मध्यप्रदेश तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग के सरकारी कर्मचारी संगठनों ने अभी हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी से 25 लाख तक के ब्याज मुक्त होमलोन की मॉंग की है और हवाला दिया है कि इन वर्गों में कार्यरत कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि यह स्वयं का घर आज बाज़ार के बैंक ब्याज़ पर ले सकें और साथ ही साथ इन कर्मचारियों को शासकीय आवास की उपलब्धता नहीं है, अथवा यदि है भी तो उन शासकीय घरों की हालात जर्जर है। यह शासकीय आवास कभी भी किसी अप्रिय घटना को अंजाम दे सकते हैं। दूसरी तरफ मिलने वाला आवास भत्ता छठे वेतनमान के अनुसार है जो आज की परिस्थिति के हिसाब से अप्रासंगिक है।
सरकारी कर्मचारी भी गरीब होते हैं |
आज इस लेख में हम कर्मचारी संगठनों द्वारा मांग की जाने वाली ऐसी योजना या ऐसे किसी भी तथ्य को समझेंगे कि असलियत क्या है और किस लिए सरकार को इन वर्ग के कर्मचारियों की बात सुननी चाहिए। आगे बढ़ने से पहले मैं अपने बारे में बता दूँ कि मैं स्वयं एक तृतीय वर्ग मध्यप्रदेश सरकारी कर्मचारी हूँ और शासकीय कर्मचारी नियमावली के अनुसार ही मैं अपना कर्तव्य मानता हूँ कि किसी सरकार या सरकारी योजना का विरोध न करूं, असलियत भी यही है कि मैं सरकार की सभी योजनाओं का समर्थन करता हूँ और इस बात की तारीफ़ भी करता हूँ कि सरकार भारतीय संविधान के समाजवाद भावना की नीति को अपना रही है। मेरा यह लेख लिखने का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ एक बेहतर समाज का निर्माण है और उन दबे-कुचले कर्मचारियों की बात करना है जो अवसादग्रस्तता भरी जिन्दगी जीने को मज़बूर हैं।
सरकारी योजनाएं समाज के उन वंचित लोगों के लिए होती हैं जिनको अन्य विशेषाधिकार प्राप्त लोग अनुभव कर रहे होते हैं। ऐसी सरकारी योजनाएं समाज के निचले तबके पर जीवन-यापन करने वालों के अंधे की लाठी के तौर पर काम कर रही होती हैं जो सच में बहुत आवश्यक होती है। चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार, समाजवाद की इसी नीति पर काम करती हैं कि कोई भी तबका/वर्ग समाज की मुख्यधारा से दूर या वंचित न रह जाए। सरकार ने कई सारी योजनाएं अब तक लायी हैं जैसे प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, आवास योजना, उज्ज्वला योजना, ई-श्रम कार्ड योजना आदि और इसी तर्ज पर मध्यप्रदेश सरकार ने भी कई सारी राज्य स्तरीय योजनाओं को आमजन के कल्याण के लिए लाया है। ऐसी सरकारी योजनाएं समाज के उन वर्गों के लिए आमतौर पर होती हैं जो शायद आज की महंगाई के दौर और बढ़ती कीमत फलस्वरूप उन सेवाओं की कीमत वहन न कर सकें। समाज ने कुछ योजनाएं कुछ वर्ग विशेष के लिए तो कुछ लिंग विशेष के लिए लांच की हैं जो असल में बहुत मददगार साबित हुई हैं।
चूंकि लेखक का संबंध एक गांव से रहा है और सरकार की अधिकांशत: योजनाएं ग्रामीण आबादी को ध्यान में रखकर लायी जाती हैं, तो लेखक ने ऐसी किसी भी योजना को बहुत करीबी से क्रियांवन होते देख रखा है और इसका विश्लेषण भी कर पाने में सक्षम है। लेखक को ऐसी सरकारी योजनाओं में ऐसे लोगों के लाभांवित होने के भी प्रमाण मिले हैं जो असल में बहुत अमीर हैं या उस गांव के जागीरदार हैं, असल में सरकार की यह योजनाएं उन लोगों के लिए तो हैं ही नहीं जो छद्म रूप धरकार सरकार को धोखा दे रहे होते हैं। दूसरी तरफ सरकार की योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर उतारने वाले सरकारी सेवक के साथ ही साथ कांट्रेक्ट पर कार्यरत कर्मचारी भी भ्रष्टाचार में इस कदर लिप्त होते हैं कि उनको रूपये के सामने गरीब कल्याण नज़र नहीं आता है। सार यह है कि सरकार की योजनाओं का लगभग 70 प्रतिशत लाभ तो ऐसे लोग ले जाते हैं जिनको असल में उन योजनाओं का लाभ मिलना ही नहीं चाहिए था। यह बात भ्रष्टाचार की है और ऐसी नाकामयाब नीति की है जिससे सभी सरकारें लड़ती आई हैं और आगे भी लड़ती रहेंगी।
माननीय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी का वक्तव्य कि 1 रूपया जनकल्याण पर भेजने पर सिर्फ 15 पैसे ही उस गरीब को मिलता है, बकाया बीच के सरकारी/प्रायवेट बिचौलिए खा जाते हैं, चरितार्थ हो रहा है। महान विद्वान चाणक्य का एक वक्तव्य है, यदि सरकार में काम करने वाला सरकारी कर्मचारी ही भ्रष्ट हो जाए तो सरकार कितनी ही महान योजना क्यों न लाए, सरकार का विनाश निश्चय ही है। आज माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के ऑनलाईन और डिजिटल योजना प्रयास के फलस्वरूप भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का सफल प्रयत्न हुआ है, क्योंकि जितनी राशि सरकार गरीब के लिए भेजवाती है, वह गरीब उतनी ही राशि पाता है। परन्तु चाणक्य जी का भ्रष्टाचार के प्रति वह वक्तव्य आज भी क्रियाशील है। सरकार को इसके बारे में अवश्य सोचना चाहिए।
सरकारी विभाग में काम करने के बाद भी लेखक भ्रष्टाचार के खिलाफ़ इसलिए है क्योंकि भ्रष्टाचार आज भी सरकारी विभागों में व्याप्त है और इस भ्रष्टाचार का शिकार लेखक भी रहा है। आज भ्रष्टाचार सरकारी कर्मचारी करके खुश होता है परन्तु बाद में वह भ्रष्टाचार के शिकार से रोयेगा। न सिर्फ सरकारी कर्मचारी बल्कि आमजन और आम व्यापारी भी भ्रष्टाचार को इस कदर प्रोत्साहित कर रहे हैं जैसा कि हम सरकारी विभागों के भ्रष्ट होने को दोषी मानते हैं। लेखक को इन बातों को स्पष्ट रूप से रखने में कोई परेशानी और चिन्ता नहीं है, क्योंकि लेखक न तो भ्रष्टाचार का समर्थक है और न ही भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करने वाला।
अब तक आप समझ गये हैं कि ये सरकारी योजनाएं भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई हैं और मिलने वाला मुक्त का रूपया, ईलाज़, योजनाएं सिर्फ उन लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा, जिन तक पहुंचना चाहिए। लेकिन सरकारें जब भी कोई योजना हमारे बीच लाती हैं तो गरीब और वंचित लोगों की बात तो करती हैं परन्तु ऐसे सरकारी कर्मचारियों की बात नहीं करती हैं जो असल में उसी गरीब तबके के समान जिन्दगी जीने को मज़बूर हैं। मध्यप्रदेश के चतुर्थ और तृतीय वर्ग के ईमानदार कर्मचारियों की हालात आज बद से बदतर है। तृतीय श्रेणी कर्मचारियों में लिपिक/सहायक ग्रेड-3 की हालात सबसे दयनीय है। यह लिपिक वर्ग आज सबसे अधिक कार्य करने के बाद भी चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों के समान वेतन प्राप्त करता है और सामाजिक, आर्थिक और मानसिक रूप से प्रताड़ना झेलने को मज़बूर है।
हम सभी जानते हैं कि तृतीय वर्ग या चतुर्थ वर्ग में काम करने वाले कुछ भ्रष्ट कर्मचारी ऐसे भी हैं जिनकी ख़बर आये दिन अख़बार में छपती है और ये कर्मचारी करोड़पति होते हैं। असल में सरकारी कर्मचारी के सभी वर्गेां का यही हाल है। परन्तु कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों के उदाहरण को ध्यान में रखकर हमें ऐसे ईमानदार कमचारियों को नहीं भूल जाना चाहिए जिनकी जीवनी का मुख्य आधार उनका वेतन ही होता है और असल में ये तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग के कर्मचारी अल्पवेतन भोगी ही होते हैं। भारतीय न्याय प्रणाली भी इस आधार पर काम करती है कि चाहे 100 अपराधी छूट जायें परन्तु किसी निर्दोष को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। इसीलिए हमने ऐसे निर्दोष कर्मचारियों को ईमानदार की संज्ञा दिया है। तृतीय वर्ग में काम करने वाले कुछ उच्च ग्रेड पे की भी नौकरियॉं हैं जैसे तहसीलदार, इनकी परिस्थिति और हकीक़त के बारे में आप सबको बयां करने की कोई आवश्यकता मैं नहीं समझता, इसलिए मैंने तृतीय वर्ग कर्मचारियों में लिपिक संवर्ग को एक आधार मानकर अपनी बात रखी है।
मध्यप्रदेश सरकार में काम करने वाले तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति दयनीय होती है, साथ ही साथ इन पदों पर काम करने वाले ज्यादातर कर्मचारी गरीब परिवार से संबंध रखते हैं, तो सरकारें कोई भी योजना लाने से पहले इस बात का ध्यान ज़रूर रखे की सरकारी कर्मचारियों में भी एक वर्ग है, गरीब तबका और अमीर तबका। ज्यादातर अकार्यपालिक पद जैसे लिपिक वर्ग/सहायक ग्रेड-3 आदि बन्धुआ मज़दूर की तरह काम करने के बाद और इनकी योग्यता का भरपूर उपयोग होने के बाद इन पदों को अत्यल्प, चपरासी के समान वेतन दिया जा रहा है। सरकार को कोई भी योजना बनाते समय इन गरीब कर्मचारियों की दुर्दशा पर ध्यान देना अति-आवश्यक है क्योंकि पूरी लगन एवं मेहनत से कार्यस्थल पर काम करने के बाद भी इन कर्मचारियों को अवसादग्रस्तता से जूझना पड़ता है। यदि इन सरकारी कर्मचारियों को सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं दिया गया तो कर्मचारियों का यह संवर्ग खुले बाज़ार और महंगाई की मार नहीं झेल पाएगा। इन कर्मचारियों का शोषण हमेशा से होता आ रहा है, कर्मचारी होते इस शोषण के बारे में बोलना तो चाहते हैं परन्तु इनको सभी स्तर पर दबाया जाता है, कार्यस्थल के साथ-साथ किसी भी स्तर पर इन कर्मचारियों को बन्धुआ मज़दूर की नज़र से देखा जाता है और इनके भविष्य और भावनाओं की कदर नहीं की जाती है।
आज योग्य कर्मचारी अन्याय के खिलाफ़ बोलेगा, और होते हुए शोषण के विरूद्ध सरकार से प्रश्न भी करेगा, कि क्या सरकारी विभागों में कार्यरत ईमानदार गरीब कर्मचारियों को आत्मसम्मान से जीने का कोई अधिकार नहीं है? क्या इन कर्मचारियों के भविष्य की चिन्ता सरकार को नहीं है? आखिर समाजवाद के नाम पर फ्री की सुविधाएं आमजन/गरीब/किसान के नाम पर दी जाती हैं और उसका फायदा अमीर लोग भी ले जाते हैं, तो जो गरीब रहा उसको फ्री की सहायता मिल जाती है, परन्तु तो कर्मचारी (लिपिक वर्ग) बहुत मेहनत और लगन से काम करता है उसको फ्री की सहायता मिलना तो दूर, उसके कार्य अनुसार वेतन न दिया जाना उचित है? क्या सरकार की नज़र में सरकारी कर्मचारियों की दुर्दशा, उनका शोषण मनोरंजन का मुद्दा होना चाहिए?
आज एफ.एम.सी.जी. (फास्ट मूविंग कन्ज्यूमर गुड्स) के साथ-साथ लगभग सभी सेवाओं/उत्पादों के दाम बढ़ गये हैं और भविष्य में निरन्तर बढ़ते जाने की संभावना है। अत्यल्प वेतनभोगी ये ईमानदार कमचारी महंगाई की इस मार को झेल पाने में असमर्थ प्रतीत होते हैं। आज एक रिटेलर भी इन संवर्ग के ईमानदार कर्मचारियों से कहीं अधिक कमा रहा है और अच्छी जिन्दगी जी रहा है। बड़े-बड़े प्रोडक्ट्स ख़रीद पाना तो दूर की बात, ईमानदार सरकारी कर्मचारी आज दैनिक जीवन भी बड़ी कठिनता से जी पा रहा है। प्रोडक्ट्स के साथ-साथ सेवाएं चाहे मेडिकल की हों या किसी अन्य क्षेत्र की उनकी कीमत बढ़ चुकी है, इसलिए सरकार को इन छोटे तबके के सरकारी कर्मचारियों के बारे में ज़रूर सोचना चाहिए।
कुछ अन्तिम शब्दों के साथ मैं यह लेख समाप्त करना चाहूँगा कि मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारी संगठन अब इस शोषण के खिलाफ़ एक स्वर में आवाज़ उठा रहे हैं। सरकारी विभागों में कार्यरत इन वर्ग के कर्मचारियों को असंगठित क्षेत्र में कार्यरत, दैनिक वेतन भोगी मज़दूर की तरह सरकार को देखना चाहिए और सभी सरकारी योजनाओं का लाभ इन गरीब कर्मचारियों तक पहु़चे, इस बात को भी सुनिश्चित किया जाना उचित होगा। सरकारी विभाग में काम करने वाले तथाकथित छोटे पदों के कर्मचारियों को उच्च वर्ग इसलिए दबाते आये हैं क्योंकि तथाकथित छोटे वर्ग के कर्मचारियों को अपने आत्मसम्मान और हक़ का ज्ञान नहीं था। इसकी एक वज़ह यह भी है कि आज के पुलिस के सहायक उप निरीक्षक (वर्तमान ग्रेड पे 2800/-) से भी अधिक उच्च वेतन पाने वाले मध्यप्रदेश के लिपिकों को आज चपरासी के समान वेतन दिया जा रहा है, लिपिक वर्ग की योग्यता और कार्यकुशला में इज़ाफा हुआ है, लेकिन बदले में शोषण और प्रतिकार ही मिला है, लिपिकों से चपरासियों के समान व्यवहार किया जाना भी इसी ख़मोशी का नतीज़ा है जिसे सभी कार्यालयों के बाबू इस बात का अनुभव बखूबी कर रहे हैं। लेकिन अब समय दूर नहीं जब लिपिक वर्ग अपना हक़ और पद की गरिमा के अनुरूप वेतन प्राप्त करने लगेगा। इसी उम्मीद के साथ की मध्यप्रदेश की सरकार कर्मचारियों की मांगों का निराकरण जल्द से जल्द करे, मैं अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा।
वीडियो देखें- म.प्र. के गरीब कर्मचारियों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाना उचित । आर्थिक शोषण पर हो लगाम...
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