दोस्तों, मेरा नाम अभिषेक है। आज इस लेख में मैं आपसे बात करने वाला हूँ मध्यप्रदेश लिपिक वेतन विसंगति के बारे में। दोस्तों, अगर आप असिस्टेन्ट ग्रेड-3, लिपिक, क्लर्क, सहायक ग्रेड-1, सहायक ग्रेड-2, सहायक ग्रेड-3, या फिर आप सेक्शनल ऑफिसर हैं, कृपया यह लेख अन्त तक पढि़एगा। मैं इस वेबसाईट पर कई सारे लेख लिपिक वेतन विसंगति के मुद्दे पर लिखा हूँ और मैंने लिपिक के साथ होते हुए अन्याय का कठोर शब्दों में विरोध भी किया है। मुझे मध्यप्रदेश का लगभग सभी सरकारी कर्मचारी, खासकर लिपिक कर्मचारी मेरे लेख एवं यूट्यूब वीडियो के माध्यम से जानता है। मुझे बहुत सारे मैसेज आते हैं कि मैं लिपिक हित एवं मध्यप्रदेश सरकारी कर्मचारी के हित में लगातार सही आवाज़ उठा रहा हूँ।
दोस्तों, आज इस लेख में मैं बताने वाला हूँ शेट्टी पे कमीशन के बारे में, यह पे कमीशन न्यायालयीन कर्मचारियों/लिपिकों पर जल्द लागू हो सकता है, साथ ही मैं यह भी बात करने वाला हूँ कि जो मैं लगातार वीडियोज बना रहा हूँ और लेख लिख रहा हूँ, इसके पीछे की मुख्य वजह क्या है। चलिए सीधा मुद्दे पर आते हैं-
इस लिपिक के तौर पर मध्यप्रदेश सरकारी नौकरी में जून 2019 में आया, मुझे बहुत जल्द मध्यप्रदेश के बाबुओं/लिपिकों का दर्द समझ आने लगा। सन् 2019 में ही लिपिक वेतन विसंगति दूर होने वाली थी जब माननीय मुख्यमंत्री कमलनाथ जी की सरकार थी। श्री कमलनाथ जी ने लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने का वादा भी किया था, लेकिन लिपिकों को अन्तत: धोखा ही मिला। कुछ समय बाद ही सन् 2020 में कांग्रेस की सरकार गिर जाती है और भारतीय जनता पार्टी की सरकार पुन: सत्ता में आ जाती है।
कोरोना वायरस की वजह से केन्द्र सरकार के साथ ही साथ कई राज्य सरकारें इन्क्रिमेंट और महंगाई भत्ते पर रोक लगा देती हैं, बाद में जुलाई 2021 में पिछला महंगाई भत्ता के साथ-साथ इंक्रिमेंट के आदेश भी केन्द्र सरकार अपने सरकारी कर्मचारियों को दे देती है, साथ ही साथ कई राज्य सरकारें भी ऐसा ही करती हैं, तो मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारी भी आन्दोलन की राह पर आ जाते हैं, इन्क्रिमेंट के आदेश सरकार दे देती है, परन्तु एरियर एवं अन्य पर आदेश नहीं आता। लेकिन दूसरी तरफ कहीं पर भी लिपिक वेतन विसंगति की बात नहीं हो रही थी। कोई भी लिपिक के साथ होते अन्याय के बारे में बात नहीं कर रहा था। मैंने कई सारे लेख एवं वीडियोज में भी बताया है कि मध्यप्रदेश में सन् 1981 के बाद से जितने भी वेतन आयोग आये हैं, सभी में लिपिकों के साथ भेदभाव किया गया है। आज 2800 एवं 3200 जैसे ग्रेड पे पाने वाले पद, पहले लिपिक से कम वेतन पाया करते थे, लेकिन आज लिपिक की परिस्थिति योग्य, कर्मठ, ईमानदार, तकनीकि समझदार, उच्च शिक्षित होने के बाद भी एक 5वीं/8वीं पास चपरासी के समान है। लिपिक को कम वेतन की वजह से चपरासी के समकक्ष दर्शित करने की कोशिश की जाती है, जबकि लिपिक उच्च योग्यता का काम करता है।
लिपिक का वेतन स्थिर रखते हुए अन्य कई पदों का सन् 2016 से (आदेश 2018 में आया था) पुन: ग्रेड पे बढ़ा दिया गया था, जबकि उन पदों की लिपिक वेतन विसंगति की भांति कोई वेतन विसंगति नहीं थी। लिपिक से कम काम करने वाले या कम योग्य (जिस आधार पर शेट्टी पे कमीशन न्यायालयीन कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने की अनुशंसा करता है) पदों का भी ग्रेड पे लिपिकों से अधिक कर दिया गया।
सितम्बर 2021 में जब मध्यप्रदेश में महंगाई भत्ता, आवास भत्ता आदि मांगों के लिए सरकारी कर्मचारियों द्वारा आवाज़ उठाई जाने लगी, खासतौर पर मध्यप्रदेश अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा आन्दोलन को अग्रसर कर रहा है, तो मैंने देखा कि लिपिक वेतन विसंगति के बारे में कोई बात नहीं हो रही है, लिपिकों को दरकिनार किया जा रहा है। मैंने कुछ लिपिक नेताओं के साथ-साथ अन्य कर्मचारी नेताओं से बात करना चाहा लेकिन उन्होंने फोन काट दिया एवं मैसेज का जबाव भी नहीं दिया। तब मैंने नेता/मंत्री को फोन लगाना चाहा, कई नेताओं को फोन भी किया, उनका पीए या सहायक फोन रिसीव करता है, कई ने तो फोन नहीं उठाया, लेकिन कई ने बड़े चाव से मुद्दा पाना चाहा, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि लिपिक वेतन विसंगति की बात हो रही है, फोन काट दिया। मुझे तुरन्त समझ आ गया कि सन् 2016 से 2018 तक जितने भी नेता/मंत्री लिपिक वेतन विसंगति के सम्बंध में पत्र ज़ारी कर रहे थे, सभी अपना चुनावी उल्लू सीधा कर रहे थे। आज लिपिक का आन्दोलन कमज़ोर होने की वजह से कोई नेता/मंत्री लिपिकों की बात सुनने को तैयार न था। तब मैंने सोचा कि नेता/मंत्री तो मौकापरस्त निकले, लेकिन न्यूज वाले पत्रकार/मीडिया बहुत अच्छे लोग होते हैं, ये हमारा दर्द समझेंगे और हमारी आवाज़ को अपना मंच देंगे, लेकिन नेता/मंत्री की तरह ही लिपिक वेतन विसंगति पत्रकारों/मीडियो को कोई मसाला नहीं लगा इस बार और सभी ने अपना असली रंग दिखा दिया। कुछ ने तो फोन नहीं उठाया, कुछ ने तुरन्त फोन काट दिया और कुछ ने कहा कि खैरात नहीं चला रहे वो लोग, पैसा दो और ख़बरें छपवाओ। सन् 2018 में एकमुश्त 51 पदों का दिनांक 7 जून 2018 को दिनांक 01 जनवरी 2016 से ग्रेड पे बढ़ा दिया गया और इसी दिनांक से अन्य कई पदों का अलग-अलग आदेश के तहत ग्रेड पे बढ़ा दिया गया। उस समय नेता/मंत्री/पत्रकार/मीडिया सब सरकारी कर्मचारियों/लिपिकों की बात कर रहे थे, क्योंकि तब लिपिक आन्दोलन की राह पर थे, और उनके लिए यह सब चुनावी/टीआरपी का मुद्दा था। लेकिन लिपिक वेतन विसंगति दूर न हुई, लिपिक जिससे कोल्हू के बैल की तरह काम लिया जाता है और अत्याचार शोषण किया जाता है उसकी वेतन विसंगति सरकार ने दूर न की, न सिर्फ तब की सरकार ने बल्कि सन् 1981 के बाद से जितनी भी सरकारें आईं, सभी ने लिपिकों के साथ समान भेदभाव की नीति अपनाये।
जब अन्य पदों का ग्रेड पे बढ़ा दिया गया और लिपिकों को धोखा मिला, तो लिपिक जुलाई 2018 से सड़क पर आन्दोलन की राह अपना लिए, विधानसभा चुनाव से पहले लिपिकों को झूठा आश्वासन देकर उनको अन्तत: धोखा दिया गया। सन् 2016 में लिपिक वेतन विसंगति दूर कराने के लिए रमेशचन्द्र शर्मा कमेटी भी बनी थी, लेकिन इस कमेटी की अनुशंसाओं को आज दिनांक तक भी लागू नहीं कराया गया। आज परिस्थिति और ख़राब होती जा रही है, आज लिपिक स्वयं के लिए आवाज़ नहीं उठा रहा है, जबकि अन्य कोई जिनको लिपिकों से अधिक वेतन मिलता है, इतिहास गवाह है ऐसे ज़मींदार लोग मज़लूम/असहाय/बेसहारा/मज़दूर लिपिकों की मदद को आगे नहीं आएंगे। आज लिपिक एक बन्धुआ मज़दूर/दैनिक वेतन भोगी की तरह है जिससे कोल्हू के बैल की तरह काम कराया जाता है और बदले में रोटी का एक टुकड़ा फेंक दिया जाता है, और इसी बन्धुआ मज़दूर को भरी महफिल में बेईज्ज़त भी किया जाता है। आज लिपिक के इस दर्द को कोई सुनने वाला नहीं है।
यदि आज यही बातें यदि हम रूपये देकर अख़बार में छपवायें या न्यूज चैनल पर चलवायें तो यह पैड न्यूज छप जायेगी लेकिन पढ़ने-सुनने वाला कौन होगा, भगवान जाने। मैंने इसी बात को ध्यान में रखकर वीडियोज बनाना शुरू किया और लेख लिखना शुरू किया जिससे मैं लाखों सरकारी कर्मचारियों के साथ जुड़ने में सफल रहा। कर्मचारियों ने मुझे इस बात का भी शुक्रिया अदा किया है मैंने उनके हित की बात की और इसे एक ज्वलंत मुद्दा बनाने में सहयोग प्रदान किया। वैसे मैं पहले भी शिक्षा संबंधी वीडियो एवं लेख लिखता आ रहा हूँ। जब मैं लिपिक वेतन विसंगति के बारे में वीडियो बनाना एवं लेख लिखना प्रारम्भ किया तो मैं उस समय बहुत दुखी था कि मैं जिन नेताओं/पत्रकारों को इतना अच्छा समझ रहा था, उनका असली चेहरा इतना ख़ौफनाक और लालची प्रवृत्त का था।
इसके बाद मेरे कुछ साथियों ने मुझे व्हाट्सएप एवं फेसबुक ग्रुप से जुड़ने के लिए कहा कि जहां मेरे जैसे ही अन्य लिपिक, लिपिक वेतन विसंगति की चिन्ता करते हैं एवं उसी के आन्दोलन के लिए रणनीति तैयार करते हैं। मैंने अधिकतर ग्रुप्स में लिपिक वेतन विसंगति के अलावा अन्य राजनीतिक एवं मनोरंजक मुद्दों को सामने देखा, परन्तु जब मैंने लिपिक वेतन विसंगति के बारे में मैेसेज किया तो एक वरिष्ठ लिपिक ने मुझे यह कहते हुए मेरा अपमान करना चाहा कि मैं अंग्रेजी में बात करता हूँ और मेरी बातें व्यर्थ हैं, क्योंकि मैं पढ़े-लिखे योग्य लिपिकों को अधिक सराहना देता हूँ और लिपिक की एक अच्छी छवि बनाना चाहता हूँ, क्योंकि लिपिक जी हुज़ूरी के अलावा और चपरासी के स्तर से ऊपर का सोचे यह उनकी समझ से परे था। मैंने सभी ग्रुप्स को छोड़ दिया और डिलीट कर दिया, मुझे बहुत दुख हुआ कि ऐसे भी अयोग्य लिपिक हमारे बीच हैं जो लिपिक के दर्द को न समझकर आदमबाबा के ज़माने की सोच रखते हुए घृणित मानसिकता का पर्याय बनकर लिपिक पद को कमतर करने में तुले हुए हैं।
लेनिक जो हमें एक लिपिक होने का दर्द है, जो मैं जिन्दगी में एवं कार्यस्थल पर भी दिन-प्रतिदिन महसूस करता हूँ कि एक लिपिक इतना अधिक काम करने के बाद, उच्च योग्यता होने बाद भी लिपिक को एक चपरासी की तरह व्यवहार करने की कोशिश की जाती है। मैंने तो ऐसी किसी भी परिस्थिति की आशंका होने पर साफ-साफ कड़े शब्दों में लिपिक की गरिमा को सामने रखा है, और बोल दिया है कि नफ़रत और भेदभाव के नीति की बेडि़यां किसी लिपिक के भविष्य का निर्धारण नहीं कर सकतीं, लिपिक अपनी राह स्वयं बनाने में सक्षम है। किसी इंसान के पद से उसके ज्ञान के स्तर एवं उसकी योग्यता तथा उसके जिन्दगी के साथ पूर्वाग्रह की भावना नहीं बना लेना चाहिए। लिपिक इस बेड़ी को जल्द तोड़ देगा।
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दूसरी तरफ क्या हो रहा है, शेट्टी पे कमीशन न्यायालयीन कर्मचारियों पर लागू होने को है, इन दिनों शेट्टी पे कमीशन लागू कराने के लिए बैठकें हो रही हैं, जल्द ही आपके सामने इस सम्बंध में निर्णय आ जाएगा। अधिक प्रायिकता है कि शेट्टी पे कमीशन मध्यप्रदेश के न्यायालयीन कर्मचारियों पर लागू हो ही जाएगा। मध्यप्रदेश सरकार की इस याचिका को कि शेट्टी पे कमीशन लागू करने से राज्य कर्मचारी भी हड़ताल की राह पर आ जाएंगे, को उच्चतम न्यायालय ने ख़ारिज ही कर दिया था। शेट्टी पे कमीशन लागू हो जाने बाद न्यायालीन लिपिकों का वेतन मध्यप्रदेश राज्य के लिपिकों के वेतन से लगभग दोगुना हो जाएगा। यदि शेट्टी पे कमीशन न्यायालयीन कर्मचारियों पर लागू हो जाता है तो अन्य विभाग में काम करने वाले मध्यप्रदेश के लिपिक अवसादग्रस्त हो जाएंगे, पहले से ही इन लिपिकों पर इतना अधिक अत्याचार किया गया है कि उनकी जिन्दगी के साथ उन्हें समझौता करना पड़ा है। सच्चे और ईमानदार लिपिक इस अत्याचार और भेदभाव का सहन नहीं कर पाएगा और वह अपनी व्यथा को खुलकर सरकार के सामने रखेगा, इसका दुष्परिणाम ही होगा। शेट्टी पे कमीशन इस बात का हवला दे रहा है कि न्यायालयीन कर्मचारी अन्य विभाग के समकक्ष कर्मचारियों से अधिक काम करते हैं, जबकि अन्य विभाग के कर्मचारी कामचोर होते हैं, इस वजह से न्यायालयीन कर्मचारियों का वेतन राज्य कर्मचारियों से अधिक होना चाहिए। आपको जानना आवश्यक है कि न्यायालयीन कर्मचारियों का वेतन मध्यप्रदेश सरकार ही देती है। हकीक़त तो यह है कि राज्य कर्मचारी भी न्यायालयीन कर्मचारियों के समान या अधिकतर स्तर का काम करते हैं और योग्यता की बात की जाए तो राज्य कर्मचारियों में आधार योग्यता उस पद पर आने के लिए न्यायालय से उच्च या अलग भी है। जैसे आज भी कई न्यायालयीन लिपिक कर्मचारी हैं जिनके पास सीपीसीटी नहीं है, जबकि मध्यप्रदेश सरकार में लिपिक की नौकरी प्राप्त करने के लिए अब सीपीसीटी अनिवार्य है।
आज मध्यप्रदेश के लिपिक में अलगाव की स्थिति बनी हुई है। न्यायालयीन लिपिक शेट्टी पे कमीशन चाहते हैं और राज्य के लिपिक की तरह लिपिक वेतन विसंगति के मुद्दे का समर्थन पुरज़ोर तरीके से नहीं करते। मध्यप्रदेश के पुराने कुछ लिपिक इस आधार पर नए लिपिकों से द्वेष कर रहे हैं कि वैतनिक लाभ सरकार नए कर्मचारियों को कैसे दे सकती है, जो लिपिक अंग्रेजी जानते हैं, कम्प्यूटर चलाना जानते हैं और तकनीकि रूप से सक्षम होकर लिपिक हितों के बारे में बोल सकते हैं, वो लिपिक लिपिक हैं ही नहीं, क्योंकि उन्हें लिपिकों के ऐतिहासिक गरिमा से कोई लेना-देना नहीं है। हमें दर्द इस बात का ही रहा है कि हमारी बात किसी ने नहीं सुना था चाहे कोई वह नेता हो, पत्रकार हो या हमारे ही परिवार का कोई ऐसा लिपिक हो। सरकार के सामने आज यह बात मैं इसलिए रख रहा हूँ क्योंकि आज लिपिक योग्य है, काफी अच्छा काम करता है, सरकार ने कई पदों का वेतन बढ़ा दिया जबकि उनके साथ कोई वेतन विसंगति नहीं थी, लिपिक के साथ बहुत पुरानी वेतन विसंगति होने के बाद भी आज लिपिकों से बहुत अधिक काम लेकर भी लिपिकों का वेतन नहीं बढ़ाया जा रहा है। आज लिपिक को समाज एवं कार्यस्थल पर हीन भावना से देखा जा रहा है। ईमानदार लिपिक अपने आत्मसम्मान के लिए कुछ भी कर सकता है, लिपिक लड़ता रहेगा। लिपिकों को उम्मीद है कि सरकार इसी वर्ष 2022 में लिपिकों की वेतन विसंगति दूर कर देगी।
वीडियो देखें- म.प्र. लिपिकों के दुर्दशा की कहानी । जब लिपिक नाम सुनते ही फोन काट दिये नेता/मंत्री/पत्रकार/मीडिया...
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