हाल ही में वाराणसी में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी मिले और बेरोजगारों को अच्छे वेतन के साथ नौकरी दिलाने का बयान दिया। वैसे 1 साल बाद 2023 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं तो ऐसे बयान आना लाज़मी है। परन्तु मैं भी एक विद्यार्थी रहा हूँ और बेरोजगारी के इस दौर को मैंने करीबी से देखा है। तो इस लेख में मैं संभावित रोजगार अवसरों एवं मध्यप्रदेश सरकार के कदम के बारे में चर्चा करूंगा।
बेरोजगारी के बारे में कोई निष्कर्ष बिन्दु पर पहुंचने से पहले हमें यह ज्ञात होना आवश्यक है कि बेरोजगारी और अण्डरएम्प्लायमेंट में क्या अन्तर है। और यह भी स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए कि रोजगार का मतलब सिर्फ सरकारी नौकरी नहीं होती, और ऐसा हमारे मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी ने भी साफ-साफ कह दिया था।
बेरोजगारी क्या है- एक परिस्थिति जब कोई इन्सान योग्यता होने के बाद भी नौकरी की तलाश करता है एवं नौकरी प्राप्त करने में असफल रहता है। इस हालात को बेरोजगारी कहा जाता है और उस इंसान को बेरोजगार जो नौकरी की तलाश में है।
अण्डरएम्प्लॉयमेंट क्या है- जब किसी इंसान को योग्यता एवं पर्याप्त समय होने के बाद भी कम वेतन में एवं कम कौशल प्रयोग के साथ काम करना पड़े, उस परिस्थिति को अण्डरएम्प्लॉयमेंट कहा जाता है। कई बार एक ही जॉब प्रोफाईल के बहुत सारे उम्मीदवारों की वजह से नियोक्ता के पास बहुत सारे ऑप्शन मिल जाते हैं, और अण्डरएम्प्लॉयमेंट जैसी परिस्थिति निर्मित हो जाती है।
अब आप ऊपर दी गयी परिभाषाओं के आधार पर ही बताइये कि सरकार किन्हें रोजगार देने की बात कह रही है? दोनों परिस्थितियों में जो रोजगार पाना चाहता है वह योग्य है। यहां पर योग्यता किसी शैक्षणिक योग्यता के पैमाने पर नहीं है, बल्कि उस कौशल की है जो उस कार्य हेतु आवश्यक है।
अनियोज्य बेरोजगारों की अधिकता- मध्यप्रदेश में स्कूल से लेकर कॉलेज तक अच्छे अंक लाने पर ध्यान दिया जाता है। ऐसी विषयों को रटाया जाता है जिसका दैनिक जीवन में या उत्पादकता से कोई संबंध नहीं होता है। मध्यप्रदेश में ऐसे विद्यार्थियों की तदात ज्यादा है जिनको उत्पादकता या कौशल का विशेष ज्ञान नहीं होता है, अच्छे अंक और मार्कशीट के साथ समाज में उन्हें इज्ज़त तो मिल जाती है, परन्तु किसी भी कम्पनी/उद्योग जगत में काम करने के लिए ये उपयुक्त नहीं होते हैं। आज इंजीनियरिंग कॉलेज हो या साईन्स कॉलेज हर जगह सिर्फ परीक्षा पास कर ग्रेजुएट होने की होड़ लगी है, न कि ज्ञान अर्जन को महत्व दिया जा रहा है।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि कुल छात्र-छात्राओं में 10 प्रतिशत हमेशा अच्छे कौशल वाले और उत्पादक प्रकृृति के होते हैं जो आगे चलकर किसी भी कम्पनी/उद्योग को आगे लाने में मदद करते हैं। असल में ऐसे बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे जिनका स्कूल/कॉलेज में परफॉरमेंस अच्छा नहीं रहा था और आज वही लोग बड़ी-बड़ी कम्पनियों को चला रहे हैं।
हमारा उद्देश्य किसी भी प्रकार किसी को कमतर आंकना नहीं है, अपितु इस बात की ओर आपका ध्यान आकर्षण कराना है कि आपका भला सिर्फ आप ही कर सकते हैं। क्योंकि असलियत में नौकरी एवं उद्योग आप ही चलाएंगे, न कि वह जो आपके सामने बयान रखे।
युवा स्वाभिमान योजना नाकामयाब रही थी- सन् 2019 में फरवरी महीने में मैं भी भोपाल के लाल परेड ग्राउण्ड में 2-4 हज़ार की नौकरी के लिए युवा स्वाभिमान रोजगार मेले में शामिल हुआ था। हज़ारों की तादात में लोग थे। इस योजना के बारे में अफ़वाह थी कि बेरोजगारों के लिए यह बेरोजगारी भत्ता था। असल में जो लोग इस योजना के अन्तर्गत काम पाये भी तो, अत्यंत कम और अण्डरएम्प्लॉयमेंट जैसी परिस्थिति में रोजगार पाए। वैसे इसका सकारात्मक नज़रिया यह था कि लोग असल जिन्दगी के काम एवं कौशल को सीख सकते थे, लेकिन ऐसा कौशल असल जिन्दगी में भी पाया जा सकता था, जो कि और अच्छा एवं अच्छे समय में प्राप्त किया जा सकता था। वर्तमान में मैं मध्यप्रदेश सरकार में नौकरी कर रहा हूँ (यद्यपि नौकरी मुझे 2018 में कॉलेज पास करने के 1 साल के अन्दर ही मिल गई थी, लेकिन ज्वाईनिंग जून 27, 2019 को हुई), तो मैं सरकार एवं इसके किसी योजना की बुराई नहीं कर सकता। मेरे परिचित की कुछ लड़कियां भी इस योजना में काम कर रही थीं, और उनका अनुभव था कि लड़कियां सुरक्षित एवं आत्मसम्मान महसूस नहीं कर रही थीं। निष्कर्ष यह है कि युवा स्वाभिमान योजना पूरी तरह से नाकामयाब रही और लाखों बेरोज़गारों को धोखा देकर झूठा प्रचार-प्रसार किया गया।
मध्यप्रदेश में उद्योग की कमी- मध्यप्रदेश में कम्पनी/उद्योग अभी विकास के रास्ते पर है। कई सारी कम्पनियां हैं जैसे सिंगरौली में, यहां रोजगार के अवसर भी अच्छे-खासे हैं। इसले अवाला यदि कोई स्वयं का कार्य करता है/अथवा बिजनेस करता है, उसको भी बेरोजगारी के दिन नहीं देखने पड़ते। सरकार कोई भी हो, शतप्रतिशत रोजगार नहीं दिया जा सकता। चुनाव से पूर्व कुछ परिस्थितियां बनती हैं, परन्तु परिणाम कर्मचारी शोषण पर जाकर रूक जाता है। दूसरी तरफ यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि सरकारी नौकरी की संख्या सीमित है, एवं विभाग में अत्यधिक कर्मचारियों को नहीं रखा जा सकता। विभागों में भर्ती पूर्व स्वीकृृत संख्या के आधार पर ही की जाती है, इसलिए सरकारी नौकरी अधिक लोगों को दे पाना सरकार के बस की बात नहीं है। भविष्य में सरकारी नौकरियां समाप्त भी हो सकती हैं, और इसका पूर्वानुमान वर्तमान आउटसोर्स एवं कांट्रेक्ट जॉब की बहुतायत के आधार पर लगाया जा सकता है।
छात्र-छात्राओं को क्या करना चाहिए- सरकारी नौकरी की तैयारी में तभी तक लगिए जबतक आपको यक़ीन हो कि आप ऐसा कर पाएंगे। सरकारी नौकरी मिलने के बाद आपको नियमित एवं निश्चित वेतन मिलता है, जिससे आपकी कौशल एवं योग्यता से कोई लेना देना नहीं होता, एवं यही सरकारी विभागों की कुछ नाकामयाबियों के पीछे की वजह भी है। स्कूल/कॉलेज के आप यदि छात्र-छात्रा हैं अथवा इससे आगे रोजगार की चाहत रख रहे हैं, तो आपको जल्द से जल्द कोई स्किल सीख लेना चाहिए, जैसे कि कम्प्यूटर के कुछ सॉफ्टवेयर पर काम करना, हार्डवेयर आदि, मोबाईल रिपेयरिंग, इलेक्ट्रिक, मैकेनिक आदि से संबंधित कौशल, प्रोग्रामिंग आदि। आपको जितनी भी कौशल मिली है आप उसे दैनिक जीवन में लगाने का प्रयास करें।
वैसे अच्छी संस्थाओं/स्कूल जैसे डीपीएस/सेंंटमैरी/कांवेन्ट आदि के विद्यार्थी अच्छी सरकारी नौकरियां पाने में कामयाब रहते हैं, क्योंकि उनका लर्निंग एवं टीचिंग एनवार्नमेंट बहुत अच्छा होता है। ज्यादातर निचले तबके के विद्यार्थियों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ना पढ़ता है, और सरकारी स्कूलों की हालात दिन-ब-दिन बदतर ही होती जा रही है। यह एक रिसाइक्लिंग प्रोसेस की तरह है, जिसका अच्छा नतीज़ा एक सपने की तरह है।
इस प्रकार से आप किसी नौकरी के मुहताज़ नहीं रहेगे, बल्कि यदि कभी आप नौकरी की तलाश में लाईन में खड़े होंगे तो नियोक्ता आपका ही चुनाव करेगा, क्योंकि आपका कौशल उसके लिए उपयोगी है, न कि कागज के वह टूकड़े जो आजकल स्कूल/कॉलेज से खरीदे जाते हैं। आप स्कूल/कॉलेज में जो पढ़ते हैं, उसे दैनिक जीवन में भी उतारने का प्रयत्न करिए, ताकि आपका कोई और प्रयोग न कर पाए।
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