मतलब कि 2024 चल रहा है, 1 साल बाद 8वां वेतनमान आना चाहिए, परन्तु मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों को 2006 के हिसाब से आवास भत्ता मिल रहा है। सीधा का मतलब है कि मकान का किराया 2006 में (आज से 18 साल पहले) जो था, क्या कोई भी मकान मालिक उस दर कीमत पर आज भी किराये पर घर देगा? बिल्कुल नहीं देगा। मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारी संघ ने आवास भत्ता को कोई मुद्दा समझा ही नहीं।
दूसरी तरफ पिछले वर्ष 2023 में छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों को 6वें वेतनमान से बढ़ाकर 7वें वेतनमान में आवास भत्ता मिलने लगा, साथ ही आवास भत्ता में मिलने वाली दर को भी बढ़ा दिया गया, और अब छत्तीसगढ़ के सरकारी कर्मचारी केन्द्र के समान आवास भत्ता की मांग कर रहे हैं, इसके लिए उन्होंने जुलाई 2024 में एवं अगस्त 2024 में छत्तीसगढ़ की सरकार को ज्ञापन देना भी शुरू कर दिया है। इसके साथ ही समान पद का मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में वेतनमान अलग-अलग हो गया है।
महंगाई भत्ता की बात करें तो मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों का 1 जनवरी 2024 से 4 प्रतिशत महंगाई भत्ता मानक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से कम है, जो केन्द्रीय कर्मचारियों को मिलने वाले महंगाई भत्ता से ज़ाहिर तौर पर 4 प्रतिशत कम है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जनवरी 2024 से जून 2024 का आंकड़ा अगस्त 2024 के पहले सप्ताह में लेबर ब्यूरो द्वारा ज़ारी कर दिया गया है, एआईसीपीआईएन के अनुसार सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 3 प्रतिशत और बढ़ने वाला है, अर्थात् 1 जुलाई 2024 से कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 53 प्रतिशत कर दिया जाएगा। परन्तु मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों को कई बार इस सम्बंध में सरकार को ज्ञापन सौंपने के बाद भी निराशा ही हाथ लगी है।
ख़बर अब ऐसी चल रही है कि महंगाई भत्ता 50 प्रतिशत से आगे न बढ़ाकर मध्यप्रदेश की सरकार कर्मचारियों के तात्कालिक मूल वेतन पर 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर महंगाई भत्ता 0 कर देगी और भविष्य में बढ़े हुए मूल वेतन पर महंगाई भत्ता मिलना प्रारम्भ होगा जिससे कर्मचारियों को अपेक्षया अधिक लाभ होगा, और यह तरीका 8वें वेतनमान का विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। मान लीजिए कि किसी का मूल वेतन अभी 40 हज़ार रूपया है तो उसका मूल वेतन अब 60 हज़ार कर दिया जाएगा, परन्तु जिसका मूल वेतन 20 हज़ार है उसका 30 हज़ार मूल वेतन हो जाएगा, इस सबसे कम वेतन पाने वाले कर्मचारियों को अपेक्षयाकृत नुकसान ही होगा, क्योंकि मूल वेतन के साथ अन्य कई सारे भत्ते जुड़े रहते हैं, इस सबसे कर्मचारियों के वेतन की विसंगति बढ़ती ही जाएगी।
कर्मचारियों / मुख्यतया लिपिक वर्गीय कर्मचारियों की वेतन विसंगति मध्यप्रदेश में पिछले 40 वर्षों से बनी है, लिपिक/क्लर्क/सहायक ग्रेड से कम वेतन पाने वाले पदों (यथा शिक्षक, पटवारी, ग्राम सेवक आदि) का वेतन आज लिपिकों से बहुत अधिक है। पिछले 40 वर्षों में जितने भी वेतन आयोग आये हैं, सभी में लिपिकों के साथ आर्थिक भेदभाव किया गया है। इसी वेतन विसंगति को दूर करने मध्यप्रदेश की सरकार ने 2020 में सिंघल आयोग का गठन किया था जिसकी रिपोर्ट 2024 माह जुलाई में मध्यप्रदेश की सरकार को मिली, परन्तु अनुशंसाओं को लागू न कर कमेटी के कार्यकाल को आगे बढ़ाकर रिपोर्ट निष्क्रिय कर दिया गया है। आश्चर्य की बात तो यह रही है कि सिंघल आयोग की सिफारिशों और पैमाने का आधार किसी भी कर्मचारी संघ को न था।
निष्कर्ष के तौर पर कहा जाए तो मध्यप्रदेश के कर्मचारियों के मूल वेतन में 50 प्रतिशत के डीए को मर्ज करने की बात भ्रामक है, और यदि ऐसा होता है तो छोटे स्तर के कर्मचारियों को आर्थिक नुकसान होगा। डीए को मूल वेतन में मर्जर की बात को 8वां वेतन आयोग के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है जो कर्मचारियों को बढ़ती महंगाई से निज़ात दिलाने में मददगार हो सकता है।
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