दोस्तों, मेरा नाम अभिषेक है। मैं एक सरकारी कर्मचारी हूँ, मैं कर्मचारी हित एवं सम्बंधित राजनीतिक मुद्दों पर भी लेख लिखा करता हूँ परन्तु मेरा उद्देश्य कभी भी किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन अथवा विरोध नहीं होता है। मैं कर्मचारियों के भविष्य को ध्यानगत रखते हुए उनके हित से सम्बंधित लेख लिखा करता हूँ, अत: इस लेख को भी किसी राजनीतिक दृष्टिकोण से सम्बद्ध न समझा जाए। अक्सर मेरा इन मुद्दों के बारे में बात करना आवश्यक इसलिए भी हो जाता है क्योंकि देश में पत्रकारिता के सही मायने कर्मचारी विरोधी उभरकर सामने आते रहते हैं। तो चलिए लेख प्रारम्भ करते हैं -
पुरानी पेंशन बहाली |
देशभर में हमने देखा है कि सन् 2022 में जितने भी राज्यों में विधानसभा चुनाव हुआ है वहॉं का मुख्य चुनावी मुद्दा पुरानी पेंशन योजना बहाली का भी रहा है। वैसे पुरानी पेंशन योजना बहाली की मॉंग उन राज्यों में पहले भी रही है जहॉं मॉंग यद्यपि अभी भी पूरी नहीं हुई है। राजस्थान की अशोक गहलोत की कांग्रेस की सरकार ने फरवरी 2022 में उसके बाद छत्तीसगढ़, फिर झारखण्ड और हाल ही में पंजाब की सरकार ने पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दिया है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह राजनीतिक दृष्टिकोण से लिया गया कदम है परन्तु इससे कर्मचारी संवर्ग के भविष्य को एक सुरक्षा-कवच मिला है।
नई पेंशन योजना के तहत आने वाले कर्मचारियों की रिटायरमेंट होने की संख्या कुछ वर्षों से आये दिन लगातार बढ़ती ही जा रही है क्योंकि 2004 के बाद भर्ती हुये कर्मचारियों के रिटायरमेंट की उम्र आगे आने वाले सालों में अधिक रहने वाली है। कर्मचारियों को एनपीएस से मिले कॉर्पस एवं उससे मिलने वाले पेंशन की कीमत आज के दौर में हास्यास्पद होने की वजह को कर्मचारी संघों द्वारा ज्ञापन के माध्यम से सरकार के समक्ष यह बिन्दु लाया गया। चूँकि कर्मचारियों की संख्या भी एक अच्छे वोट बैंक के रूप में रहती है, इसी को ध्यान में रखकर कुछ राज्य सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दिया है, यद्यपि पुरानी पेंशन योजना बहाल किया जाना देश की आर्थिक स्थिति में बोझ डालने जैसा है परन्तु इसे फ्रीबी नाम दिया जाए अथवा कल्याणकारी योजना यह अभी भी एक चर्चा का विषय बना हुआ है।
दूसरी तरफ 2022 में या इससे पहले हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने पुरानी पेंशन योजना की मॉंग को सीधे तौर पर नकार दिया। उत्तरप्रदेश एवं उत्तराखण्ड जैसे बड़े राज्यों में बीजेपी की हुई हाल की जीत ने इस बात को और बल दिया कि कर्मचारी के लिए पुरानी पेंशन योजना की मॉंग को दरकिनार किया जा सकता है, यही वजह रही है कि हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के तीव्र आन्दोलन के बाद भी वहॉं की जयराम की बीजेपी सरकार ने साफ तौर पर पुरानी पेंशन योजना बहाली की मॉंग को व्यंगात्मक तरीके से नकार दिया और खुली चुनौती दी कि यदि सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन चाहते हैं तो नौकरी छोड़ दें और चुनाव लड़कर-जीतकर पुरानी पेंशन पाने के हक़दार बन जाऍं।
इस बात से हिमाचल के सरकारी कर्मचारी हताशा की भावना में आ गए और वोट फॉर ओपीएस अर्थात् दूसरे मायनों में उस पार्टी को वोट देना जो पुरानी पेंशन योजना बहाल करे (कांग्रेस) अभियान चलाए। चूँकि कांग्रेस की कुछ नकारात्मक छवि देश में अब तक रही है इसलिए आम आदमी पार्टी को भी एक विकल्प के तौर पर देखा जा सकता था, आम आदमी पार्टी पंजाब ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए पंजाब में हाल ही में पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दी। गुजरात में आम आदमी पार्टी का अधिक ध्यान रहा एवं हमारा अनुमान यही है कि कर्मचारियों के लिए अच्छे दिन आने वाले हैं। अब आप स्वयं ऐसी ख़बरें सुन रहे होंगे कि किस प्रकार सत्तारूढ़ पार्टियों के नेतागण भी पुरानी पेंशन योजना बहाली को पार्टी के स्वास्थ्य के लिए हितकर मान रहे हैं।
गुजरात विधानसभा चुनाव का तो पता नहीं परन्तु हिमाचल प्रदेश का मुझे आईडिया है। मैं कई महीने पहले से बोल रहा था कि पुरानी पेंशन की बहाली बीजेपी शासित राज्यों में जल्द होगी और वह पड़ाव हिमाचल प्रदेश का विधानसभा चुनाव होगा। उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड में कर्मचारियों की उदासीनता ने उन्हें पुरानी पेंशन से कुछ वक्त के लिए वंचित रखा, लेकिन हिमाचल में नए साल में पुरानी पेंशन जरूर बहाल हो जाएगी।
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