eDiplomaMCU: द केरल स्‍टोरी : क्‍या है सच्‍चाई? देखिए धार्मिक तुष्‍टीकरण की भारतीय सिनेमा की कहानी

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Friday, May 5, 2023

द केरल स्‍टोरी : क्‍या है सच्‍चाई? देखिए धार्मिक तुष्‍टीकरण की भारतीय सिनेमा की कहानी

 दोस्‍तों, मेरा नाम अभिषेक है। बड़ी असमंजस में हूँ कि यह लेख मुझे लिखना चाहिए अथवा नहीं। क्‍योंकि विवादास्‍पद मुद्दों से इंसान जितना दूर रहे, उतना ही अच्‍छा होता है। परन्‍तु एक समाज में रहने की वजह से सामाजिक मुद्दों की समझ होना और उसके सम्‍भावित परिणामों को समझना भी ज़रूरी होता है। इस लेख में मैं अभी उठ रहे कुछ धार्मिक मुद्दों के बारे में बात करूंगा जिसका सीधा सम्‍बंध राजनीति से और अंतत: एक व्‍यक्ति व परिवार की जिन्‍दगी से जुड़ा होता है। इस लेख में मैं द केरला स्‍टोरी का रिव्‍यू दूंगा और साथ ही साथ कुछ मुद्दों के बारे में बात करूंगा जिसका सम्‍बंध सीधे तौर पर हमारी जिन्‍दगी से होता है।

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द केरल स्‍टोरी : क्‍या है सच्‍चाई? देखिए धार्मिक तुष्‍टीकरण की भारतीय सिनेमा की कहानी 

मुझे बॉलीवुड मूवीज देखना पसंद है। अपनी 25 साल की जिन्‍दगी में मैंने हज़ारों बॉलीवुड फिल्‍में देखी हैं। इस बात से इंकार तो मैं भी नहीं करता कि उन फिल्‍मों का असल जिन्‍दगी में भी असर होता है। मुझ पर भी असर हुआ है, किसी को देखकर मैंने कोई सपना संजो लिया, तो किसी को देखकर मेरे अन्‍दर कुछ सीखने की चाहत उमड़ आई, तो किसी को देखकर मुझे विभिन्‍न मुद्दों को सीखने की समझ भी आई। इस बात से इंकार भी मैं नहीं करता कि मूवीज/सिनेमा ही समाज की दिशा बदलता है। आज मीडिया हो या सोशल मीडिया, सभी मूवीज/सिनेमा की तरह काम कर रहे हैं और समाज में हो रहे तीव्र बदलाव की झलकियां भी इसी वजह से दिख रही हैं। परन्‍तु क्‍या आप इस बात से इंकार कर सकते हैं कि मीडिया, सोशल मीडिया और सिनेमा का समाज पर अच्‍छा और बुरा दोनों प्रभाव होता है....। वैश्विक इतिहास को यदि देखा जाए तो हम देख पाएंगे कि समाचार, मीडिया, साहित्‍य ने या तो समाज का उत्‍थान किया है या खुलेआम नरसंहार की वजह बनी है। परन्‍तु मंथन भी ज़रूरी है, क्‍योंकि महत्‍वपूर्ण मुद्दों पर चुप रहने से कोई समाज में सकारात्‍मक बदलाव नहीं आता, बल्कि यह तुष्‍टीकरण होता है जो सभ्‍य समाज के लिए सदैव घातक होता है।

हमने देखा है कि किस प्रकार चाहे वह मीडिया हो या सिनेमा पिछले कुछ दशकों तक उनकी चुप्‍पी रही है 1984 के सिक्‍ख दंगों में, चाहे वह 1989 का कश्‍मीरी पंडितों का पलायन हो अथवा देश में अन्‍य ऐसी वारदातें होती आई हों। इतिहास को कोई बदल सकता है नहीं, हॉं छेड़छाड़ की जा सकती है, और छेड़छाड़ की गई। कश्‍मीर, वह स्‍थान जिसका महत्‍व हिन्‍दू संस्‍कृति एवं पौराणिक महत्‍व हिन्‍दू विचारधारा के आसपास घूमता हो कुछ ही वर्ष पूर्व हिन्‍दू विहीन हो जाता है। हिन्‍दू को हम स्‍थानीय सनातनीय विचारधारा एवं धर्म का पर्याय मानते हैं क्‍योंकि समय के साथ हिन्‍दू नाम दिया गया। मुझे अपनी जिन्‍दगी के 25 साल हो गये और यकीन मानिए कि न तो मैंने स्‍कूल की किताबों में कभी कश्‍मीर इंसरजेंसी को बारे में पढ़ा और न ही किसी सिनेमा ने इसे दिखाया। अब तो बदलाव हो रहा है, परन्‍तु पूरी स्‍कूल की किताबों में और सिनेमा में हमने उन आक्रांताओं की तारीफ़ देखी है जिसने हमें लूटा है, बदनाम किया है, तबाह किया है, हमारे समाज और धर्म को क्षति पहुँचाई है।

कश्‍मीर फाईल्‍स मूवी वर्षों बाद आई, परन्‍तु मैं इस मूवी का खुलेआम इस प्रकार समर्थन नहीं करता हूँ कि दूसरा समुदाय ही ख़राब है। दुनिया की चाहे कोई पुस्‍तक हो, सिनेमा हो, लेख हो कुछ भी हो, पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर ही लिखा जाता है। शायद मैं भी यह लेख पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लिख रहा हूँ क्‍योंकि यह मेरा विचार हो सकता है, परन्‍तु यह इतिहास के सच्‍चे पन्‍नों में अवश्‍य दर्ज है। मूवीज का असर इतना बुरा हो सकता है कि आमजन भी इसे देखकर अपनी राय बना लेते हैं। एक दशक पूर्व तक भारतीय (बॉलीवुड) सिनेमा की तहकीक़ात यदि आप करें तो आपको 99 प्रतिशत मूवीज में देखने को मिलेगा कि यदि कोई ब्राह्मण है तो वह लालची और दुराचारी होगा, बनिया है तो कंजूस होगा, वहीं यदि मुस्लिम है तो ईमानदार होगा और उसकी ईमानदारी किसी भी कीमत पर कम नहीं होगी, अन्‍य धर्म का होगा तो प्रताडि़त किया जा रहा होगा आदि आदि। मैं स्‍वयं जब उच्‍च शिक्षा के उद्देश्‍य से घर से बाहर दूसरे शहर गया जहॉं मिली-जुली जाति-धर्म आबादी के लोग रहा करते हैं, मुझे सच्‍चाई का एहसास हुआ। कुछ लोगों ने मुझे सिनेमा के आधार पर मतलबी, जातिवादी, छुआछूत को बढ़ावा देने वाला, लालची समझा, तो कुछ लोगों ने परखा और मेरे अच्‍छे दोस्‍त बन गए। मेरे सबसे अच्‍छे दोस्‍तों में मुस्लिम, हिन्‍दू की कई जातियों के लोग रहे जिन्‍होंने मेरी जिन्‍दगी में अब तक परिवार की तरह साथ दिया है।

तो क्‍या अब सिनेमा में एक समुदाय को इस प्रकार रखा जाना उचित होगा कि वह समुदाय ही ख़राब है। चाहे आतंकवादी गतिविधियों की बात आती हो या धर्मान्‍तरण की, मुस्लिम समुदाय सबसे नाजुक परिस्थिति से गुज़र रहा होता है। सिनेमा/मीडिया की लॉकडाउन के समय की हरक़त भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत में कोरोन के प्रसार की मुख्‍य वजह तबलीगी मुस्लिम को बना दिया गया था, यह एक प्रोपेगेंडा था क्‍योंकि गरीब इंसान ही कोरोना का सबसे अधिक शिकार बना चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से क्‍यों न हो।

धर्मान्‍तरण एक राजनीति है। यह राजनीति अंग्रेजों ने भी की थी। ईसाई मिशनरीज ने जिस प्रकार भारतीय लोगों को अपने शिकंजे में लिया उसकी शिकायत उस कदर नहीं हो पाई जिस कदर होनी चाहिए थी। अंग्रेजों का साफ-साफ मानना था कि यदि हमें भारत के लोगों पर राज करना है तो इनको ईसाई बनाना ही होगा, जब समाज का कुछ तबका ईसाई बन जाएगा तो वह अपने ही लोगों के खिलाफ होकर लड़ाई में हमारा साथ देगा। आज तक आपने भी देखा कि भारत का कोई भी आन्‍दोलन हो ज्‍यादातर अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत का ही साथ दिया, मैं दोहरा रहा हूँ आप इतिहास का कोई भी पन्‍ना पलटकर देख लीजिए अधिकांशत: पढ़ा लिखा वर्ग ने अंग्रेजों का ही साथ दिया है चाहे वह किसी भी समुदाय का क्‍यों न हो (अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का हमेशा से ब्रिटिश हुकूमत को सहयोग रहा है तो दूसरी तरफ अन्‍य समुदाय ने भी हर मुश्किल वक्‍त में अंग्रेजों का साथ दिया है)।

इस्‍लामिक एक विचारधारा को देखा जाए तो एक तबका भारत को मुस्लिम राष्‍ट्र बनता देखना चाहता है। गजवा-ए-हिन्‍द उस विचारधारा का नाम है। इससे हम सभी मुस्लिम समुदाय का दोषी नहीं मान सकते, बल्कि एक तबका है जो भारत की धर्मनिरपेक्षता को छीनना चाहता है। ग़जवा-ए-हिन्‍द का समर्थन पवित्र कुरान भी नहीं करता, क्‍योंकि वह एक समूह विशेष की विचारधारा है। ग़जवा-ए-हिन्‍द का समर्थन करने वाले मुस्मित धर्मान्‍तरण और कट्टरता को बढ़ावा देते आये हैं। भारत में लव जिहाद कोई झूठा कांसेप्‍ट नहीं है, यही वजह है कि कई राज्‍य सरकारों ने लव जिहाद के खिलाफ़ कानून बनाया है। यह लव जिहाद का कानून किसी एक धर्म के खिलाफ़ नहीं है, बल्कि समस्‍त ऐसी विचारधारा के खिलाफ़ है तो प्रेम के नाम पर अन्‍य का धर्मान्‍तरण करवाते हैं, चाहे वह किसी भी धर्म के क्‍यों न हों। ऐसे बहुत सारे किस्‍से हमारे सामने आते रहते हैं कि हिन्‍दू लड़के-लड़कियों ने प्रेम विवाह के बाद मुस्लिम धर्म अपना लिया, और कुछ मामलों में उन्‍होंने कट्टरता को व्‍यक्‍त किया और आतंकी संगठनों को ज्‍वाईन कर लिया।

अब इस बात को समझना भी ज़रूरी है कि अंतरधार्मिक विवाह के पश्‍चात धर्मान्‍तरण होना कोई लव जिहाद नहीं है। स्‍पेशल मैरिज एक्‍ट के तहत अंतरधार्मिक विवाह भी होता है, परन्‍तु उस लड़के अथवा लड़की को अंतत: किसी एक धर्म के साथ की आगे बढ़ना पड़ता है जोकि सामाजिक और कानूनन मज़बूरी भी होती है। तो मीडिया/सिनेमा यदि प्रत्‍येक धर्मान्‍तरण को लव जिहाद का नाम दे, यह भी गलत है। कश्‍मीर फाईल्‍स, द केरला स्‍टोरी कुछ लोगों और कुछ विशेष संगठन की विचारधारा हो सकती है, परन्‍तु सभी मुस्लिम लोगों की नहीं। परन्‍तु इस बात को भी नज़रअन्‍दाज नहीं किया जा सकता है कि लव जिहाद, गज़वा-ए-हिन्‍द है ही नहीं, यह एक विचारधारा है और इसका दुष्‍परिणाम आये दिन देखा जा सकता है। इसी विचारधारा की वजह से पाकिस्‍तान में तकरीबन 20 प्रतिशत से भी अधिक हिन्‍दू आबादी जो आज़ादी के वक्‍त थी, आज 1 प्रतिशत से भी कम आ गई है। वहीं चाहे वह बांग्‍लादेश हो अथवा अफ़गानिस्‍तान, हिन्‍दू विरोधी वारदातों ने इंसानियत का तार-तार किया है। कुछ वर्ष पूर्व सीएए का कानून भारत सरकार ने उन्‍हीं प्रताडित हिन्‍दुओं को भारत में शरण व नागरिकता देने के लिए लाया था। एक तरफ जहॉं तीन बड़े देशों से हिन्‍दू विहीन होने की कगार पर आ गया है, और भारत के कई राज्‍य में जनसंख्‍या राजनीतिक महत्‍व बदल गया है, ऐसे में इन महत्‍वपूर्ण मुद्दों के बारे में समझ होना और इसके प्रति चिन्‍ता व्‍यक्‍त करना बहुत ज़रूरी है। भारत में इस्‍लामिक और क्रिश्चियन धर्मान्‍तरण ने कई राज्‍यों में हिन्‍दुओं को अल्‍पसंख्‍यक बना दिया है, परन्‍तु उन राज्‍यों के राजनीतिक तुष्‍टीकरण और हिन्‍दू विरोधी विचारधारा को यदि देखा जाए तो स्‍पष्‍ट होगा कि किस प्रकार हिन्‍दू अल्‍पसंख्‍यक होने के बावजूद भी सरकारी ऑंकड़ों में बहुसंख्‍यक माना जा रहा है। हिन्‍दुओं के प्रति हिंसा आपको आये दिन केरल, पश्चिम बंगाल, जम्‍मू-कश्‍मीर, पूर्वोत्‍तर राज्‍य जैसे अभी मणिपुर में हिंदुओं के साथ अन्‍याय किया जा रहा है, देखने को मिल जाएगा।

अभी आज वर्तमान में मणिपुर में कूकी और मेती समुदाय के बीच असमंजस है, हिंसा हो रहा है। कूकी म्‍यानमार से आए तथा कुछ मणिपुरी समुदाय ईसाई धर्म अपनाकर भी, बहुसंख्‍यक होते हुए शेड्यूल ट्राईब का आरक्षण प्राप्‍त कर रहे हैं, दूसरी तरफ मणिपुर में हिन्‍दू समुदाय असहाय है, उसके घर जलाये जा रहे हैं, दुकानों में चोरी की जा रही है, मारा जा रहा है। पूरा देश ख़ामोश है, पूरा देश चुप है जब कश्‍मीरी पंडितों के पलायन की तरह मणिपुर से भी अब अल्‍पसंख्‍यक होते हिन्‍दुओं को घर छोड़ना पड़ रहा है। आखिर जिन राज्‍यों में हिन्‍दू अल्‍पसंख्‍यक हैं, उन्‍हें सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रखने की नीति के कारण बहुसंख्‍यक क्‍यों दिखाया जा रहा है। उत्‍तरप्रदेश के मुख्‍यमंत्री परमसम्‍माननीय योगीआदित्‍यनाथ जी ने धर्मांतरण के खिलाफ इसी जातिगत बैलेंस की बात कही थी, कि यदि हिन्‍दू जिन इलाकों में अल्‍पसंख्‍यक हुआ, वहॉं से उसे पलायन कराया जा रहा है। यह कोई मुस्लिम अथवा ईसाई के खिलाफ़ अथवा उनकी जनखंख्‍या के खिलाफ़ बात नहीं है, बल्कि यह जातिगत राजनीतिक बैलेंस की बात है। साधारणतया ऐसी परिस्थितियों में राजनैतिक दल हिन्‍दुओं के साथ हो रहे अन्‍याय को दनकिनार कर मुस्लिम और ईसाई तुष्‍टीकरण करते दिख जाते हैं, जो अंतत: हिन्‍दुओं के बर्बादी का कारण बनता है।

द केरला स्‍टोरी में यही परिस्थितियां बयां की गई हैं। द केरला स्‍टोरी सच्‍ची घटनाओं पर आधारित है। परन्‍तु इसका दोषारोपण समस्‍त मुस्लिम समुदाय पर करना गलत है। कुछ वर्ग जो गज़वा-ए-हिन्‍द विचारधारा को मानते हैं वही ऐसा काम कर रहे हैं, जिसकी बदनामी का सबब समस्‍त मुस्लिम समुदाय को झेलना पड़ रहा है। भारत में कई राज्‍य, कई शहर, कई गॉंव ऐसे हैं जहॉं हिन्‍दू पूजा-पाठ नहीं कर सकते, घण्‍टी नहीं बता सकते, अज़ान के वक्‍त आरती नहीं कर सकते, यह मेरा व्‍यक्तिगत अनुभव भी रहा है। एक बार भोपाल में मैं नीलम पार्क जहॉंगीराबाद में दोपहर मोबाईल पर गाना सुन रहा था, कुछ मुस्लिम बच्‍चे 12-13 की उम्र के मुझसे बोले मोबाईल बन्‍द करो अज़ान हो रहा है, तब मैं एमवीएम कॉलेज का छात्र था। मुझे इस बात की हैरानी हुई कि यह तो अपना मज़हब दूसरों पर थोपने जैसा हुआ, बल्कि यह मेरा भी दायित्‍व होता कि मैं उनकी अज़ान न रूकवाता अथवा उन्‍हें परेशान न करता, परन्‍तु एक शहर में एक छोटे से पार्क में, मोबाईल में कम आवाज़ में गाना सुनने पर भी रोक लगाने की बात धार्मिक कट्टरता को ही साबित करता है। इसकी खिलाफ़त खुलेआम होना चाहिए, क्‍योंकि धर्मनिरपेक्षता का मतलब हिन्‍दुओं की स्‍वतंत्रता छीनना बिल्‍कुल नहीं है।

अंतत: मैं इस बात को दोहरा रहा हूँ, मुस्लिम समुदाय में भी अच्‍छे और बुरे विचार को मानने वाले लोग हैं, इसी वजह से मेरे अधिकांश दोस्‍त पढ़े-लिखे मुस्लिम रहे हैं। सोशल मीडिया एवं मीडिया/सिनेमा में मुस्लिम धर्म को ही बदनाम करने की साजिश कई दफ़ा की जाती रही है, जो सही नहीं है। परन्‍तु कश्‍मीर फाईल्‍स, द केरला स्‍टोरी सच्‍ची घटनाओं पर आधारित हैं जिसका प्रमाण इतिहास के पन्‍नों पर भी दर्ज है। पूर्वाग्रह के आधार पर जजमेंटल हो जाना सही नहीं है, परन्‍तु समाज के लिए घातक कदम के विरूद्ध आवाज़ उठाना भी समय की मॉंग है। मुख्‍य बॉलीवुड धारा को भी ऐसे सेंसटिव मुद्दों पर बात करना चाहिए एवं इसका समर्थन करना चाहिए। पद्मावत, भगवान राम एवं हिन्‍दू धर्म के भगवान का अपमान जिस प्रकार भारतीय सिनेमा में होता आया है, जैसे पीके मूवी, इसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए थी। हिन्‍दू विचारधारा एवं हिन्‍दू आराध्‍य मज़ाक के पात्र नहीं हैं, हिन्‍दू सभ्‍यता विरोधी होने से कोई देश की प्रगति में सकारात्‍मक सहयोग नहीं कर रहा होता, बल्कि अपने की समाज का पतन कर रहा होता है। हिन्‍दू धर्म की कुरीतियों पर लिखे गये साहित्‍य, लेख, मूवी का समर्थन सभी को करना चाहिए जैसे सती प्रथा, परन्‍तु आए दिन इस धर्म को मज़ाक का पात्र बना देना उचित नहीं है।

1 comment:

  1. aapne bilkul thik kha brother.mai aapki baat se shmat hu.

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