eDiplomaMCU: अनियंत्रित महंगाई पर लगाम लगाने रिजर्व बैंक ऑफ इण्‍डिया ने फिर से 0.5 प्रतिशत बढ़ाया रेपा रेट

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Saturday, August 6, 2022

अनियंत्रित महंगाई पर लगाम लगाने रिजर्व बैंक ऑफ इण्‍डिया ने फिर से 0.5 प्रतिशत बढ़ाया रेपा रेट

महंगाई का मुद्दा इन दिनों भारत में संसद से लेकर सड़क तक का मुद्दा बन गया है। पिछले करीब 2 साल से महंगाई अप्रत्‍याशित तरीके से बढ़ती जा रही है। 'रिच डैड-पुअर डैड' पुस्‍तक में लेखक ने बताया है कि एक आदर्श सरकार में महंगाई नहीं बढ़ती है, या कह सकते हैं कि महंगाई दर शून्‍य रहती है, परन्‍तु आदर्श सरकार मात्र एक कल्‍पना मात्र है।परन्‍तु यदि महंगाई अनियंत्रित तरीके से बढ़ती ही जाए, तो क्‍या हम इसे सरकार की नाकामयाबी कहेंगे? मैं इस लेख में आपको आज की परिस्थिति और महंगाई की मार झेल रहे उस आम इन्‍सास के दर्द काे बयॉं करने वाला हूँ, जिसे हाल ही में भारतीय संसद में महंगाई के मुद्दे को एक मज़ाक के तौर पर दिखाया गया। 

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आरबीआई बनाम महंगाई

 भारतीय संसद के मानसून सत्र में महंगाई को एक मुद्दा बनाया गया, इस पर चर्चा होनी थी। देश ने सदन की मर्यादा और महंगाई पर प्रदर्शन करने वालों का निलम्‍बन तक देखा। कई दिनों तक तो सदन की कार्यवाही हो नहीं सकी, क्‍योंकि महंगाई पर चर्चा किन्‍हीं कारणवश संसद में चर्चा नहीं हो पा रही थी। परन्‍तु जैसे ही सरकार पक्ष ने संसद में महंगाई पर अपना पक्ष रखा तो साफ-साफ बोला गया कि देश में महंगाई नहीं है, यह विपक्षी दल के मन की उपज है। देश की आम जनता को हमने मुफ्त का फ्रीफण्‍ड देकर खिलाया है। किसी को महंगाई नहीं दिख रही, क्‍योंकि महंगाई है ही नहीं। परन्‍तु दूसरी तरफ रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ने पिछले लगभग 3 महीने में 3 बार रेपो रेट बढ़ाया है। आरबीआई के गवर्नर ने भी एक भाषण में कहा कि देश में सब तो ठीक है, परन्‍तु जिस तरीके से महंगाई बढ़ रही है, वह अप्रत्‍याशित है। तो चलिए जान लेते हैं रेपो रेट के बारे में - 

रेपो रेट - जिस ब्‍याज दर पर भारत का सर्वोच्‍च बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया निचले बैंक अथवा फायनेन्सियल संस्‍थाओं को लोन/ऋण देता है, वह रेपो रेट होता है। 

रिवर्स रेपो रेट - जब कभी बैंक या किसी फायनेन्सियल संस्‍था के पास सरप्‍लस अमाउण्‍ट होता है तो उस पर ब्‍याज कमाने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के पास रूपसे रखने से जिस ब्‍याज दर पर ब्‍याज मिलता है उसी को रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। 

रेपो रेट हमेशा रिवर्स रेपो रेट से अधिक होता है। जबकि सामान्‍यतया बैंकों द्वारा प्रदाय ऋण हमेशा रेपो रेट से अधिक होता है, क्‍योंकि इसी ऋण के कुछ हिस्‍से की कमाई ऋण प्रदाता बैंक रखता है जबकि बकाया रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया को रेपो रेट के ब्‍याज दर पर देना होता है।  

भारत में कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन की वजह से अर्थव्‍यवस्‍था को तेजी प्रदान करने के लिए आरबीआई ने रेपो रेट कम कर दिया था, ताकि बैंक के लोन सस्‍ते हो सकें, जिस वजह से लोग अधिक ऋण लें और खरीददारी करें। दूसरी तरफ भारतीय सरकार ने भी लोगों को विभिन्‍न योजनाओं के तहत आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा सहायता प्रदान किया। इस वजह से अत्‍याशित तौर पर बाज़ार में रूपया अधिक हो गया, उत्‍पादन तो एक तरफ कम था, परन्‍तु समाज के एक तबके के पास रूपये अधिक होने लगा। मॉंग और आपूर्ति में अनियमितता आ गई, इस वजह से उत्‍पाद के कम होने जबकि लोगों के पास अधिक पैसा होने की वजह से महंगाई बढ़ गई। दूसरी तरफ एक ऐसा वर्ग भी रहा जिसकी कमाई तो कम हुई अथवा वैसी ही बनी रही, परन्‍तु वस्‍तुओं/उत्‍पादों के दाम बढ़ते ही गये। 

हमने रिफायण्‍ड आयल की कीमत 200 के करीब, सरसों के तेल की कीमत दोगुनी से भी अधिक, यहॉं तक कि हर खाने-पीने के सामान की कीमत में अप्रत्‍याशित उछाल देखा है। एफएमसीज (फास्‍ट मूविंग कन्‍ज्‍यूमर गुड्स) की कीमत कम्‍पनियों ने आये दिन बार-बार बढ़ाया है। कभी देश की गतिविधि तो कभी वैश्विक टेंशन्‍स को वजह मानी गई, पर वास्‍तविकता यह रही है कि महंगाई बढ़ती ही गई, अनियंत्रित तरीके से बढ़ती गई। उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक में अनार्दश तरीके की बढ़ोतरी देख आरबीआई ने मई के पहले सप्‍ताह में 0.4 प्रतिशत रेपो रेट बढ़ा दिया, परन्‍तु महंगाई बढ़ोतरी में कुछ ज्‍यादा असर न दिखा तो आरबीआई एमपीसी की अर्जेंट आपातकालीन बैठक जून 2022 के पहले सप्‍ताह में फिर रखी गई और इस बार रेपो रेट 0.5 प्रतिशत बढ़ा दिया गया। अब रेपो रेट अप्रैल माह 2022 में 4 प्रतिशत था, सिर्फ 2 महीने बाद ही 4.9 प्रतिशत हो गया था। लेकिन महंगाई का असर कुछ ही हद तक कम हुआ, कई वजह रहीं, शायद आरबीआई भी इस बात से परेशान था कि सिर्फ 2 महीने के अन्‍दर ही फिर से 0.5 प्रतिशत रेपो रेट फिर से बढ़ा दिया। आरबीआई का कहना है कि इससे बाज़ार में कुछ तो पैसा कम होगा, जिससे कुछ हद तक महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता है। 

बात साफ है, सरकार भले कुछ भी कहे कि महंगाई बिल्‍कुल नहीं है, परन्‍तु आरबीआई द्वारा बार-बार महंगाई को चिन्‍ताजनक मानना और बार-बार रेपो रेट बढ़ा देने का मतलब साफ है कि देश में महंगाई आज प्रमुख मुद्दा बन गया है और यह अनियंत्रित है। जब लोग महंगाई से राहत की उम्‍मीद कर रहे थे, वहीं पैक्‍ड फूड आयटम्‍स को भी 5 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में ला दिया गया है। यह सच में दु:खद है कि आम आदमी जिसे फ्रीफण्‍ड का कुछ नहीं मिलता और न ही उसकी आमदनी अधिक है, वह सर्वाधिक इस महंगाई का शिकार हुआ है। इस महंगाई की और अधिक मार तो तब पड़ने वाली है जब वह आम आदमी बिना ईएमआई प्‍लान के कुछ नहीं कर सकता और ऋण की दर पुन: बढ़ जायेगी। 

निराशाजनक बात यह भी रही है कि बैंक को चाहिए कि जैसे ही आरबीआई ने रेपो रेट बढ़ा दिया है, बैंक भी सेविंग अकाउण्‍ट/एफडी/आरडी आदि पर ब्‍याज दर बढ़ा दें, ताकि लोग पैसा अपने पास न रखकर बैंक में जमा करें और बाजार से पैसा कम होने की वजह से महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सके। ईपीएफ/पीपीएफ आदि निवेश नीति में सरकार ने ब्‍याज दर कम किया है, यह उस वक्‍त तक के लिए सही था जब देश में आर्थिक गतिविध हो गई थी, परन्‍तु अब उस आर्थिक गतिविधि ने महंगाई का रूप ले लिया है, तो पुन: सरकार को इन निवेश नीतियों के लिए ब्‍याज दर बढ़ा देनी चाहिए। महंगाई की दर अप्रत्‍याशित और अनियंत्रित है, जो असल में बैंक द्वारा एफडी आदि से मिलने वाले ब्‍याज दर से कहीं अधिक है, इस वहज से लोग अपना पैसा पुन: बैंक के पास नहीं रखना चाह रहे। 

भारत के गरीब तबके को सरकार मुफ्त और सब्सिडी देकर महंगाई से बचा ले रही है, मध्‍यम और अमीर वर्ग महंगाई को अपने अनुसार नियंत्रित कर रहे हैं, जबकि निम्‍न गरीब-मध्‍यम वर्गीय वर्ग को किसी से कोई भी मदद नहीं मिलती और यह वह वर्ग है जिसे हर प्रकार की महंगाई की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। यही निम्‍न गरीब-मध्‍यम वर्गीय वर्ग है जो आमतौर पर सरकार की ईपीएफ/पीपीएफ आदि जैसे निवेशक नीतियों में निवेश करता है, यही वर्ग छोटे-छोटे बचत करके बड़े सपने देखता है, यही वर्ग है जिसे पक्‍के घर की कामना रहती है और यह प्रधानमंत्री आवास योजना अथवा उपचार हेतु प्रधानमंत्री आयुष्‍मान योजना, प्रधानमंत्री स्‍वानिधि योजना, किसान सम्‍मान निधि आदि योजनाओं का लाभ नहीं ले सकता है। 


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