भोपाल चलो : 29 अप्रैल 2023 – म.प्र. लिपिकों के लिए क्यों है ज़रूरी
मध्यप्रदेश के लिपिक संवर्ग
की वेतन विसंगति वर्षों पुरानी है। लिपिकों की मॉंग को नज़रअन्दाज इस कदर किया गया
कि आज लिपिक संवर्ग किसी भी विभाग के निम्नतम श्रेणी के कर्मचारियों में गिना जाने
लगा है। मध्यप्रदेश सरकार के हाल ही के नीति के तहत अब भविष्य में कभी भी चतुर्थ
श्रेणी के कर्मचारियों की नियमित भर्ती नहीं होगी, और दूसरी तरफ इस बात से कोई
भी सरकारी कर्मचारी अंजान नहीं है कि जिन विभागों में भृत्य अथवा चतुर्थ श्रेणी के
कर्मचारी नहीं हैं अथवा कोई आउटसोर्स से भर्ती हुआ कर्मचारी नहीं है, वहॉं मध्यप्रदेश के लिपिक ही भृत्य का भी काम कर रहे हैं। वर्षों पहले जब
लिपिकों का पद एक सम्मानजनक पद हुआ करता था, आज के पटवारी व
अन्य पदों से कहीं अधिक लिपिकों का वेतनमान हुआ करता था तब लिपिकों को सम्मान की
निगाह से देखा जाता था। परन्तु लिपिकों के साथ एक बड़ी साजिश की गई, यह साजिश किसने की और क्यों की यह प्रश्न चिन्ह हमेशा लिपिकों के ज़ख्म
को कुदेरता रहेगा, फलस्वरूप अन्य संवर्गों का वेतनमान आये दिन
कई बार बढ़ा दिया गया परन्तु लिपिकों के साथ भेदभाव की नीति प्रत्येक बार ज़ारी रही।
आज के दौर में सापेक्षया देखा जाए तो लिपिकों को आर्थिक गरीबी में धेकल दिया गया।
इस लेख में हम यह चर्चा कतई नहीं करने वाले
कि लिपिक वेतन विसंगति क्या है और कब-कब लिपिकों ने इसके खिलाफ़ लड़ाई लड़ी है क्योंकि
हमने इस सम्बंध में कई लेख पहले भी लिखा है और वीडियोज के माध्यम से लिपिकों के खिलाफ
हुये अन्याय को उजागर किया है। इस लेख का मुख्य मकसद यही है कि लिपिक आज के दौर
में अपने साथ होती हुई एक साजिश के बारे में जानें और अपने हक की मॉंग के लिए एक साथ
आऍं। मुझ पर यह आरोप लगता आया है कि मैंने लिपिकों को एक सूत्र में बॉंधने का प्रयास
किया है और जिन लिपिकों को खुलेआम अपमानित करने का प्रयत्न किया जाने की चेष्ठा की
जाती रही है, मैंने उनके सम्मान और स्वाभिमान को खुलेआम बेवाक रखने का प्रयत्न
किया है।लिपिक वेतन विसंगति सबसे बड़ा मुद्दा
मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि हमारा जीवन
तभी समाप्त हो जाता है जब हम अपने अधिकार और स्वाभिमान को दांव पर रखकर चुप्पी साध
लेते हैं। लिपिक संवर्ग में हमेशा से ही आवाज उठती आई है, स्वाभिमान
की और आत्मसम्मान की। यही कारण है कि अब तक लगभग 8 कमेटियॉं लिपिक वेतन विसंगति के
सम्बंध में एवं माननीय न्यायालय ने कई बार लिपिकों के पक्ष में फैसला दिया है, परन्तु लिपिकों को उनका हक़ आज तक नहीं मिल पाया है। लिपिक संवर्ग के समकक्ष
वेतन पा रहे पहले के कई संवर्ग जैसे शिक्षक संवर्ग को लिपिकों से कहीं अधिक और बेहतर
स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया गया। लिपिकों के साथ आज सरकारी कार्यालयों में भेदभाव
होता है, क्योंकि लिपिकों ने अपना सम्मान खोया है, यह सम्मान सीधे तौर पर वेतनमान से सम्बंध रखता है।
आज परिस्थिति ऐसी आ गई है कि लिपिक स्वयं
को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सोचने पर मज़बूर हो जाता है, यही कारण
है कि आये दिन लिपिक संवर्ग चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के हो रहे आंदोलन में भागीदर
बन जाता है और स्वयं के असहायता के दर्द को कोस रहा होता है। मध्यप्रदेश में सिर्फ
लिपिक संवर्ग ही ऐसा संवर्ग है जिसके साथ खुलेआम भेदभाव हुआ है, और इस भेदभाव के खिलाफ़ लड़ने में लिपिक नेतृत्व ने भी अधूरे मन से अबतक
प्रयास किया है। परन्तु इस बार मध्यप्रदेश का प्रत्येक लिपिक जागृत है, यह उसके स्वाभिमान और सम्मान की लड़ाई है जो लिपिक अंतिम सांस तक लड़ेगा।
5 कर्मचारी संघों ने 20 अप्रैल 2023 को विभिन्न मॉंगों को लेकर मध्यप्रदेश के माननीय
मुख्यमंत्री जी को ज्ञापन सौंपा है जिसमें मध्यप्रदेश लिपिक संघ भी था। अब 29 अप्रैल
2023 को प्रदेशभर के लिपिक और अन्य कर्मचारी विभिन्न मॉंगों के लिए भोपाल में आन्दोलन
करने वाले हैं। मध्यप्रदेश का कोई भी लिपिक आन्दोलन और हड़ताल का समर्थन नहीं करता
और न ही मैं आन्दोलन और हड़ताल को बढ़ावा दे रहा हूँ, परन्तु
मध्यप्रदेश के लिपिकों पर हो रहे शोषण के खिलाफ़ चुप भी तो नहीं रह सकता क्योंकि
यह हमारे आदर्शों और महापुरूषों के बताये गये मार्ग के विपरीत होगा।
मध्यप्रदेश के प्रत्येक लिपिक को यह सुनिश्चित
कर लेना चाहिए कि 29 अप्रैल 2023 को किसी भी कीमत पर भोपाल पहुँचना है। यह आन्दोलन
किसी के खिलाफ़ नहीं बल्कि अपने आत्मसम्मान की लड़ाई है। लिपिकों के अपमान की रूपरेखा
इतनी कड़वी रही है कि उच्च वेतन पाने वाला लिपिक आज तृतीय श्रेणी का निम्नतम कर्मचारी
बन गया है और इसे चतुर्थ श्रेणी में मनोवैज्ञानिक तौर पर धकेला जा चुका है। चतुर्थ
श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती भविष्य में नहीं होगी तो लिपिकों के साथ ही कार्यालय
में बुरा बर्ताव किया जाएगा, यह अनुभव मध्यप्रदेश के समस्त लिपिकों का
है। लिपिक वेतन विसंगति के साथ अनुकम्पा नियुक्ति प्रावधानों में भी सरलता की ज़रूरत
है।
कुछ लिपिक विरोधी लोग और कुछ लिपिक ही लिपिक
विरोधी इस लेख का विरोध करेंगे और पूर्व में जिस प्रकार मुझे लिपिक मुद्दों के बारे
में बोलने से रोकने की कोशिश की गई थी, वही दोबारा दोहराये जाने की कोशिक की जाएगी, परन्तु मध्यप्रदेश का 99 प्रतिशत लिपिक मेरे साथ है, यह मेरे लिए गर्व की बात है और मैं आश्वस्थ हूँ कि लिपिकों की वेतन विसंगति
कुछ ही माह में अवश्य दूर हो जाएगी। लिपिकों को 2400/- ग्रेड पे दिये जाने की बात
कही गई है, परन्तु यह पिछले वेतनमान 2006 में ही हो जाना था, आज लिपिक को 2800 अथवा 3200 ग्रेड पे दिया जाना न्यायोचित है क्योंकि लिपिक
ही है जो कार्यालयों में सर्वोच्च अधिकारी के साथ काम करता है और किसी भी योजना आदि
को सकारात्मक रूप से कार्यान्वयन को सफल बनाता है।
लिपिक वेतन विसंगति ज़रूर दूर होगी। 29 अप्रैल
2023 को भोपाल सबको आना है। इस लेख को मध्यप्रदेश के प्रत्येक लिपिक को साझा कर दें।
लिपिक एकता में ही शक्ति है।
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